बुधवार, 22 मई 2019

आवां छां अमरेस

आवां छां अमरेस!
गिरधरदान रतनू दासोड़़ी
स्वाभिमान अर हूंस आजरै जमाने में तो फखत कैवण अर सुणण रा ईज शब्द रैयग्या।इण जमाने में इण दो शब्दां नै लोग जितरा सस्ता अर हल़का परोटै, उणसूं   लागै ई नीं कै कदै, ई शब्दां रा साकार रूप इण धर माथै हा।
आज स्वाभिमान अर हूंस राखणा तो अल़गा, इण शब्दां री बात करणियां नै ई लोग गैलसफा कै झाऊ समझै।पण कदै ई धर माथै ऐड़ा मिनख ई रैवता जिकै स्वाभिमान री रुखाल़ी सारू प्राण दे सकता हा पण स्वाभिमान नै तिल मात्र ई नीं डिगण देता।कट सकता हा पण झुक नीं सकता।'मरणा कबूल  पण दूध-दल़ियो नीं खाणा।'
यूं तो ऐड़ै केई नर-नाहरां रा नाम स्वाभिमान री ओल़ में हरोल़ है पण 'सांवतसिंह झोकाई' री बात मुजब 'मांटियां रो मांटी अर बचकोक ऊपर' री गत महावीर बलूजी(बलभद्र)चांपावत रो नाम अंजसजोग है।
मांडणजी चांपावत रै गोपाल़दासजी अर गोपाल़दासजी रै आठ सपूतां मांय सूं एक हा निकलंक खाग रा धणी बलूजी गोपाल़ोत।
बलूजी रो नानाणो बीकमपुर रै भाटी गोयंददास मानसिंहोत रैअठै हो।मामा ज्यांरा मारका,भूंडा किम भाणेज।भाटियां री बधताई बतावतां मानसिंहजी जोधपुर लिखै-
गहभरिया गात गढां रा गहणा,
उर समाथ छिबता अनड़।
बलूजी राजपूती रो सेहरो अर साहस रो पूतलो हा।ज्यूं चावल़ छड़णै सूं ऊजल़ हुवै उणी गत रजपूती ई सैलां रै घमोड़ां सूं छड़ियां निकलंक हुवै।बलूजी अर रजपूती एक-दूजै रा पर्याय हा-
रजपूती चावल़ रती,
घणी दुहेली जोय।
ज्यू़ं ज्यूं छड़जै सेलड़ी,
त्यूं त्यूं ऊजल़ होय।।
बलूजी, जोधपुर र राजकुमार अमरसिंहजी रा खास मर्जीदान हा।
एक दिन महाराजा गजसिंहजी री पासवान अनारा बेगम अमरसिंहजी नै आपरी पगरखियां उठाय झलावण रो कह्यो तो रीस में झाल़बंबाल़ हुवतां अमरसिंहजी कह्यो कै -"ओ म्हारो काम थोड़ो ई है?"लोग तो आ ई कैवै कै वै उण बखत बेगम नै घणा आवल़िया -कावल़िया बकिया।जिणसूं उण महाराजा रा कान भरणा शुरू कर दिया।जिणसूं महाराजा रीसायग्या अर अमरसिंहजी नै आपरै हक सूं वंचित हुवणो पड़ियो।किवंदती तो आ ई है कै अमरसिंहजी ,नै जोधपुर छोडण रो आदेश ई दियो गयो हो।जद अमरसिंहजी जोधपुर छोडियो उण बखत जिकै मौजीज सरदार साथै टुरिया, उणां में एक सिरै नाम हो बलूजी चांपावत रो।
जद पातसाह शाहजहां अमरसिंहजी नै नागौर स्वतंत्र रूप सूं दी उण समय अमरसिंहजी बलूजी नै हरसोल़ाव ठिकाणो दियो।
अमरसिंहजी नै घेटा(मिंढा)पाल़ण रो शौक हो।सो वै घेटा तो पाल़ता ई साथै ई आ पण जिद्द ही कै नागौर रा टणकसिंह ठाकर बारी -बारी सूं घेटा चरासी।जद बलूजी री बारी आई तो बलूजी भरिये दरबार में ना देतां कह्यो कै-"ऐवड़ चरावण रो काम गडरियां रो है ,म्हारो ओ काम थोड़ो ई है?म्हैं घेटां लारै आज उछरूं न काल।जाडी पड़ै जठै घेर लीजो।"
केसरीसिंहजी सोन्याणा रै आखरां में-
बोल्यो बलू वीरवर,
हम न चरावहि नाथ।
एडक झुंड चरायबो,
होत गडरिया हाथ।।
अमरसिंहजी नै ऐड़ो जवाब  देण रो मतलब हो नाग रै मूंढै में आंगल़ी देणी कै सूतै सिंह रै डोको लगावणो।अमरसिंहजी रीस में लालबंब हुयग्या पण बाबै रै ई बाबो हुवै ।बलूजी ई अकूणी रा हाड हा।अमरसिंहजी जाणता कै फफरायां सूं बलू डरै!वा जागा खाली है सो उणां आकरा पड़तां पूछियो कै -"पछै आपरो कांई काम है?
जणै बलूजी कह्यो कै-"खमा!म्हारो काम पातसाही सेनावां पाछी घेरण रो है घेटा चरावण रो नीं"-
आवै जद सांम मुगल दल़ उरड़ै,
करड़ै वैणां कटक कियां।
राखूं तिणवार पिंड राठौड़ी,
मरट मेट सूं भेट मियां।
टोरूं जवनाण हाक जिम टाटां
झाटां लेसूं गात झलू।
तोड़ण मुगलांण माण कज तणियो,
वणियो मरवा वींद बलू।।(गि.रतनू)
"अठै तो घेटा चरासी वो ई  रैसी।" अमरसिंहजी कह्यो तो बलूजी भचाक उठिया अर कह्यो पट्टो तरवार री मूठ बंधियो राखूं।"ओ पट्टो काठो राखो।उणां नागौर छोड दी अर बीकानेर महाराजा कर्णसिंहजी रै कनै बीकानेर आयग्या।
छछवारी नै छछवारी कै चढी नै चढी सुहावै नीं।आ ई बात अठै ई हुई बलूजी री कीरत अठै ई घणै मिनखां नै नीं भाई--
सूरां पूरां वत्तड़ी,
सूरां कांन सुहाय।
भागल़ अदवा राजवी,
सुणतां ई टल़ जाय।।
चौमासै रो समय हो अर बलूजी आपरै डेरे में आराम करै हा जितरै किणी बीकानेरिये सरदार आय बलूजी नै मतीरो भेंट करता कह्यो कै-"हुकम दरबार आपरै आ भेंट मेलतां कह्यो है कै - मती रो।"बलूजी तो तिणै माथै तेग राखता।भच घोड़ै जीण कसी अर बड़गड़़ां-बड़गड़ां वै  जा वै जा।कर्णसिंहजी नै इण तोत रो ठाह लागो पण पछतावो करण रै टाल़ वै कर ई कांई सकता?
बलूजी अठै सूं मेवाड़ महाराणा कनै गया परा।उठै महाराणा जगतसिंहजी उणांनै एक ठावको घोड़ो इनायत कियो।
क्रमशः

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