बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

लेबा भचक रूठियो लालो

*गिरधरदान रतनू    दासोड़ी
राजस्थान रो मध्यकाल़ीन इतियास पढां तो ठाह लागै कै अठै रै शासकां अर उमरावां चारण कवियां रो आदर रै साथै कुरब-कायदो बधाय'र जिणभांत सम्मान कियो  वो अंजसजोग अर अतोल हो।
जैसल़मेर महारावल़ हरराजजी तो आपरै सपूत भीम नै अठै तक कह्यो कै 'गजब ढहै कवराज गयां सूं, पल़टै मत बण छत्रपती।'तो महारावल़ अमरसिंहजी,  कवेसरां रो जिणभांत आघ कियो उणसूं अभिभूत हुय'र कविराजा बांकीदासजी कह्यो-'माड़ेचा तैं मेलिया ,आभ धूंवा अमरेस।'टोडरमलजी मोही, भोई बणिया, बूंदी रा शासक शत्रसालजी हाडा देवाजी महियारिया री पगरखियां खुद रै हाथां उठाय'र उणांरै पगां आगे राखी तो जोधपुर रा महाराजा अभयसिंहजी, करनीदानजी नै आपरै खांधै पग दिराय'र हाथी चढाय  जल़ेब में बैया।इणीभांत बड़ली रा ठाकुर लालसिंहजी राठौड़ ,कविश्रेष्ठ महादानजी मेहडू रै घोड़ै रै आगै पाल़ा-पाल़ा बैय'र उणांनै, उणांरै सासरै हिंयाल़िया पूगाय'र आया।
यूं तो केई लेखकां इण घटना रा कवि कविराजा करनीदानजी नै मानिया है अर लालसिंहजी बड़ली री कीरत में रचित गीत री रचनाकार बरजूबाई नै मानिया है। बरजूबाई नै केई करनीदानजी री जोड़ायत तो केई बैन मानै अर उणांरो मानणो है कै लालसिंहजी जद मराठां सूं लड़िया उण बखत तक करनीदानजी इहलोक नै तज चूका हा।सो करनीदानजी रै वादे मुजब लालसिंहजी रा बखाण बरजूबाई किया।पण आ बात इतियास री कसौटी माथै खरी नीं उतरै।  इण विषय में विख्यात इतिहासकार सुरजनसिंहजी झाझड़  रो मत वजनी है ।उणां कालखंड रै मुजब महादानजी मेहडू नै वै कवि  मानिया जिणांरी सेवा में बड़ली ठाकर आगे- आगे पाल़ा बुवा। आ बात वस्तुतः सही ई है।
सिरस्या रा महादानजी मेहडू, जिणांनै जोधपुर महाराजा मानसिंहजी उणां री इच्छा मुजब सोढावास ठिकाणो इनायत कियो।जद महाराजा इणांनै गांम रै मुजरै रो आदेश दियो तो उणां कह्यो-
*पांच कोस पांचेटियो,*
*आठ कोस आलास।*
*नानाणो म्हारो नखै,*
*समपो सोढावास।।*
अर महाराजा सोढावास उणांनै बगसियो।
महादानजी तीन ब्याव किया ।जिणांमें एक ब्याव उणां हियाल़िया रा बारठ शंकरदानजी री बैन साथै कियो।
एक'र चौमासै री बखत । महादानजी आपरै सासरै पधार रह्या हा।बड़ली पूगा ईज हा कै रात अंधारीजगी।आभो घटाटोप हुयग्यो।बीजल़ी कड़ाका करण लागी अर राटक'र मेह बरसियो-
सामठा चात्रग सोर दादुरां बकोर साद,
झाझा मोर बैठा करै गिरंदै झिंगोर।
वादल़ा तणा उलोल़ उत्तराधी कोर वाधै,
घघूंबै सजोर घटा मांडै घणघोर।।
च्यारां कानी पाणी रा बाल़ा ई बाल़ा।घणा झाड़ झंखाड़। ऐड़ै में कवि नै मारग रो ज्ञान नीं रह्यो।कवि गतागम में ईज हो कै बड़ली ठाकुर लालसिंहजी उणी बखत भेस बदल़'र गांम रो फेरो देवण निकल़िया।
उल्लेख्य है कै बड़ल़ी महान स्वातंत्र्य प्रेमी जोधपुर राव चंद्रसेनजी रै पोते कर्मसेनजी रै छोटे बेटे अखेराजजी री परंपरा  में एक ठावको ठिकाणो।अठै रा ठाकुर लालसिंहजी वीर,साहसी अर उदार मिनख अर इण बात रा पखधर-
*ऊदा अदतारां तणा,*
*जासी नाम निघट्ट।*
*जाण पंखेरू उड्डियो,*
*ना लिहड़ी ना वट्ट।।*
बड़ली रै गोरवें एक मिनख नै देखियो तो महादानजी उणनै हेलो कियो अर पूछियो -ऐड़ी मेह अंधारी रात।आभो रिंध रेड़ रह्यो है अर तूं घर छोड'र गांम रै गोरवें कांई करै?"
जद भेष बदल़ियोड़ा ठाकुर साहब कह्यो-
"अठै तो बड़ली ठाकुर साहब रै आदेश सूं गांम रै पोरो(पहरा)देय रह्यो हूं।कोई चोरी चकारी नीं हुय जावै।"
-"तो भाई! एक काम म्हारो ई करै कनी!कवि कह्यो तो उणां पूछियो कै -कांई?
जद महादानजी कह्यो -"तूं म्हनै हिंयाल़िया तक पूगाय दे नीं।तनै थारी धाड़ी दे दूंला।"
जणै लालसिंहजी जाणग्या कै बटाऊ चारण है जद उणां कह्यो-"तो आप रात-रात अठै ई ठाकुर साहब कनै ई विराजो नीं।दिनुगै आराम सूं पधार जाया।"
जणै कवि कह्यो-"तूं ठीक कैवै पण कोई पण आदमी आपरै गांम कै सासरै सूं दो-तीन कोस माथै कठै ई ठंभै तो-'का तो नार कुभारजा,का नीं नैणां नेह।' सो तूं म्हनै हिंयाल़िया पूगावै जैड़ी बात कर।"
ठाकुर साहब अबै पक्को जाणग्या कै बटाऊ कोई चारण है अर पाखती बारठां रै अठै जासी।मेह अंधारी रात ।ऐड़ै में मिनख रो फर्ज बणै कै अंसधै आदमी री मदद करणी चाहीजै अर पछै ओ तो चारण है!-
*चारण तणो रहे सो चाकर*
*सो ठाकर संसार सिरै।*
आ सोच'र उणां कह्यो कै -" तो हालो  आपनै हिंयाल़िया तक पूगाय दूं।"
हिंयाल़िया ,बड़ली सूं  दो-ढाई कोस।आगे-आगे पाल़ा -पाल़ा लालसिंहजी अर लारै-लारै घोड़ै सवार महादानजी मेहडू।
ज्यूं ई हिंयाल़िया रो गवाड़ अर उठै रै बारठ री तिबारी आई अर लालसिंहजी कह्यो -"लो हुकम!आपरो ठयो आयग्यो।आ हिंयाल़िया री तिबारी।अबै म्हनै रजा दिरावो ।म्हैं पाछो गांम रै पोरै माथै जाऊं।"आ सुण'र महादानजी कह्यो -"इयां क्यूं जावै?ब्याल़ू बीजो कर'र जा।"जणै लालसिंहजी कह्यो -"नीं ,ब्याल़ू बीजो नीं करूं।म्हनै आपनै ठयेसर पूगावणा हा सो पूगाय दिया अब म्हारो काम पूरो हुयो।" जणै महादानजी कह्यो-"कोई बात नीं, थारी मरजी पण थारी पगदौड़ (मजदूरी)तो लेय'र जा।"आ सुण'र लालसिंहजी कह्यो -"नीं हुकम!आप हिंयाल़िया रै बारठां रा मैमाण सो म्हारै ई मैमाण।इणमें कैड़ी पगदौड़?आप आराम सूं रावल़ै पधारो अर हूं पाछो जाऊं।"आ बंतल़ सुण'र रावल़ै मांयां सूं एक -दो सिरदार ई आयग्या।उणां आवतां ई अंधारी रात में ई बोली सूं लालसिंहजी नै ओल़ख लिया अर कह्यो -"खमा !खमा!पधारो हुकम !आज तो मेह अर मैमाण दोनूं एकै साथै!आपरै पधारणै सूं म्हांरी टापरी ई पवित्र हुई।"
महादानजी ई समझग्या कै म्हनै पूगावणियो कोई साधारण मिनख नीं बल्कि खुद बड़ली ठाकुर लालसिंहजी है।
उणां कह्यो -"हुकम आप म्हारै माथै ऋण चढा दियो।आप पाल़ा अर हूं घोड़े सवार!जुलम किया।ओ ओसाप कीकर उतरैला?अबार तो आप म्हनै पूगायो है ,इणरा तो हूं कांई बखाण करूं?पण भविष्य में कदै ई आप वीरता बतावोला तो हूं फूल सारू पांखड़ी रै रूप में अमर करण री कोशिश करूंलो।"
जोग ऐड़ो बणियो कै दोलतराव सेंदिया रो अजमेर   सूबेदार मराठा बापूराव मेवाड़ माथै हमलो कियो।उण बखत बड़ली ठाकुर लालसिंहजी मेवाड़ री मदद में जकी वीरता बताई वा सेंदियां रै आंख्यां री किरकिरी बणगी।उणी दरम्यान मेवाड़ अर सेंदियां रो राजीपो हुयग्यो।मेवाड़, लालसिंहजी नै कह्यो कै -"आप अठै आवोरा आपनै आपरै कुरब मुजब जागीर दी जासी।क्यूंकै अबै दुसमण आप माथै हमलो करसी अर बड़ली भिल़ण री पूरी संभावना है।लालसिंहजी इण बात री गिनर नीं करी।उण बखत लालसिंहजी रै हियै में जका भाव उमड़िया।उणांनै किणी चारण कवेसर इणगत दरसाया--
*बंका आखर बोलतौ*
, *चलतौ वंकी चाल।*
*झड़ियौ वंकी खाग झट,*
*लड़ियौ बंकौ लाल।।*

*वड़ली तल़ सूखी भई,*
* *तै पोंखी रिण ताल़।*
*पौह धरां किम पालटै,*
*लोही सींची लाल।।*

*इम कहतौ लालो अखर,*
*दूलावत डाढाल़।*
*जीवतड़ौ गढ सूंप दे*,
(वां)
*गढपतियों ने गाल़।।*
जोग सूं थोड़ै समय पछै ई दोल़तराव सेंदिया रै अजमेर रै अंतिम सूबेदार बापूराव ,बड़ली माथै हमलो कर दियो।
उण बखत लालसिंहजी जकी वीरता बताई वा इतियास में अमर है।
उण लड़ाई में लालसिंहजी आ सिद्ध कर दीनी कै-
*कंथा कटारी आपरी,*
*ऊभां पगां न देह।*
*रुदर झकोल़ी भुइ पड़ै,*
(पछै)
*भावै सोई लेह।।*
अदम्य साहस अर आपाण बताय'र राठौड़ दूलेसिंहजी रै सपूत लालसिंहजी वि.सं.1872 री चैत बदि दूज रै दिन वीरगत वरी।आ बात जद महादानजी मेहडू सुणी तो उणां दस दूहालां रो एक भावप्रवण सावझड़ो गीत बणायो।गीत रो एक -एक आखर वीरता रो प्रतिबिंब   सो लागै-
आंटीला ऊठ सतारावाल़ा।
तो ऊपर वागा त्रंबाल़ा।
नाह बाघ जागो नींदाल़ा।
कहिजै कटक आवियो काल़ा।।

चखरा वचन सुणे चड़खायो।
अंग असलाक मोड़तो आयो।
दूलावत इसड़ो दरसायो।
जांणक सूतो सिंघ जगायो।।

किसै काम आवण रण कालो।
बांधै माथै मोड़ विलालो।
भुजडंड पकड़ ऊठियो भालो।
*लेबा भचक रूठियो लालो।।*

जूनी थह जातां हद जूटो।
खूनी सिंघ सांकल़ां खूटो।
छूटां प्रांण पछै हठ छूटो।
तूटां सीस पछै गढ तूटो।।
उण महावीर रा बखाण करतां किणी बीजै कवि एक सतोलो कवित्त बणायो ।जिणमें कवि लिखै कै शिव री मुंडमाल़ा में पिरोयोड़ो लालसिंह रो सीस दकालां कर रह्यो है---
बनी सुख सज्या तहां चंद का उजाला वेस,
रैन के समय में आप पौढे ध्यान शाला में।
पीवै मेग प्याला ताते नैन है गुलाला पूर,
लहरा रहे चौसर से उर्ग मृगछाला में।
भाला खग कमध चलाया हद भारत में।
मस्तक सुमेर ज्यों बनाया कंठ माला में।
सोती संग शंभु कै चम्मकै बेर बेर बाला,
*करै सीस लाला को दकाला मुंडमाला में।*
आज नीं लालसिंहजी है अर नीं महादानजी मेहडू पण उण दोनां री बात जनकंठां में आज ई अमर है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

भारत का अंतिम जौहर


भारत_का_अंतिम_जौहर

#एक_हिन्दू_राजा_के_कारण_राजपूतानियों_ने_किया_ज़ौहर

#जाट_राजा_और_मुगलों_की_दोस्ती_का_गवाह_बना_एक_जौहर

#लकड़ियों_के_अभाव_में_गोले_बारूद_पर_बैठकर_किया_जौहर

पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारहवीं सदी में भरतपुर के #जाट_सूरजमल_ने_मुगल_सेनापति_के_साथ_मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा #बहादुर_सिंह_बड़गूजर पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। परन्तु दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियों ने जौहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया।

#अगर_जाट_राजा_सूरजमल_ने_मुगलों_से_संधि_नहीं_की_होती_तो_इतना_भयावह_जौहर_(#गोला-बारूद ) #राजपूतानियों_को_नहीं_करना_पड़ता।

#राजपूताने_का_अंतिम_जौहर

राजपूताने का अंतिम जौहर घासेड़ा के राव बहादुर सिंह बड़गूजर के शासनकाल में हुआ था |

राव बहादुर सिंह बड़गूजर के पिता हस्ती सिंह एक बागी थे |दिल्ली - हरियाणा की सीमा पर कॉल परगना ( अलीगढ़ ) पर राव बहादुर सिंह बड़गूजर का राज था |
हरियाणा में स्थित घासेड़ा की जागीर के अंतर्गत स्थित घासेड़ा के दुर्ग पर राव बहादुर सिंह बड़गूजर का कब्जा था | राव बहादुर सिंह बड़गूजर बेख़ौफ़ होकर अपने राज्य पर राज करता और लगातार मुगलों से लोहा लेता था , लेकिन यह बात मुग़ल सल्तनत के लिए असहनीय थी |

सूरजमल जाट और मुग़ल सल्तनत दोनों ही राव बहादुर सिंह बड़गूजर पर कई बार दबाव बनाते थे |
पर स्वाभिमानी राजपूत मुगलों के अधीन रहना स्वीकार नही करता है |

जहां औरंगजेब पूरे भारत के राजपूतों को मुस्लिम बनाने में लगा रहता है वही राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने धर्म के प्रति अडिग रहता है और शान से राजपूतों की पताका लहराता है | यह बात मुगलों को खटकती है |

शहंशाह औरंगजेब के सेनापति वजीर सफदरजंग , जो घासेड़ा के राव बहादुर सिंह बड़गूजर से कट्टरता रखता था , ने राव बहादुर सिंह बड़गूजर को एक पत्र भिजवाया जिसके अंतर्गत उसने कॉल परगने से तोपो को हटाने के लिए कहा |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर ने मुगलों के हुक्म की नाफ़रमानी की और इसके बदले उसने मुगलों ने कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया जिससे उसे भारी मात्रा में गोला -- बारूद मिले |
जब इसकी जानकारी वजीर सफदरजंग को मिली तो उसने घासेड़ा पर आक्रमण करने की सोची और अपनी सहायता के लिए #भरतपुर_के_राजा_सूरजमल_जाट_को_कहा |भरतपुर के राजा सूरजमल जाट ने गूगल सेनापति से मित्रता करके अपने पुत्र को आक्रमण करने का आदेश दिया।
सूरजमल के बेटे #जवाहर_सिंह ने कॉल परगने को घेर लिया | इस समय राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने पैतृक जागीर घासेड़ा में थे |

फरवरी - अप्रैल 1753 ई.

#सूरजमल_जाट ने घासेड़ा को चारों ओर से घेर लिया |
उसने अपने बेटे जवाहर सिंह और वजीर सफ़दरजंग को किले के उत्तरी छोर पर तैनात किया |
दक्षिण छोर पर बख्शी मोहनराम , सुल्तान सिंह , वीर नारायण समेत अपने भाइयों को तैनात किया |

#सूरजमल_खुद_5000_मुग़ल_जाट सेना सहित किले के मुख्य द्वार ( पूर्वी द्वार ) पर तैनात हुआ |
और बालू जाट के साथ कुछ मुग़ल सैनिक छोड़ उसे कहा कि जिस मोर्चे पर जरूरी हो पहुंच जाए |
घासेड़ा किला चारों ओर से घिरे जाने के कारण पहले दिन की लड़ाई में बड़गूजरों को काफी क्षति होती है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर का भाई जालिम सिंह और उसका बेटा कुँवर अजीत सिंह काफी ज़ख्मी होते है |
मुगल -- जाट सेना को भी नुकसान होता है |
कुछ दिनों तक युद्ध ऐसे ही चलता रहता है |
#सूरजमल_जाट किले में मौजूद #गोले_बारूद की चाह में एक सन्धि-प्रस्ताव भेजता है |
जिसमे वो किले का मोर्चा उठाने की बाबत में 10 लाख रु , गोला - बारूद और तोप मांगता है और आत्मसमर्पण करने को कहता है |
लेकिन राव #बहादुर_सिंह_बड़गूजर ने स्वाभिमान के विरुद्ध आत्मसमर्पण करने से मना कर देता है और सन्धि करने से मना कर देता है |
इसी बीच राव बहादुर सिंह बड़गूजर का भाई ज़ालिम सिंह का देहांत हो गया |रात को भीषण युद्ध होता है |

23 अप्रैल 1753 ई.

अगली सुबह मीर मुहम्मद पनाह , आलमगीर , नैनाराम सहित मुग़ल जाट सेना घासेड़ा में घुस जाती है |
बड़गूजरों और मुग़ल-जाट सेना में काफी भयानक युद्ध होता है | दोनों ओर से कई सैनिक मारे जाते है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने पुत्र कुँवर अजीत सिंह के साथ केसरिया बाना पहनकर मुग़ल - जाट सेना पर भूखे सिंह की भांति टूट पड़ता है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपनी टुकड़ी के साथ सूरजमल जाट वाली टुकड़ी पर आक्रमण करता है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर द्वारा मार - काट मचता देख सूरजमल जाट कुछ हद तक डर जाता है और पीछे हटता है कि तभी बालू जाट मुग़ल सेना की एक टुकड़ी लेकर सुरजमल जाट की सहायता के लिए आ जाता है |
जिससे राजपूतों का मनोबल टूट जाता है |
वहीं दूसरी ओर कुँवर अजीत सिंह अपनी सेना के साथ वजीर सफदरजंग की टुकड़ी पर हमला करता है |
कुँवर अजीत सिंह की तलवार से वजीर सफदरजंग के पास वाले सिपहसालार का सर कट जाता है जिससे वजीर सफदरजंग डर जाता है |
तभी सुल्तान सिंह के कहने पर वीरनारायण वजीर सफदरजंग की सहायता के लिए आ जाता है |
उधर सुल्तान सिंह दक्षिण द्वार तोड़ कर मुग़ल सेना के साथ अंदर आ जाता है | जिसे रोकने के लिए 60 - 70 राजपूत सैनिक आगे आते है पर मुग़ल सेना ज्यादा होने के कारण सभी मारे जाते है |
यह सभी इतना जल्दी और अचानक होता है कि राजपूतों को जवाबी कार्यवाही का समय ही नही मिलता |
एक समय के लिए किले में मौत का तांडव हुआ सा प्रतीत होता है |
सभी ओर से जीत की कोई उम्मीद नही होने पर राव बहादुर सिंह की पत्नी , पुत्री राजपरिवार की महिलाओं के साथ अन्य राजपूत क्षत्राणियां और किले में मौजूद सभी महिलाएं जौहर करती है |
#किले_में_लकड़ियों_के_नही_होने_की_वजह_से_क्षत्राणियां_गोले_बारूदों_पर_बैठ_कर_जौहर_करती_है और मुग़ल सेना से अपनी सतीत्व की रक्षा करती है |

#सूरजमल_जाट_और_मुगलो_का_तिल्सिम_उस _वक़्त टूट जाता है जब वो देखते है की किले में लकडिया न होने के कारण सैकड़ों राजपूत महिलाएं जौहर की रस्म गोला और बारूद पर करती है और इतिहास में अमर हो जाती है।

#इतिहास_में_यह__संभवत_पहला_मौका_होता_है_जब_जौहर_की_रस्म_किसी_हिन्दू_राजा(सूरजमल_जाट)#के_सामने_हुयी_हो।

उधर राव बहादुर सिंह बड़गूजर , कुँवर अजीत सिंह शाका करते हैं और युद्ध मे मारे जाते है |
यह जौहर राजपूताने का अंतिम जौहर होता है |
इस जौहर के बाद राजपूताने में कोई और जौहर नही हुआ |
सभी क्षत्राणियों को नमन जिन्होंने धर्म पर अडिग रहकर
राजपूतों की परंपरा का पालन किया |

#मुग़ल_सल्तनत_ओर_जाट_सेना_के आगे राजपूतों ने आत्मसमर्पण नही किया और क्षत्रिय धर्म का पालन किया |

पेज राजपूताना रियासत

कुंवर महेंद्र सिंह राठौड़

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पागी

#पग_ढकणा , #पागी , #खुरा , #FOOT_MARKS , #पदचिन्ह
          
     तकनीक से लबालब इस युग से पहले जब कोई अपराध घटित होता था , तो प्रथम सबूत के तौर पर ये तकनीक अपनाई जाती थी ! थार के एक गाँव में कुछ दिन पहले किसी व्यक्ति की थङी को किसी #कुम्माणस नें आग लगा दी , और अपनी मोटर साईकिल से चलता बना !
             प्रात: काल सूचना मिलने पर एकत्र जन समुदाय द्वारा उनके पदचिन्हों को उक्त तगारियों द्वारा ढक दिया गया , ताकि वे चलती हवा के साथ उङती बालू रेत के साथ विलुप्त ना हो जाएँ ! इन पदचिन्हों को पहचानने वाले पागी अब सीमित मात्रा में बचे हैं !
              #गुलाबसिंह_सोढा_मते_का_तला ढाट के नामी पागी थे , जिन्हें सीमा सुरक्षा बल नें शैक्षिक योग्यता को दरकिनार कर साक्षर मात्र होने के बावजूद अपने बेङे में भर्ती किया ! नब्बे के दशक की शुरूआत में जब पश्चिमी सीमा पर तारबंदी नहीं थी और तस्करी अपने यौवन पर थी , तब गुलाबसिंह जी धोरों पर मंडे ऊँट के पाँवों के निशान देखकर बता देते थे कि ये ऊँट इतना समय पहले यहाँ से गुजरा है व इतना वजन उस पर लदा हुआ था ! बिना भार लदे ऊँट के पाँव बालू में कम धँसते थे , जबकि भार लदा होने पर वे धँसे हुए नजर आते थे !
        यही नहीं , वे किसी व्यक्ति के नंगे पदचिन्ह को एक बार देख लेने के बाद वर्षों तक उसकी विशिष्ट पदचिन्ह पहचान को भूलते नहीं थे ! अपने लम्बे कार्यकाल में उन्होंनें पदचिन्हों के आधार पर अनेक अपराधियों को पकङवाकर राष्ट्रसेवा की ! गाँव में किसी भी प्रकार के अपराध घटित होने पर पागियों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है !
     इन पदचिन्हों की मार्फत पागी अपराधी की पहचान में अब भी समर्थ है , पर अव्वल तो पागी गिने - चुने बचे हैं और आलम ये है कि पहचान हो भी गई तो अपराधी व उसके #पावळिये पागी को अनेक प्रकार के संकटों में डाल सकते हैं ! तब वर्तमान के क्लिष्ट व मूल्यरहित समय की सर्वाधिक प्रासंगिक और प्रचलित उक्ति "#अपने_क्या_है_जाने_दो_भाङ_में " की तर्ज पर वे भी स्वयं को बचाने का जतन करते हुए किनारा कर लेते हैं !
          इन तगारियों के तले ढककर सुरक्षित रखे पदचिन्ह अपराधी की पहचान कर पाएँगे अथवा नहीं , यह वर्तमान दौर में इतना महत्वपूर्ण नहीं है , किंतु उस सौहार्द्रपूर्ण समय की तस्वीर एक बार फिर से याद दिला जायेंगे कि हमारी पीढियों नें इन नायाब और पूर्ण  प्राकृतिक तरीकों से अपने सुदृढ सामाजिक वजूद को बचाए रखा !
           #ढाटधरा अपने समृद्ध सरोकारों से सदैव आबाद रही है ! वातावरण और जीवनयापन हेतु कङे संघर्षों के बावजूद  #ढाटियों नें अपनी प्रबल जिजीविषा के चलते हर तरह से अनुकूलन स्थापित करते हुए अपने आप को आबाद और अद्यतन रखा है !

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

नमो करनला निहालै निजर नित नेहरी

नमो करनला निहालै निजर नित नेहरी--
गीत -प्रहास साणोर
नमो करनला निहाल़ै निजर नित नेहरी,
बगत मा ऐहरी राख बातां।
शरम तो भुजां मुझ गेहरी शंकरी,
आण मत मेहरी देर आतां।।1
सेवगां आपरां काज अग सारिया,
तारिया बूडतां समंद ताणै।
जोरबल़ राकसां किता दल़ जारिया,
जगत में धारिया रूप जाणै।।2
विघन कल़िकाल़ रो मेटती बीसहथ,
भेंटती सुपातां रिजक भारी।
फेटती वरण रा अरि कर फिड़कला,
थेटती रही आ बाण थारी।।3
सुछत्री थापिया पाणबल़ सांपरत,
राज वड आपिया जिकां रीझी।
जयंकर सुजस तो जापिया जोगणी,
खुटल़ नर सापिया तिकां खीझी।।4
पातवां पुकारै सनातन पाल़ती,
ताप दुख टाल़ती वेग तारां।
भाल़ती सताबी आय कर भीर नैं,
गाल़ती रूठ नैं विघनगारां।।5
धिनोधिन विमल़ तन लोहड़ी धारणी,
चारणी धरै सो करै चातां।
थाट कर सेवगां काल़जो ठारणी,
हाकड़ो जारणी समंद हाथां।।6
झमंककर झांझरां पगां झणकारती,
नेहियां धारती मनां नातो।
खमा निज पाणवां खाग खणकारती,
तांण तणकारती सिंघ तातो।।7
धावियां चढै तूं जंगल़धर धिराणी,
लालधज समंगल़ भीर लैणी।
मोचणी अमंगल़ जाहरां महिपर,
दंगल़ में जैत नैं जीत दैणी।।8
उबारै अणंद नैं कूप बिच ईसरी,
ताल़ जद तीसरी पूग ताती।
नीच वो काल़ियो विडारण नीसरी,
खरै मन रीसरी जाय खाती।।9
पातवां कुबुद्धि परहरै प्रीतकर,
जीतकर कल़ू में वल़ू जामी।
रीत मरजाद री द्रिढ नित राहपर,
नीत पथ बहै निज बाल़ नामी।।10
दूरकर नसै सूं जात नैं डोकरी,
सूरकर साचपण जगत साखी।
पूरकर भणाई आपसी प्रेमकर,
राज ओ हूर कर महर राखी।।11
कल़ै नीं कुरीतां आपरी कोम आ,
सदा रह अल़ै सूं परै सारी।
सल़ै रह सल़ूझी अवर सथ समाजां,
भल़ै तो चरण में भाव भारी।।12
सुतन नैं बेटियां मानणा समोवड़,
रतन कर जिणां नैं पाल़ राखै।
जतन कर गुमर सूं लहै निज जीवारी,
उतन प्रत श्रद्धा रा कवत आखै।।13
चारणाचार री वाट बह चावसूं,
सार री गहै नित बात सारा।
जुगत कर कार री जपै जस जोगणी,
थाप इण वार री दास थारा।।14
पाय पड़ पुकारूं तनै परमेसरी,
सायकर सायकर सदा सेवी।
जीयाहर गीधियो गाय गुण जामणी,
दायकर मनै तूं गीत देवी।।15
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

राव चाम्पा

राव चाम्पा
*राव चाम्पा जी चाम्पावतो के मूल पुरूष है  वे *राव रिङमल जी*  के *ज्येष्ठ पुत्र* थे
वे चौबीस भाइयो मे ज्येष्ठ थे *इनका जन्म माघ शुक्ला 3 सम्वत1469* को हुआ था 
इनका ननिहाल *चौहान राजपूतो* मे था
किसी कवि ने कहा है:-
*सोनगरा बङभागी जिणरा सपूत कहिजे भाण*
*एक चाम्पो रिङमलोत  दुजो प्रताप राण*
जब राव रिङमल जी कि शिशोदियो ने मेवाङ  हत्या करके मण्डोर पर कब्जा कर लिया तब राव चाम्पा जोधा
और भाईयो ने मिलकर मण्डोर वापस जित लिया और *शिशोदियो* को खदेङ दिया और उनका मेवाङ तक पिछा किया  और अपने घोङो को पिछोला की झील पर पानी पिलाया
इसी सन्दर्भ मै जब हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद मानसिह जब अपने घोङो को *पिछोला* कि झील पर पानी पीला रहे थे  तब घमण्ड मे कहा या तो यहा घोङे मेने ही पाये या फिर  रिङमल राठौङ के बेटो ने हि पाया  तब पास मे किसी चारण ने ताना मारते हुये कहा  मानसिंह जी रिङमल के बेटो ने तो पिछोला पर घोङे अपने भुजबल पर पाये थे  पर आप तो अकबर के भुजबल पर पा रहे हो
राव चाम्पा को भाई बन्ट मे *बणाङ* व *कापरङा*  ठिकाना मिला  इनी के  वन्श मे एक से बढकर एक वीर हुये *राव गोपालदास जी* जिन्होंने चारणो के खातिर अपनी पाली की जागीर तक छोङने को तैयार हो गये  फिर उनके बेटे *बल्लूजी* जो आगरा के किले से अमरसिंह का शव लेकर आये  *पोकरण ठाकुर देवीसिह जी* जैसे महत्वाकांक्षी वीर हुये *लोकदेवता बगत सिह जी पीलवा* *ठाकुर खुशाल सिह आउवा* जैसो ने  इनी के कुल  मे जन्म लिया  इनको कई मनसब ठिकाने ताजिमी ठिकाने परगने मिले इनके पराक्रम के कारण ही इनको मरूधर का *चान्दणा*(प्रकाश)और *मोङ* (सिरपेश)कहा है   आज चम्पावत राठौङो के 93 गांव  है
भोम सिंह चम्पावत देणोक

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

मुंछ के बाल

इतिहास के पन्नों में जोधपुर के रहस्य ।

पचास हजार में गिरवी रखे मुंछ के बाल के चुकाए 1लाख

संवत 16O1 में महाराजा गजे सिंह के जेष्ट पुत्र वीर अमर सिंह राठौड़ का आगरे के किले में हुए युद्ध में देहांत हो गया था। उनके पीछे रानियों ने राव अमर सिंह का मस्तक लाने के लिए बल्लू चंपावत के नेतृत्व में फौज तैयार की। आगरा के किले का दरवाजा बंद था, इसलिए उसे तोड़ने के लिए विशेष दल की आवश्यकता थी। उन समय नई भर्ती के लिए धन का अभाव था, अतः बल्लू चंपावत ने आगरे के एक व्यापारी सेठ के पास अपनी मूंछ का बाल गिरवी रख कर पचास हजार रुपए उधार लिए। सेना तैयार हो गई ,भीषण युद्ध हुआ और राठौड़ सैनिक अमर सिंह का मस्तक लाने में सफल रहे। रानियों ने पति के मस्तक के साथ चीतारोहण किया और बल्लू चंपावत स्वयं लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर गए। इस प्रकार सेठ के रुपयों का मामला ठंडा पड़ गया। कुछ पीढ़ियों के बाद आगरा के उसी नगर सेठ के वंशज निर्धन हो गए। तब उन्होंने बहियों के पुराने खत-खातों को देखना शुरु किया। इसी क्रम में एक डिबिया में बल्लू का रुक्का और उनका मूंछ का बाल मिल गया। यह सेठ पता लगाता हुए मारवाड़ के हरसोलाव ठिकाने में बल्लू के वंशज ठाकुर सूरत सिंह चंपावत के पास पहुंचा। सूरत सिंह जोधपुर की तत्कालीन महाराजा विजय सिंह के समय दुर्ग रक्षक और ईमानदार क्षत्रिय थे।अपने पूर्वज की मूंछ के बाल को शरीर का अंग मानकर विधिवत दाह संस्कार किया और बारह दिनों तक शोक रख कर दान, पुण्य, भोज सहित रिवाज पूरे किए। फिर उस सेठ का हिसाब करवाया तो ब्याज का ब्याज जोड़ने में रकम बहुत अधिक बढ़ गई और ठाकुर उसका पूरा चुकारा करना चाहते थे। असंभव की स्थिति और  इमानदारी की पराकाष्ठा देख कर पंचो ने यह निर्णय दिया की दाम दृणा अर धान च्यार। घास-फूस रौ छेह न पार। अर्थात कितना भी समय बीत जाने पर भी दाम दुगुने और अनाज चौगुुना देने पर पूरी स्वीकृति हुई।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

क्षत्राणी हाड़ी राणी

क्षत्राणी हाड़ी राणी
"सर काट सजाया थाल दी निशानी युद्ध पर जाने को।"

हे हिन्द के हिन्दुस्तानी,क्या दुनियां में देखी है ऐसी कुर्बानी-देश,धर्म तथा स्वाधीनता से विपत्ति्ग्रस्त होने पर क्षत्रिय वीर ललनाएँ किस प्रकार अपने पतियों को उत्साहित कर उन्हें कर्तव्य पथ पर स्थिर रखने के लिए आत्म-बलिदान करती थी, *(हाड़ी राणी राजपूत हाड़ा चौहान वंश की पुत्री)* ज्वलन्त दृष्टांत आत्म -त्यागिनी हाड़ी रानी की जीवनी से स्पष्ट हो रहा है। जिस समय सलूम्बर के रावत रतनसिंह जी अपनी नवयौवना पत्नी के मोह में पड़ कर क्षत्रिय कर्तव्य से विचलित हो रहे थे,उस समय उनकी धर्मपत्नी हाड़ी रानी ने उनको कर्तव्य पर स्थिर रखने के लिए अपनी जो बलि चढ़ाई थी,वह अतुलनीय है,उसकी तुलना संसार के किसी बलिदान से नहीं की जा सकती।
‎मुगल बादशाह औरंगजेब बड़ा ही अधर्मी,क्रूर एवं धर्मांध शासक था।वह किशनगढ़ राज्य की राजकुमारी चरूमती का डोला मांग रहा था । किशनगढ़ छोटी से रियासत थी और उस मुगल बादशाह का मुकाबला करने में सक्षम भी नहीं थी। राजकुमारी जब उस मुगल औरंगजेब के अधर्मी इरादे का पता चला तो वह बहुत चिंतित हुई।

‎ इसी काल में मेवाड़ में महाराणा की गद्दी पर महाराणा राजसिंह विराजमान थे जो एक वीर ओर निर्भीक शासक होने के साथ ही न्यायप्रिय भी थे। साहस ओर हिम्मत के साथ हर मुसीबत में दृढ़ता का परिचय देकर उन्होंने चारों ओर डंका बजा रखा था।उधर जब किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती को दुष्ट औरंगजेब से बचने का कोई रास्ता समझ नहीं आया तब उसने महाराणा राजसिंह जी को मन ही मन "वरण"{पति मान लिया} कर लिया और अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु प्रार्थना की । जब राजकुमारी चारुमती का संदेश मेवाड़ पहुंचा तो असमंजस की स्थिति पैदा हो गई। एक ओर राजपूती आन-बान-मान और मर्यादा का प्रश्न था दूसरी ओर औरंगजेब जैसे शक्तिशाली और क्रूर धर्मांध बादशाह से दुश्मनी मोल लेना था।

‎मेवाड़ के राजमहल में आम सभा बुलाई गई और महाराणा राजसिंह जी ने अपने मंत्रियों और सामन्तों से मन्त्रणा करने के बाद राजकुमारी चारुमती का आग्रह स्वीकार कर लिया ।चारुमती के विवाह करने हेतु प्रस्थान की तैयारियां होने लगीं।

‎सलूम्बर के रावत रतनसिंह जी चूंडावत मेवाड़ के महाराणा राजसिंह जी के प्रमुख उमराव थे। वीरवर सलूम्बर रावत ने अपनी नव विवाहिता हाड़ी रानी को चारुमती के विनय का वर्णन सुनाया तथा कल प्रातः ही महाराणा उससे विवाह करने हेतु प्रस्थान करेंगे,इसकी सूचना दी।सारा व्रतांत सुनकर हाड़ी रानी प्रसन्न हुई और उसे इस बात की खुशी हुई कि चारुमती की रक्षा करने महाराणा राजसिंह जी तैयार हुए।
अपने पति से निवेदन करते हुए हाड़ी रानी जो कि कुछ ही दिन पहले शादी होकर ही आईं ही थी कहने लगी -- *"आपके लिए भी यह सुनहरा अवसर है। अपने स्वामी के साथ आप एक राजपूत बाला को कठिन परिस्थिति से उबारने को जारहे है। नारी की रक्षा करना क्षत्रिय का पुनीत कर्तव्य है और आप इसे भलीभांति निभायें ,यही कामना करती हूं*"। वैसे भी हाड़ा राजपूतों की बेटियां सुन्दरता के साथ -साथ वीरता एवं दबंगता में भी चारों ओर प्रसिद्ध थी। रानी दुर्गावती तथा रानी कर्णावती पूर्व में भी चित्तौड़ में जौहर की अगुवा रही थी ओर उनकी कीर्ति देश के कोने-कोने में फैली हुई थी ।
‎ रावत रत्नसिंह जी वीर और साहसी राजपूत थे किंतु वह अपनी रानी के स्नेह और प्रेम में खोये हुए थे जो नव विवाहित के लिए स्वाभाविक भी था। अपनी नव विवाहिता के सौन्दर्य को खुली आँखों से अभी निरख भी नहीं पाए थे,मधुर सपनों की कल्पना के किसलय विकसित होने से पहले ही उन्हें मुरझाते हुए प्रतीत हुए। युद्ध के लिए वीर वेश धारण कर लिया,फिर भी रावत के मन में हाड़ी रानी बसी थी,आँख उसी को निहारने हेतु एकटक झरोखे पर टिकी थी ।परम्परा के अनुसार हाड़ी रानी ने माथे पर तिलक किया विदा दी,ओर स्वयं सेना को जाते देखने के लिए महलों के "गोखले"{खिड़की} में बैठ गई ।कूच का बिगुल बजा,सेना रवाना होने लगी और चुंडावत सरदार का मन डाँवा -डोल होने लगा,घोड़ा आगे,पीछे हो रहा था,चूंडावत सरदार बैचैन थे,कुछ क्षण चला यह आलम हाड़ी रानी की नजरों से नहीं बच सका, रानी ने संदेश वाहक भेजकर पुछवाया कि *"युद्ध में जाने के समय यह हिचकिचाहट कैसी है"* सरदार ने संदेश वाहक से कहा कि "रानी से जाकर कहो,राजकुमार को उनकी निशानी चाहिए । जब रानी को संदेश वाहक ने कहा कि *"सरदार को आपकी प्रेम निशानी चाहिए"* तो हाड़ी रानी असमंजस में पड़ गई कुछ चिंतित हुई और समझ गई कि *"चूंडावत का मन डाँवा -डोल है"* और इस स्थिति में यदि ये युद्ध भूमि में गये तो इनकी वीरता, इनका साहस शायद साथ न दे और कोई अनहोनी भी हो सकती है, क्यों कि इनका मन, रानी के रूप,सौंदर्य और प्रेम में उलझ गया है ।"

‎क्षत्राणी ने कुछ पल विचार करके सोचा ओर एक ऐसा दिल दहलाने वाला निर्णय लिया जो आज से पूर्व दुनिया के इतिहास में न तो किसी ने लिया था ओर न उसके बाद भी ऐसी मिसाल आज तक कायम हो सकी। अपनी दासी को भेजकर एक थाल मंगाया तथा एक पत्र भी लिखा, रानी ने दासी को सब कुछ समझाया ओर तलवार के एक वार से अपना सिर काटकर अलग कर दिया। दासी ने उसे कहे अनुसार खुले बाल का कटा सिर एवं पत्र थाल में सजाकर चूंडावत सरदार के संदेशवाहक को दे दिया ओर रानी का संदेश भी बता दिया। चूंडावत सरदार निशानी की चाहत के लिए बेचैन थे ,संदेशवाहक के पहुंचते ही घोड़े पर बैठे -बैठे जैसे ही उसने थाल पर ढके कपड़े को हटाया विस्मय एवं आश्चर्य से वह उस प्रेम की निशानी को देखते ही आवक रह गए। प्रतिक्रिया में तांडव का भूचाल सरदार के मन में आगया। बड़े आदर ,प्रेम और सत्कार से उस रक्त रंजित कटे सिर को उठाया और खुले बालों वाले उस सिर को अपने गले में लटका लिया, जोरदार हुंकार भरी ओर घोड़े को ऐड लगाई,घोड़ा पवन गति से आगे बढ़ा औऱ चूंडावत सरदार की उस सेना ने युद्ध भूमि में पहुंचने से पूर्व पीछे मुड़कर नहीं देखा। पूर्व योजना के अनुसार इस सेना ने मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना को रोके रखा और उधर महाराणा राजसिंह जी किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती को ब्याह कर मेवाड़ के महलों में पहुंच गए। तत्कालीन मुगल इतिहासकारों ने भी लिखा है कि चूंडावत रत्नसिंह ने बादशाह की सेना में ऐसी तबाही मचाई कि कई मुगल सैनिक उसका रौद्र रूप देखकर आश्चर्य चकित रह गए और अपने प्राण बचा कर भागने  लगे। सलूम्बर के इस वीर योद्धा ने अपने साहस व वीरता का परिचय देकर अपने कर्तव्य का पूर्णतया पालन कर युद्ध में वीर-गति को प्राप्त किया ।

‎ हाड़ी रानी के इस बलिदान  ने उसे संसार के सतियों में एक उच्च स्थान दिया।रानी इस लोक से तो चली गई पर अमर हो गई ।इसकी तुलना संसार के किसी बलिदान से नहीं की जासकती ।जब तक धरती रहेगी,इतिहास पढ़ा जायगा तब -तब हाड़ी रानी का बलिदान अवश्य याद किया जायेगा। धन्य है वह देवी ,जिसने अपने स्वामी को कर्तव्य पर स्थिर रखने के लिए अपने जीवन की बलि चढ़ा दी ।

‎ *"चूंडावत मांगी सैनानी,सिर काट भेज दिया क्षत्राणी"*

‎धन्य है क्षत्रिय बाला,धन्य है क्षत्रिय जाति,धन्य है उसका साहस व कर्तव्य पथ और धन्य है उनका मातृभूमि के प्रति प्रेम और सम्मान।

‎हर तलवार पर,राजपूतों की कहानी है।
‎देश के हर क्षेत्र का राजपूत बलिदानी है।।
‎देश के लिए राजपूतों ने दी बड़ी बड़ी कुर्बानी है ।
‎तभी तो देश -दुनिया,राजपूतों की दीवानी है।।

‎ हे हिन्द के भाइयो,माताओ,बहिनो,हाड़ी रानी और रावत रत्न सिंह जी चूंडावत के बलिदान से शिक्षा ग्रहण के राष्ट,जाति तथा धर्म की रक्षा में अपना योगदान निहित करो,इसी में देश,धर्म और हम सब का कल्याण है ।

‎लेकिन बड़ी खुशी और गौरव की बात है कि आज भी क्षत्राणियां अपने पति और पुत्रों को सेना में जाने के लिए ओर शहादत के लिए उत्साहित कर प्रेरणा देती है। अपने बच्चों को राष्ट्रभक्ति एवं ईमानदारी का पाठ पढ़ाती है जिससे बच्चों में अपने पूर्वजों के संस्कार समाहित हो सकें । शक्ति एवं भक्ति की गंगा -यमुना की पावन पवित्र धारा में क्षत्राणियों ने जो योगदान दिया वह स्मरणीय,प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय है।

‎लेकिन बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के हमारे इतिहास में हमारे पूर्वजों के बलिदान को आज युवाओं को नहीं पढ़ाया जाता ।

देश स्वतंत्र होने के बाद हकीकत में राजपूतों के  वीरता -शौर्यतापूर्ण राष्ट्रभक्ति के बलिदान के इतिहास को विलुप्त किया गया । इतिहास बनाया गया ऐसे लोगों का जिनका कोई देश रक्षा में बलिदान ओर योगदान नहीं । अब युवाओं को जाग्रत होने की आवश्यकता है। अब युद्ध तलवार से नहीं बल्कि शिक्षित होकर लड़ना होगा तभी हम अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को बचा पायेंगे ।