मधुकर मऊ न छोडज्ये !
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मधुबन मत दे सांवरा मऊ जनम सो बार ।
कुंज गळ्यां कोजी घणी मऊ लागै मंदार* ।।
जलमभोम ज्यांरी मऊ जुग जुग हुया निहाल ।
सारी सींवां फोड़ दी , नूंवीं सींव दी घाल ।।
मधुकर मऊ न छोडज्ये जे छोड्यो दुख पाय।
गया दिसावर बावड़ै फिर फिर ओ'ठा आय।।
सिंवरै मनसा मात नैं जको दिसावर मांय ।
पोबा'रा पच्चीस व्है बिजनिस बढ़ै सवाय ।।
अठै खिलाड़ी खेल सब अर साहित परचार ।
जनहित में बैराग ले छोड दियो घर-बार ।।
चित्रकार किरपालसी पदमश्री परधान ।
ब्लू पोटरी में मिल्यो ज्यांनै लूंठो स्थान ।।
परिभासा परिमल* रची राजनीति री रीत ।
कण कण चमकै चाँद ज्यूँ दुनियां गावै गीत ।।
डूँगर ऊपर सोवणों बालाजी रो धाम ।
गाँव जगाती बीच मैं शिवशंकर सरनाम ।।
पिरथीसिंघ सपूत नैं मिळ्यो वीर रो स्थान ।
मान कवी सिरजण करै जलम भोम रै मान ।।
शिक्षक अठै समाज में करै ज्ञान परकास ।
राष्ट्रपति दीन्यो पदक मन में हुयो हुलास* ।।
ज्ञान गीत कविता अठै मूरतकला प्रवीण ।
कळा कळस* रा पारखी नीं हिरदै सूंं हीण* ।।
*शब्दार्थ :
~~~~~~मंदार = स्वर्ग , परिमल = सुंदर , हुलास = प्रसन्नता , कळस = नृत्य की एक वर्तनी अर्थात् नृत्य विशेषज्ञ और हीण = क्षीण !!!
नरेंद्र सिंह मऊ
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बुधवार, 4 अक्टूबर 2017
मधुकर मऊ न छोडज्ये !
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