शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

सोमनाथ री लिंग

जद अलाऊदीन खिलजी सोमनाथ री लिंग लियां मदछकियो जाल़ोर री आंटीली धरा में बड़ियो तो अठै रै अडर अर धरम रक्षक शासक कान्हड़दे आपरै आपाण रै पाण खिलजी सूं खेटा कर लिंग खोसली अर माण सहित सरना गांम में थापित करी।इणी रै अजरेल अर जबरेल सपूत वीरमदे री वीरता अर सुंदरता देखर अलाऊदीन री बेटी फिरोजा रीझगी अर हट पकड़ियो कै शादी करेला तो इणी वीरम रै साथै !नीं तो कंवारी ई भली।बादशाह कान्हड़़दे नैं कैवाय़ो पण वीरमदे नटग्यो ।बांकीदासजी रै आखरां में-
*परणूं धी पतसाह री,*
*रजवट लागै रोग।*
*वर अपछर वीरम कहै,जांणो सुरपुर जोग।।*
अलाऊदीन खिलजी आपरी बेटी फिरोजा नै पैला मान मनोवल़ सू अर पछै वीरमदे नैं मांडै परणावण जालोर चढ आयो पण धरम रक्षक अर स्वाभिमान रो सेहरो बांधणियो वीरमदे एक विधर्मी जाति री स्त्री नैं वरण करण सूं सफा नटग्यो।फौज घणा दिन पड़ी रैयी पण पार नीं पड़ी।कुजोग सूं इणी धरा रै वीकै दइयै गढ रो भेद दियो।छत्राण्यां सहित बीजी जाति री वीरांगनावां जौहर री ज्वाल़ां झूली अर वीरां केशरिया करर वि. सं.1368 में साको करर जाल़ोर धरा नैं जस दिरायो।इण लड़ाई में वीरमदे रा प्रिय कवि *सहजपाल़ गाडण आपरै भाई नरपाल, मान अर कान भतीजै,दो आपरै खवास सेवकां साथै घणी बहादुरी सूं लड़र वीरगति वरी।*
जाल़ोर गढ रो भेद देवणियो वीको जद मोद सूं घरै गयो अर इणरी घरनार वीरांगना हीरांदे नैं देश घात करण रो ठाह लागो तो उण ,उणी घड़ी आपरी कटार सूं देश द्रोही धणी नैं मारर मोद सूं वैध्वय अंगेजियो।
आज म्हारा मित्र अर स्नेही शंभुसिंहजी बावरला एक पोस्ट घालर इण महान सपूत वीरमदे रो बलिदान दिवस  आ कैयर याद दिलायो कै-
*मात-पिता सुत मेहल़ी,*
*बांधव वीसारैह।*
*सूरां पूरां बातड़ी ,चारण चीतारैह।।*
इणी संदेश रै साथै म्है ई उण महान धरम रक्षक वीर नैं आखर पुष्प चढाया  है सो आपरी निजर कर रह्यो हूं-

सनातनी मरजादा पाल़णियै महान वीर वीरमदे सोनगरै रो गीत-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीत प्रहास साणोर
अवतार वो गिणीजै शंकर रो इल़ा पर,
खागधर कान्हड़ै कीर्त खाटी।
महाबल़ कनकगिर राखियो मछरधर,
दोयणां आवती घड़ां दाटी।।1

सोनगरो सधर कज  बात कज सूरमो,
निडरपण केवियां अड़्यो नांमी।
मांण हिंदवांण रो राखियो मरटधर,
भाल़ सब भारती हुवा भांमी।।2

सोहड़ उण सा'यता कर सज संभ री,
धिनो ससीनाथ कज मरण धारै।
खोस लिंग थापना करी खत्रवाट वट,
मरट तुरकांण रो वीर मारै।।3

अलाऊदीन जद आवियो उरड़ मन,
वीरम नै दियण निज आप बेटी।
कान्ह नै कहायो बता करवाल़ कर,
जोधवर मेलजै परण जेठी।।4

सांभल़्यां वैण अरियांण रा सूरमै,
वीरमै धिनो मछरीक वंकै।
कनकगिर अखंडित रखण वा कीरती,
अडर नह धमकियां गिणी अंकै।।5

बोलियो महाबल़ मोत नै वरण लूं,
वरूं नह तुरक री कदै बेटी।
जीवतो कदै नह हुवण दो जोयलो,
हाथ हिंदवांण री मूंछ हेठी।।6

कनकगिर घिरी गो फौज बल़ केवियां,
क्रोध तुरकाण धर अथग कोपै।
मांण कज मरण नैं संभ्या मछरीक मन,
रणांगण अगंद ज्यूं पाव रोपै।।7

किता दिन फौज वा पड़ी री कनकगिर,
वीरम रो हुवो ना बाल़ वांको।
वीकियै दियो वो भेद गढ विदर जद,
आवियो वीरगत वरण आंको।।8

किया जद सूरमां मरण नैं केशरिया,
रंग छत्रांणियां झल़ां रीझी।
वंदना मात भू करी भड़ वीरमै,
खाग अरियाण सिर जदै खीझी।।9

अड़ण नैं अलाऊदीन सूं उरड़िया,
सोनगरा मोत सूं भिड़ण साचा।
बेख वा काल़ री जदै विकराल़ता,
पेख पग कायरां पड़्या काचा।।10

वरी ना तुरकणी कान्ह सुत वींदणी,
मांण कज अपछरा वरी मांटी।
सुजस रो हालियो बांध नैं सेहरो,
चुतरभुज नाथ री करण चांटी।।11

*धिनो कवराज वो कनकगिर धरा रो,*
*मोत नैं सांमछल़ वरी माथै।*
*गाडणां राव गढ काज धर गाढ नैं*
*सहजो वीरम रै गयो साथै।।12*

द्रोह निज देश सूं कियै इण दइयै
वीक री कमी नैं कही वीरां।
छत्राणी खमंध नैं मार नैं उणी छिण
दुहागण देश कज हुई *हीरां।।13*

अभंग वा कीरती वीरमै अखंडित
रंग धर वीरती अमर राखी।
गुणी ज्यूं सुणी इतियास री गिरधरै
साच मन बणाई बात साखी।।14

जबर भड़ वीरमो धरम कज जूझियो
छतो निज देह रो मोह छांडै।
सोनगरै शंभ नैं गीत ओ सरस मन
मित्रता भाव सूं दियो मांडै।।15

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

शौर्य शेखा का

#शेखावत_वंश व शेखावाटी के प्रवर्तक, प्रातःस्मरणीय,नारी रक्षक, साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक, वीरवर क्षत्रिय शिरोमणि पूजनीय_महाराव_शेखाजी के 530वे निर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन..

शेखाजी से हार के बाद चन्द्रसेन का अपनी हार पर चिन्तन करना और अपनी सेना को संगठित कर शेखाजी पर फिर से आक्रमण की तैयारी करना।

         शौर्य शेखा का अध्याय-6
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शेखा आ तूँ बुरी करी,घटग्यो म्हारो माण।
वक़्त वक़्त री बातां सारी,वक़्त प लेस्यां जाण।।

वक़्त थारो तो आतोड़ो है,म्हारी गयी पिछाण।
शेर मारण र खातर शेखा,ऊँचो घाल्यो मचाण।।

चन्द्रसेन रा राज र माँहि,काळो पड्यो अकाश।
चाँद सूरज भी काळा पड़ग्या ,ना देवे प्रकाश।।

जीत है जश्न मानवणी,जीत्यो गढ़ आमेर।
रही अबे न लाग लपट अर,ना ही रही बछेर।।

शेखा थारो जस बढियो बढ्यो सिंघ रो राज।
कुल कछावा माँहि शेखो,भुपां रो शरताज।।

हार,हरण सूं मरण भलो,भलो बिना सिर ताज।
काट्या पंख पखेरू रा,ना पँखा परवाज।।

चिंता चिता समान है,चिंता चित रो नाश।
चिंता छोडो चंद्रराज जी,इण सूं हुवे विनाश।।

गढ़ आमेरी लश्कर डटिया,गाँव धुळी र खेत।
आज बचेड़ो चुकसी शेखा,चुकसी सूद समेत।।

घणो तने समझायो चन्दरजी,मत न रोपे फ़ांस।
रण मं पीठ दिखावणियो,तूँ कुल रो खोनाश।।

हारया ओजूं फेर चन्दरजी,भाग रह्या ढुंढाँर।
अबक शेखोजी कर लियो,कूकस पर अधिकार।।

जे गढ़ आमेरी सूरज डूब्यो,रुळ ज्यासी ढ़ूंढ़ाड़।
एको करल्यो अब सगळा,जीत लेवां बरवाड़।।

शेखो अब ललकार रह्यो,सकल कछावा भूप।
कसल्यो काठी घुड़लां री,रण में करस्यां कूच।।

नरुजी जायो नार रो,चन्दर थारे साथ।
गढ़ आमेरी मान राखस्यां,धर तरवारां हाथ।।

रणछोड़ू रणधीर थे होग्या,दो बर बखस्या प्राण।
तीजां रण र माहि चन्दर जी,थारा जगे मसाण।।

किण भगतां तूं जण्यो चंद्रजी,कलंक लग्यो रघुराज।
घणा घणा कुलधीर जन्मिया,इण कुल रा सिरताज।।

कुबद थारी अब मिटे चन्द्रजी,रख रजपूती मान।
कायर बणियो कुळ कलंक ,भागे रण मैदान।।

रजपूती रो जायो नहीं,जे छूटे मैदान।
ओ शेखो तो रण रमें,रण रो है बरदान।।

जे तूं साँचो बीर कहिजे,रण मं मिल्जये आज।
थारो शीश चढ़ाय के,रखूँ कछावा लाज।।

कुल कछाव जन्म लियो,जन्माय वीर अनूप।
शेखा मिलसी रण माँहि,सकल ढूंढाड़ी भूप।।

गढ़ आमेरी  लश्कर उतराया,कूकस नद री पाळ।
शेखाजी रा लश्कर देखो,शस्त्र लिया सम्भाळ।।

देख शेखा रा लश्कर न,नरजी है बेहाल।
सूरज जेड़ो चमक रह्यो,शेखाजी रो भाल।।

झट नरजी अब पाळो बदल्यो,शेखाजी शरणाय।
नरजी थारे  साथ है शेखा,हारलो चन्दराय।।

नरजी शेखा लश्कर माँहि,लग्यो चन्दर र घात।
म्हरो साथ निभावणीय अब,शेखाजी र साथ।।

हार मान क अब चन्द्रजी भेज्यो एक प्रस्ताव।
शेखा संधि मान ल्यो म्हारी,मेटो अब दुर्भाव।।

आखातीज

सूरज री नई रोशनी में,हवा री आवाज।
मुळके मरूधर री माटी,आ गई आखातीज।।
हळियों लेकर हालिया,खेतां बोवा बीज।
छांटा करजे सावरा,आई आखातीज।।
सुगन होवे सांतरा,मैटो मन री खीज।
सागे हालो सांवरा ,आई आखातीज।।
करसो निरखे कैर ने,हिवड़ो गयो पसीज।
बरखा होसी जोर री,कैवे आखातीज।।
बाजरियो रो सोगरो,मँग मोट री दाळ।
खिच बणायो जोर रो,जीमो थे गोपाळ।।
कैर कुमठिया सांगरी,बाजरिया रा रोट।
छाछ परोसूं थाळ में,मारवाड़ री गोठ।।
हेत घणो है रेत सूं,खेत सजावे तान।मौखळी बरखा देखने,मुळके मोर किसान।।

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

हाड़ी रानी पर कविता

हाड़ी रानी
मन्ना डे द्वारा गायी कविता १९६५ में बनी हिंदी फिल्म "नई उमर की नई फसल" में मन्ना डे द्वारा राजस्थान के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत की हाड़ी रानी पर गायी गई एक कविता का वीडियो मिला | तो आइये देखते है मेवाड़ के सलुम्बर ठिकाने की उस वीरांगना रानी जिसने युद्ध में जाते अपने पति के द्वारा निशानी मांगे जाने पर अपना शीश काटकर भेज दिया था | इस फिल्म में हाड़ी रानी पर गायी गई इस कविता उपर्युक्त पंक्तिया

थी शुभ सुहाग की रात मधुर
मधु छलक रहा था कण कण में
सपने जगते थे नैनों में
अरमान मचलते थे मन में

सरदार मगन मन झूम रहा
पल पल हर अंग फड़कता था
होठों पर प्यास महकती थी
प्राणों में प्यार धड़कता था

तब ही घूँघट में मुस्काती
पग पायल छम छम छमकाती
रानी अन्तःअपुर में आयी
कुछ सकुचाती कुछ शरमाती
मेंहदी से हाथ रचे दोनों
माथे पर कुमकुम का टीका
गोरा मुखड़ा मुस्का दे तो
पूनम का चाँद लगे फ़ीका

धीरे से बढ़ चूड़ावत ने २
रानी का घूँघट पट खोला
नस नस में कौंध गई बिजली
पीपल पत्ते सा तन डोला

अधरों से अधर मिले जब तक
लज्जा के टूटे छंद बंध
रण बिगुल द्वार पर गूँज उठा २
शहनाई का स्वर हुआ मंद

भुजबंधन भूला आलिंगन
आलिंगन भूल गया चुम्बन
चुम्बन को भूल गई साँसें
साँसों को भूल गई धड़कन
सजकर सुहाग की सेज सजी २
बोला न युद्ध को जाऊँगा
तेरी कजरारी अलकों में
मन मोती आज बिठाऊँगा

पहले तो रानी रही मौन
फिर ज्वाल ज्वाल सी भड़क उठी
बिन बदाल बिन बरखा मानो
क्या बिजली कोई तड़प उठी

घायल नागन सी भौंह तान
घूँघट उठाकर यूँ बोली
तलवार मुझे दे दो अपनी
तुम पहन रहो चूड़ी चोली

पिंजड़े में कोई बंद शेर २
सहसा सोते से जाग उठे
या आँधी अंदर लिये हुए(?)
जैसे पहाड़ से आग उठे
हो गया खड़ा तन कर राणा
हाथों में भाला उठा लिया
हर हर बम बम बम महादेव २
कह कर रण को प्रस्थान किया
देखा

जब(?) पति का वीर वेष
पहले तो रानी हर्षाई
फिर सहमी झिझकी अकुलाई
आँखों में बदली घिर आई
बादल सी गई झरोखे पर २
परकटी हंसिनी थी अधीर
घोड़े पर चढ़ा दिखा राणा
जैसे कमान पर चढ़ा तीर

दोनों की आँखें हुई चार
चुड़ावत फिर सुधबुध खोई
संदेश पठाकर रानी को
मँगवाया प्रेमचिह्न कोई
सेवक जा पहुँचा महलों में
रानी से माँगी सैणानी
रानी झिझकी फिर चीख उठी
बोली कह दे मर गैइ रानी

ले खड्ग हाथ फिर कहा ठहर
ले सैणानी ले सैणानी
अम्बर बोला ले सैणानि
धरती बोली ले सैणानी
रख कर चाँदी की थाली में
सेवक भागा ले सैणानि
राणा अधीर बोला बढ़कर
ला ला ला ला ला सैणानी

कपड़ा जब मगर उठाया तो
रह गया खड़ा मूरत बनकर
लहूलुहान रानी का सिर
हँसता था रखा थाली पर

सरदार देख कर चीख उठा
हा हा रानी मेरी रानी
अद्भुत है तेरी कुर्बानी
तू सचमुच ही है क्षत्राणी

फिर एड़ लगाई घोड़े पर
धरती बोली जय हो जय हो
हाड़ी रानी तेरी जय हो
ओ भारत माँ तेरी जय हो

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

साच नै आंच नीं

कितरा धृतराष्ट्र  ?
लागै है डर
साच नै साच कैवण सूं
जोखिम रो काम है
साच रै सैमूंडै ऊभणो
साच नै आंच नीं!
आ बात साव कूड़ी लागै है
क्यूंकै
जद जद ई हुयो है
किणी रो साच सूं सैंमूंडो
तो ऊतरी है 
मूंडै री आब
कै खायग्यो ताव मूंडो
भलांई आप मत मानो
पण साच नै पचावणो
गरल़ सूं ई दोरो है
भलांई केई
भोल़िया भाई
कैवता धीजो धरै है कै
साचै !राचै रांम!
पण
जद चरै गोधा
अर कूटीजै पाडा!
तो लागै जाणै
राम नाम सत हुयग्यो हुवै!
कांई आपनै
अजै ई पतियारो है
कै
मिनखां में
राम रो वासो है ?
नीं,
आप ई लागै है
कै दिगूंपिचू हो
कै जे कठै ई
राम हुतो तो
नागो नाच
करण सूं
सकपकीजता लोग
पण राम निसरग्यो
जदै ई तो
साच असह्यो हुयग्यो
नीं पचाईज्यो साच
आज तक किणी सूं
कांई पांचाल़ी कूड़ी ही?
नीं उण साच ई तो कह्यी
पण
पची कठै
मिजल़ै मिनखां
उणरो ले लीधो माजनो
फकत साच बोलण सारू
अर आंधो घसीड़ !
सुणतो रह्यो
उणरा कारोल़िया!
कांई आप मानो
कै बो आंधियो
जुगां पैली
सिंहासण रै
मोह रो बिख बीज
बोयर गयो हो
बो आंधो
धृतराष्ट्र अबै नीं रह्यो
नीं ऐड़ै भरम में
मत रैजो
उण बिख विरछ
री डाल़ी डाल़ी
बोलण वाल़ी
ऐ कोचरड्यां
उण धृतराष्ट्र
री तो ओलाद है!!
जद ई तो
इणांनै
नीं सुणीजै
आबरू रुखाल़ण रा
जतन करती
कूकती द्रोपदी
अर
नीं दीखै
इणांनै
वोटां रै ओखादरै
माथै लड़ता
गिरजड़ां री गल़ाई
मा जाया भाई!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी