मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

दारू रा सोरठा

दारू रा सोरठा

नशो घटावै नूर, काढै परतख काळजौ।
घर रा देखै घूर,पी मत दारू पीथला।।1।।
काढै दिनड़ा कूक,कंथा थारी कामणी।
हीयै उपजे हूक, पी मत दारू पीथला।।2।।
पंचां में पहचाण,परतख जावै पेखलौ।
कुरब है नंह काण,पी मत दारू पीथला।।3।।
गैणा दिया गमाय,रेवै मरवण रींकती।
इजत दीवी उडाय,पीवत दारू पीथला।।4।।
आवै घर अधरात, डगमग कदमां डोलतो।
घालै घर में घात,पी पी दारू पीथला।।5।।
खायौ बेच'र खेत,तोडां बेची तीखली।
रूपो रळगौ रेत, पी मत दारू पीथला।।6।।
हरदम करतौ हेत, पीव जद नंह पीवतौ।
मुख डोडौ कर देत,पीतां दारू पीथला।।7।।
हरदम मद सूं हेत, राखै मन रौ राजवी।
हेरै नांही हेत,परणी सूं औ पीथला।।8।।
लाणत इणरै लार,देह लगावै दोखड़ौ।
धीजौ मन में धार,पी मत दारू पीथला।।9।।
कलम ना ही किताब, रेवै टाबर रींकता।
खोटा छोड़ खवाब,पी मत दारू पीथला।।10।।
अन लावै उधार, मूंगी मरवण मांगनै।
पड़सी किंकर पार,पीतां दारू पीथला।।11।।
पायल करदी पार,बाजू मेंमद बेचतां।
अब तो लियै उधार, पीवण दारू पीथला।।12।।
करदी थारै लार, मूंगी मरवण माइतां।
सत री बातां सार,पी मत दारू पीथला।।13।।
नैणां घटजा नेह, तनड़ौ जावै तूठतो।
सैण दिखावै छैह,पी मत दारू पीथला।।14।।
डग भरतां डगरांह,ठकै जावै ठावका।
लै घर लड़थड़तांह,पी मत दारू पीथला।।15।।
बोले हस हस बात, पीयां पैली प्रेम'सूं।
कै घूंसा कै लात,पीतां दारू पीथला।।16।।
लेटै आखी रात,मैली गळियां मांयनै।
आवै ढळती रात,पी मत दारू पीथला।।17।।
छावै नांही छात,छपर पुराणै ऊपरां।
आसव मांही आस,परी गमावै पीथला।।18।।
जूंझै ऐ जबराळ, कीचड़ मांही लेटतां।
बणै भला विकराळ,पीतां दारू पीथला।।19।।
करै माईत कोड,मन में मोद मनावतां।
छेकड़ जावै छोड़,पीतां दारू पीथला।।20।।
मूंडै ऊपर मूत,कोड मनावै कूकरा।
जरकावै धण जूत,पीयां पाछै पीथला।।21।।
दोखी भल दारूह,क्षत्री वरण समाज'रौ।
इजत अर आबरूह,फगत गमावै पीथला।।22।।
करै खोटला काम,मद पीयां थी मानवी।
ऊजळ कुळ रौ नाम, परौ गमावै पीथला।।23।।
मिळगी मूंगै मोल,जूणी मिनखा जीव'री।
मत कर डांवाडोल, पी-पी दारू पीथला।।24।।
सरावै जग संसार, प्याला पीतां प्रेम'रा।
सौ ही बातां सार,पी मत दारू पीथला।।25।।

कुँ. पृथवीराजसिंह बेरू'पीथळ' कृत

जोर जी चाम्पावत

जोर जी चाम्पावत

जोरजी चांपावत कसारी गांव के थे जो जायल से 10 किमी खाटू सान्जू रोड़ पर है जहा जोरजी की छतरी भी है !

जोधपुर दरबार एक फोरेन से बन्दूक मंगाई थी और दरबार मे उसका बढ चढ कर वर्णन कर रहे थे संयोग से जोरजी भी दरबार मे मोजुद थे !

दरबार ने जोरजी से कहा, देखो जोरजी ये बन्दूक हाथी को मार सकती है !
जोरजी ने कहा, इसमे कोनसी बड़ी बात है हाथी तो घास खाता है !

दरबार ने फिर कहा, ये शेर को मार सकती है..
जोरजी ने कहा, शेर तो जानवर को खाता है !

इस बात को लेकर जोरजी और जोधपुर दरबार मे कहा सुनी हो गयी...
तब जोरजी ने कहा, मेरे पास अगर मेरे मनपसंद का घोड़ा और हथियार हो तो मुझे कोई नही पकड सकता चाहे पुरा मारवाड़ पिछे हो जाय..

तो जोधपुर दरबार ने कहा आपको जो अच्छा लगे वो घोड़ा ले लो और ये बन्दुक ले लो...
जोरजी ने वहा से एक अपने मनपसंद का घोड़ा लिया और वो बन्दुक ले कर निकल गये..
और मारवाड़ मे जगह जगह डाका डालते रहे !

जोधपुर दरबार के नाक मे दम कर दिया दरबार ने आस पास की रियासतो से भी मदद ली पर जोरजी को कौई पकड़ नही पाये ।
तब ये दोहा प्रचलित हुआ !

"चाम्पा थारी चाल औरा न आवे नी,
बावन रजवाङा लार तु हाथ कोई के आवे नी ।"

फिर दरबार ने जोरजी पर इनाम रखा की जो उनको पकड़ के लायेगा उन्हे इनाम दिया जायेगा,
इनाम के लालच मे आकर जोरजी के मासी के बेटे भाई खेरवा ठाकर धोखे से खेरवा बुलाकर जोरजी को मारा ! जोरजी ने मरते मरते ही खेरवा ठाकर को मार गिराया !

जब जोधपुर दरबार को जोरजी की मौत के बारे मे पता चला तो बहुत दूखी हुवे और बोले ऐसे शेर को तो जिन्दा पकड़ना था ऐसे शेर देखने को कहा मिलते है !!

जोरजी बन्दुक और कटारी हरसमय साथ रखते थे, खेरवा मे रात को सोते समय बन्दुक को खुंटी मे टंगा दी और कटारी को तकिये के नीचे रखते थे !

जब जोरजी को निन्द आ गयी तो खेरवा ठाकर बन्दुक को वहा से हटवा दी और जोरजी के घोड़े को गढ़ से बहार निकाल कर दरवाजे बन्द कर दिया !

तो घोड़ा जोर जोर से बोलने लगा घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर जोरजी को कुछ अनहोनी की आसंका हुई वो उठे ओर बन्दुक की तरफ लपके पर वहा बन्दुक नही थी !

तो जोरजी को पुरी कहानी समझ मे आ गयी ओर कटारी लेकर आ गये चौक मे मार काट शुरू कर दी उन सैनिको को मार गिराया !

खेरवा ठाकर ढ्योढी मे बैठा था वहा से गोली मारी !
जोरजी घायल शेर की तरह उछल कर ठाकर को ढ्योढी से निचे मार गिराया !

ओर जोरजी घायल अवस्था मे अपने खुन से पिण्ड बना कर पिण्डदान करते करते प्राण त्याग दिये !!

( उस समय जो राजपुत खुद अपने खुन से पिण्डदान करे तो उनकी मोक्स होती है ऐसी कुछ धारणा थी)

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

लोकदेवता कल्ला जी राठौड़

24 फरवरी/बलिदान-दिवस

लोकदेवता कल्ला जी राठौड़

राजस्थान में अनेक वीरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया, जिससे उनकी छवि लोकदेवता जैसी बन गयी। कल्ला जी राठौड़ ऐसे ही एक महामानव थे। उनका जन्म मेड़ता राजपरिवार में आश्विन शुक्ल 8, विक्रम संवत 1601 को हुआ था। 

इनके पिता मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह थे। भक्तिमती मीराबाई इनकी बुआ थीं। कल्ला जी की रुचि बचपन से सामान्य शिक्षा के साथ ही योगाभ्यास, औषध विज्ञान तथा शस्त्र संचालन में भी थी। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से इन्होंने योग की शिक्षा पायी।

इसी समय मुगल आक्रमणकारी अकबर ने मेड़ता पर हमला किया। राव जयमल के नेतृत्व में आसासिंह तथा कल्ला जी ने अकबर का डटकर मुकाबला किया; पर सफलता न मिलते देख राव जयमल अपने परिवार सहित घेरेबन्दी से निकल कर चित्तौड़ पहुँच गये। राणा उदयसिंह ने उनका स्वागत कर उन्हें बदनौर की जागीर प्रदान की। कल्ला जी को रणढालपुर की जागीर देकर गुजरात की सीमा से लगे क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया।

कुछ समय बाद कल्ला जी का विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा से तय हुआ। द्वाराचार के समय जब उनकी सास आरती उतार रही थी, तभी राणा उदयसिंह का सन्देश मिला कि अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया है, अतः तुरन्त सेना सहित वहाँ पहुँचें। कल्ला जी ने विवाह की औपचारिकता पूरी की तथा पत्नी से शीघ्र लौटने को कहकर चित्तौड़ कूच कर दिया।

महाराणा ने जयमल को सेनापति नियुक्त किया था। अकबर की सेना ने चित्तौड़ को चारों ओर से घेर लिया था। मेवाड़ी वीर किले से निकलकर हमला करते और शत्रुओं को हानि पहुँचाकर फिर किले में आ जाते। कई दिनों के संघर्ष के बाद जब क्षत्रिय वीरों की संख्या बहुत कम रह गयी, तो सेनापति जयमल ने निश्चय किया कि अब अन्तिम संघर्ष का समय आ गया है। उन्होंने सभी सैनिकों को केसरिया बाना पहनने का निर्देश दिया।

इस सन्देश का अर्थ स्पष्ट था। 23 फरवरी, 1568 की रात में चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया और अगले दिन 24 फरवरी को मेवाड़ी वीर किले के द्वार खोल कर भूखे सिंह की भाँति मुगल सेना पर टूट पड़े। भीषण युद्ध होने लगा। 

राठौड़ जयमल के पाँव में गोली लगी। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी; पर उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। कल्ला जी ने यह देखकर जयमल के दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद कल्ला जी ने अपने दोनों हाथों में भी तलवारें ले लीं।

चारों तलवारें बिजली की गति से चलने लगीं। मुगल लाशों से धरती पट गयी। अकबर ने यह देखा, तो उसे लगा कि दो सिर और चार हाथ वाला कोई देवता युद्ध कर रहा है। युद्ध में वे दोनों बुरी तरह घायल हो गये। कल्ला जी ने जयमल को नीचे उतारकर उनकी चिकित्सा करनी चाही; पर इसी समय एक शत्रु सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर काट दिया। सिर कटने के बाद के बाद भी उनका धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा। 

इस युद्ध के बाद कल्ला जी का दो सिर और चार हाथ वाला रूप जन-जन में लोकप्रिय हो गया। आज भी लोकदेवता के रूप में चित्तौड़गढ़ में भैंरोपाल पर उनकी छतरी बनी है।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

काहे जग माँही आयो हो

काहे जग माँही आयो हो थोड़ो तो बिचार कर
काहे मिनख जमारो पायो हो थोड़ो तो बिचार कर
मरणु मायर बाप रो मांडण वालो
कुण तन जलम बगसायो हो थोड़ो तो बिचार कर।।

बड़ा बड़ा बंगला म बसणु
शहरां माहीं जा जा धसणु
साथ्यां लार् खुला प्इस्या
साखीणा तैं मुठ्ठी कसणु
धन री धौंस दिखावण वालों
कुण तन धनिक बणायो हो
थोड़ो तो बिचार कर
काहे जग माही आयो हो नर थोड़ो तो........

काठी तिड़की हुंया स्यूं उठै
बात बात पर ही तू रूठै
चौक्यां, चुगल्यां, ताश तमाशा
ठी ठी हा हा मुंह स्यूं फूठै
घर घर फिर फिर दिन अन्थावण वाळो
ईयां करयाँ कुण खजाणु पायो हो
थोड़ो तो बिचार कर।।
(मॉब्स अमरावत)

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

तीजो नैण

शंकर ,थांरे देश रा
बैरी बढता जाय ।
तीजो नैण उघाड दो
सगला भस्म हु जाय ।।
चले न भारत देश पे
आंतकी रौ जोर ।
एटम बम सूं सोगुणो
शिव बम बम रौ शोर ।।
असुरां रौ है इण वखत
आर्यधरा पर अंश ।
भेजो तोय भुजंग ने
डसे बैरियां दंश ।।
भस्मासुर सा भूतडा
अरडावे आजाद ।
डमरू शिव डमकायदो
रणभैरी रौ नाद ।।
देवभूमि पर कर दया
शिव रखवालो सांच ।
डगमग कर जग डोल जा
रचदो ताण्डव नाच ।।

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

भूलग्या

भूलग्या
"""""""""""""
कंप्यूटर रो आयो जमानो कलम चलाणीं भूलग्या।
मोबाईल में नंबर रेग्या लोग ठिकाणां भूलग्या।

धोती पगडी पाग भूलग्या मूंछ्यां ऊपर ताव भूलग्या।
शहर आयकर गांव भूलग्या बडेरां रा नांव भूलग्या ।

हेलो केवे हाथ मिलावे रामासामा भूलग्या।
गधा राग में गावणं लाग्या सारेगामा भूलग्या ।

बोतल ल्याणीं याद रेयगी दाणां ल्याणां भूलग्या ।
होटलां रो चस्को लाग्यो घर रा खाणां भूलग्या ।

बे टिचकारा भूलगी ऐ खंखारा भूलग्या ।
लुगायां पर रोब जमाणां मरद बिचारा भूलग्या ।

जवानी रा जोश मांयनें बुढापा नें भूलग्या ।
हम दो हमारे दो आपरा मा बापां ने भूलग्या ।

संस्कृति नें भूलग्या खुद री भाषा भूलग्या ।
लोकगीतां री रागां भूल्या खेल तमाशा भूलग्या ।

घर आयां ने करे वेलकम खम्मा खम्मा भूलग्या ।
भजन मंडल्यां भाडा की जागण जम्मा भूलग्या ।

बिना मतलब बात करे नीं रिश्ता नाता भूलग्या ।
गाय बेचकर गंडक ल्यावे खुद री जातां भूलग्या ।

कांण कायदा भूलग्या लाज शरम नें भूलग्या ।
खाणं पांण पेराणं भूलग्या नेम धरम नें भूलग्या ।

घर री खेती भूलग्या घर रा धीणां भूलग्या ।
नुवां नुंवां शौक पालकर सुख सुं जीणां भूलग्या ।
पण थे आ कविता पढ'र लाईक करणो मती भूलजो !!
.l