मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

मुंछ के बाल

इतिहास के पन्नों में जोधपुर के रहस्य ।

पचास हजार में गिरवी रखे मुंछ के बाल के चुकाए 1लाख

संवत 16O1 में महाराजा गजे सिंह के जेष्ट पुत्र वीर अमर सिंह राठौड़ का आगरे के किले में हुए युद्ध में देहांत हो गया था। उनके पीछे रानियों ने राव अमर सिंह का मस्तक लाने के लिए बल्लू चंपावत के नेतृत्व में फौज तैयार की। आगरा के किले का दरवाजा बंद था, इसलिए उसे तोड़ने के लिए विशेष दल की आवश्यकता थी। उन समय नई भर्ती के लिए धन का अभाव था, अतः बल्लू चंपावत ने आगरे के एक व्यापारी सेठ के पास अपनी मूंछ का बाल गिरवी रख कर पचास हजार रुपए उधार लिए। सेना तैयार हो गई ,भीषण युद्ध हुआ और राठौड़ सैनिक अमर सिंह का मस्तक लाने में सफल रहे। रानियों ने पति के मस्तक के साथ चीतारोहण किया और बल्लू चंपावत स्वयं लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर गए। इस प्रकार सेठ के रुपयों का मामला ठंडा पड़ गया। कुछ पीढ़ियों के बाद आगरा के उसी नगर सेठ के वंशज निर्धन हो गए। तब उन्होंने बहियों के पुराने खत-खातों को देखना शुरु किया। इसी क्रम में एक डिबिया में बल्लू का रुक्का और उनका मूंछ का बाल मिल गया। यह सेठ पता लगाता हुए मारवाड़ के हरसोलाव ठिकाने में बल्लू के वंशज ठाकुर सूरत सिंह चंपावत के पास पहुंचा। सूरत सिंह जोधपुर की तत्कालीन महाराजा विजय सिंह के समय दुर्ग रक्षक और ईमानदार क्षत्रिय थे।अपने पूर्वज की मूंछ के बाल को शरीर का अंग मानकर विधिवत दाह संस्कार किया और बारह दिनों तक शोक रख कर दान, पुण्य, भोज सहित रिवाज पूरे किए। फिर उस सेठ का हिसाब करवाया तो ब्याज का ब्याज जोड़ने में रकम बहुत अधिक बढ़ गई और ठाकुर उसका पूरा चुकारा करना चाहते थे। असंभव की स्थिति और  इमानदारी की पराकाष्ठा देख कर पंचो ने यह निर्णय दिया की दाम दृणा अर धान च्यार। घास-फूस रौ छेह न पार। अर्थात कितना भी समय बीत जाने पर भी दाम दुगुने और अनाज चौगुुना देने पर पूरी स्वीकृति हुई।

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