शनिवार, 20 मई 2023

नाम_का_पंगा – नाचने

नाम_का_पंगा – नाचने

जैसलमेर से बीकानेर बस रुट पर....
बीच में एक बड़ा सा गाँव है जिसका नाम है नाचने
 
वहाँ से बस आती है तो लोग कहते है कि 
नाचने वाली बस आ गयी..

कंडक्टर भी बस रुकते ही चिल्लाता.. 
नाचने वाली सवारियाँ उतर जाएं बस आगे जाएगी..

इमरजेंसी में रॉ का एक नौजवान अधिकारी जैसलमेर आया 
रात बहुत हो चुकी थी,
वह सीधा थाने पहुँचा और ड्यूटी पर तैनात सिपाही से पूछा -
थानेदार साहब कहाँ हैं ?

सिपाही ने जवाब दिया थानेदार साहब नाचने गये हैं..

अफसर का माथा ठनका उसने पूछा डिप्टी साहब कहाँ हैं..?
सिपाही ने विनम्रता से जवाब दिया-
हुकुम डिप्टी साहब भी नाचने गये हैं..

अफसर को लगा सिपाही अफीम की पिन्नक में है, उसने एसपी के निवास पर फोन किया।

एस.पी. साहब हैं ?

जवाब मिला नाचने गये हैं..!!

लेकिन नाचने कहाँ गए हैं, ये तो बताइए ?

बताया न नाचने गए हैं, सुबह तक आ जायेंगे।

कलेक्टर के घर फोन लगाया वहाँ भी यही जवाब मिला, साहब तो नाचने गये हैं..

अफसर का दिमाग खराब हो गया, ये हो क्या रहा है इस सीमावर्ती जिले में और वो भी इमरजेंसी में।

पास खड़ा मुंशी ध्यान से सुन रहा था तो वो बोला - हुकुम बात ऐसी है कि दिल्ली से आज कोई मिनिस्टर साहब नाचने आये हैं।
इसलिये सब अफसर लोग भी नाचने गये हैं..!!
अफ़सर बेहोश…

ये है म्हारो राजस्थान 

शनिवार, 25 जनवरी 2020

मिनखाचार मिल़ैतो भाई!

मिनखाचार मिल़ै
तो भाई!--
परख पारखू
बिनां फरक रै 
तरकां वाल़ा तीर न्हांख नै
भेल़प वाल़ी
कथा बांचतो
मेल़प वाल़ी 
रमत मांडतो
जाहर धरमां
भरम त्याग नै
नुगरै नागां जहर उतारण
मंत्र उचारै
दिन दोपारै
फतवां वाल़ी धजा फाड़ नै
धार कबीरो
सबरो वीरो
ऊजल़ चादर
ओढ गावतो
मिनखपणै री
राग वैरागी
हद अनुरागी
ऐड़ो भागी 
कठै विचरतो
आवै निजरा
सांझ सवेरे
कल़प काल़जै
दुखियां वाल़ी
 दाझ मिटावण
भाज-भाज नै
 ओखद करतो 
प्रीत पाऊंडा भरतो लाई!
इसड़ो देख कठै ई कदियक
मिनखाचार मिल़ै तो भाई!
म्हनै संदेशो थूं दीजै!

मिनखाचार मिल़ै
तो भाई!
म्हनै संदेशो तूं दीजै!
 चाऊं करणा दरस
हरस सूं
बैठ पाखती
आंख मिलायर
 हूं बतलाऊं
उतर काल़जै
ऊंडै अरथां
अणघड़िये 
सबदां रै ओलै
राग कबीरी
तान फकीरी
ताण तंदूरो
मंदर बाहर
मसजिद गोढै
गुरुद्वारे री लंगर मायां
थारी-म्हारी
इणरी-उणरी
राग मिलायर
एक सुरां में
 करतो जागण
मिनखाचार मिल़ै तो भाई!
म्हनै संदेश तूं दीजै!
 जिणरो हिवड़ो
काची कूंपल़
देख हिंसा नै 
करै हिकारत
ईढ अदावत
अनै ईसको
मंगल़ा होल़ी
हमझोल़ी री
मोल़ी सूरत
देख पसीजै
अंतस दाझै
धरम धड़ै सूं
अल़गो रैय'र
करम वाट री
जुगती जाणै
मुगती वाल़ै 
सबदजाल़ री
काट जोयनै
धूरतियां रै बिन बुत्तां में
अपणी धुन रो धारी भाई!
मिनखाचार मिल़ै तो भाई!
म्हनै संदेश तूं दीजै!
 जिकै काल़जै
ऊंडी कोरां
प्रेम नेम रो
बिनां भेद रै
जगती सारी
 आ है म्हारी
सुभग संदेशो
बिन अंदेशे
दया दीठ में
मींट लाज री
काज पराये
छीजै काया
परदुख भीजै
भलो जीभ सूं
बिनां लाभ रै
निसदिन करणा
लोकलाज रो
भूषण भारी
धिन- धिन धारी
मिनखाचार मिल़ै तो भाई!
म्हनै संदेशो तूं दीजै!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 22 मई 2019

आवां छां अमरेस

आवां छां अमरेस!
गिरधरदान रतनू दासोड़़ी
स्वाभिमान अर हूंस आजरै जमाने में तो फखत कैवण अर सुणण रा ईज शब्द रैयग्या।इण जमाने में इण दो शब्दां नै लोग जितरा सस्ता अर हल़का परोटै, उणसूं   लागै ई नीं कै कदै, ई शब्दां रा साकार रूप इण धर माथै हा।
आज स्वाभिमान अर हूंस राखणा तो अल़गा, इण शब्दां री बात करणियां नै ई लोग गैलसफा कै झाऊ समझै।पण कदै ई धर माथै ऐड़ा मिनख ई रैवता जिकै स्वाभिमान री रुखाल़ी सारू प्राण दे सकता हा पण स्वाभिमान नै तिल मात्र ई नीं डिगण देता।कट सकता हा पण झुक नीं सकता।'मरणा कबूल  पण दूध-दल़ियो नीं खाणा।'
यूं तो ऐड़ै केई नर-नाहरां रा नाम स्वाभिमान री ओल़ में हरोल़ है पण 'सांवतसिंह झोकाई' री बात मुजब 'मांटियां रो मांटी अर बचकोक ऊपर' री गत महावीर बलूजी(बलभद्र)चांपावत रो नाम अंजसजोग है।
मांडणजी चांपावत रै गोपाल़दासजी अर गोपाल़दासजी रै आठ सपूतां मांय सूं एक हा निकलंक खाग रा धणी बलूजी गोपाल़ोत।
बलूजी रो नानाणो बीकमपुर रै भाटी गोयंददास मानसिंहोत रैअठै हो।मामा ज्यांरा मारका,भूंडा किम भाणेज।भाटियां री बधताई बतावतां मानसिंहजी जोधपुर लिखै-
गहभरिया गात गढां रा गहणा,
उर समाथ छिबता अनड़।
बलूजी राजपूती रो सेहरो अर साहस रो पूतलो हा।ज्यूं चावल़ छड़णै सूं ऊजल़ हुवै उणी गत रजपूती ई सैलां रै घमोड़ां सूं छड़ियां निकलंक हुवै।बलूजी अर रजपूती एक-दूजै रा पर्याय हा-
रजपूती चावल़ रती,
घणी दुहेली जोय।
ज्यू़ं ज्यूं छड़जै सेलड़ी,
त्यूं त्यूं ऊजल़ होय।।
बलूजी, जोधपुर र राजकुमार अमरसिंहजी रा खास मर्जीदान हा।
एक दिन महाराजा गजसिंहजी री पासवान अनारा बेगम अमरसिंहजी नै आपरी पगरखियां उठाय झलावण रो कह्यो तो रीस में झाल़बंबाल़ हुवतां अमरसिंहजी कह्यो कै -"ओ म्हारो काम थोड़ो ई है?"लोग तो आ ई कैवै कै वै उण बखत बेगम नै घणा आवल़िया -कावल़िया बकिया।जिणसूं उण महाराजा रा कान भरणा शुरू कर दिया।जिणसूं महाराजा रीसायग्या अर अमरसिंहजी नै आपरै हक सूं वंचित हुवणो पड़ियो।किवंदती तो आ ई है कै अमरसिंहजी ,नै जोधपुर छोडण रो आदेश ई दियो गयो हो।जद अमरसिंहजी जोधपुर छोडियो उण बखत जिकै मौजीज सरदार साथै टुरिया, उणां में एक सिरै नाम हो बलूजी चांपावत रो।
जद पातसाह शाहजहां अमरसिंहजी नै नागौर स्वतंत्र रूप सूं दी उण समय अमरसिंहजी बलूजी नै हरसोल़ाव ठिकाणो दियो।
अमरसिंहजी नै घेटा(मिंढा)पाल़ण रो शौक हो।सो वै घेटा तो पाल़ता ई साथै ई आ पण जिद्द ही कै नागौर रा टणकसिंह ठाकर बारी -बारी सूं घेटा चरासी।जद बलूजी री बारी आई तो बलूजी भरिये दरबार में ना देतां कह्यो कै-"ऐवड़ चरावण रो काम गडरियां रो है ,म्हारो ओ काम थोड़ो ई है?म्हैं घेटां लारै आज उछरूं न काल।जाडी पड़ै जठै घेर लीजो।"
केसरीसिंहजी सोन्याणा रै आखरां में-
बोल्यो बलू वीरवर,
हम न चरावहि नाथ।
एडक झुंड चरायबो,
होत गडरिया हाथ।।
अमरसिंहजी नै ऐड़ो जवाब  देण रो मतलब हो नाग रै मूंढै में आंगल़ी देणी कै सूतै सिंह रै डोको लगावणो।अमरसिंहजी रीस में लालबंब हुयग्या पण बाबै रै ई बाबो हुवै ।बलूजी ई अकूणी रा हाड हा।अमरसिंहजी जाणता कै फफरायां सूं बलू डरै!वा जागा खाली है सो उणां आकरा पड़तां पूछियो कै -"पछै आपरो कांई काम है?
जणै बलूजी कह्यो कै-"खमा!म्हारो काम पातसाही सेनावां पाछी घेरण रो है घेटा चरावण रो नीं"-
आवै जद सांम मुगल दल़ उरड़ै,
करड़ै वैणां कटक कियां।
राखूं तिणवार पिंड राठौड़ी,
मरट मेट सूं भेट मियां।
टोरूं जवनाण हाक जिम टाटां
झाटां लेसूं गात झलू।
तोड़ण मुगलांण माण कज तणियो,
वणियो मरवा वींद बलू।।(गि.रतनू)
"अठै तो घेटा चरासी वो ई  रैसी।" अमरसिंहजी कह्यो तो बलूजी भचाक उठिया अर कह्यो पट्टो तरवार री मूठ बंधियो राखूं।"ओ पट्टो काठो राखो।उणां नागौर छोड दी अर बीकानेर महाराजा कर्णसिंहजी रै कनै बीकानेर आयग्या।
छछवारी नै छछवारी कै चढी नै चढी सुहावै नीं।आ ई बात अठै ई हुई बलूजी री कीरत अठै ई घणै मिनखां नै नीं भाई--
सूरां पूरां वत्तड़ी,
सूरां कांन सुहाय।
भागल़ अदवा राजवी,
सुणतां ई टल़ जाय।।
चौमासै रो समय हो अर बलूजी आपरै डेरे में आराम करै हा जितरै किणी बीकानेरिये सरदार आय बलूजी नै मतीरो भेंट करता कह्यो कै-"हुकम दरबार आपरै आ भेंट मेलतां कह्यो है कै - मती रो।"बलूजी तो तिणै माथै तेग राखता।भच घोड़ै जीण कसी अर बड़गड़़ां-बड़गड़ां वै  जा वै जा।कर्णसिंहजी नै इण तोत रो ठाह लागो पण पछतावो करण रै टाल़ वै कर ई कांई सकता?
बलूजी अठै सूं मेवाड़ महाराणा कनै गया परा।उठै महाराणा जगतसिंहजी उणांनै एक ठावको घोड़ो इनायत कियो।
क्रमशः

मंगलवार, 14 मई 2019

विलल़ा मिनख रूंख नैं बाढै

विलल़ा मिनख रूंख नैं बाढै!-
(पर्यावरण संरक्षण अर रूंख रक्षा री अरज में एक डिंगल़ गीत)
-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीत वेलियो-
परघल़ रूंख ऊगाय परमेसर,
अवन बणाई ईस अनूप।
विलल़ा मिनख रूंख नैं बाढै,
वसुधा देख करै विडरूप।।1

पँचरँग चीर धरा नैं परकत,
हरियल़ हरि ओढायो हाथ।
मेला जिकै  मानवी मन रा,
गैला करै विटप सूं घात।।2

कुलल़ा काम रूंख नित काटै,
संकट तणा करै सरजाम।
मेटै छांह मांडी वड मालक,
थूथा करां कंवाड़ो थाम।।3

पापी अंकै नाय पसीजै,
कंपै नाय काल़जै कोर।
पाधर करै पताल़ां पूगी,
जड़ां उखाड़ै अपणै जोर।।4

छिती रूप हरियाल़ी छाजै,
सजै आं सूं धरती सिंणगार।
इल़ फल़- फूल पानड़ा आपै
ऊपर सदा करै उपकार।।5

चंगी छांह चिड़कल्यां चहकै,
करै शिखंडी जेथ कल़ाव।
पंछी अवर आसरो पामै
बठै आल़खो आप बणाव।।6

विषधर लिपट गुरड़ पण बैठे,
भलपण रखै करै नह भेद।
खमा भाव राखै बिन खांमी,
अवनी पूरे सबां उमेद।।7

भैंस्यां गाय विटप तल़ भाल़ो
अहर निसा जिथ करै उगाल़।
ऊंठ सांढियां आंरै ओटै
कूट काढदै कितरा काल़।।8

मिनखां तणी कह जग माया
छती रूंखां री कहियै छांम।
ओ की मिनख हिड़कियो उठियो
उथपण रूंखां करै अकांम।।9

ओ तो चलै कैताणो आदू
रूंख रूंख में बैठो रांम।
सठ ओ मिनख सार नीं समझै
विणसै विरछ इल़ा अविरांम।।10

जाल़ां मांय जोगणी जूनी
बैठी वीसहथी कर वास।
जाडी छांह जैणरी जोवो
रमणी मांड अखाड़ै रास।।11

जोगी नाथ जलंधर जाल़ां,
जाल़ां फेर बैठो जसनाथ।
जांभो भल हरबू पण जाल़ां,
माल़ा रटी जिकां धर माथ।।12

पीपल़ लोक कहै परमेसर
निर्मल़ सींच बैसागां नीर।
घेर घुमेर गवाड़ां गैरो
भाल़ो ताप ढाबवा भीर।।13

दीसै दूर जातरी दरसण,
अड़ियो थको जको असमान।
सहविध रूप गांम री सौभा,
महियल़ रयो सदाई मान।।14

नींबां मांय नरायण न्हाल़ो,
ओ वर आपै वेर अवेर।
वसुधा रूप धनंतर वाल़ो,
हरणो रोग सोग नै हेर।।15

गांमै गाम खेजड़ी गोगो
जाहर पीर जैण में जोय।
काल़ां दुरदिन सदा कटाणी
हिव आ मदत खोखाल़ी होय।।16

कैर बांवल़ रु फबै कूमटा,
फोग कंकेड़ा फल़िया फेर।
थल़ियां रूप रोहिड़ो ठावो,
लूंब्यो करै मरू में लेर।।17

पंछियां अडग आसरो पेखो
पसुवां सदा सहारो पोख।
जीवण मिनखां देय पवन जग,
रसा मरूथल़ बढतो रोक।।18

मिटियां तरू मानखो मिटसी,
ऊकल़सी धरती अणमाप।
लोगां लाभ पछै की लेसो,
पिटसो प्रल़य कमायै पाप।।19

पकड़ै सीस पछै पछतासो,
कारी लगसी फेर न कोय।
चितधर हाण-लाभ नै चेतो,
जाडी छांह रुखाल़ो जोय।।20

सरवर पाल़ तणी फब सौभा,
तरवर रौभा दैणो टाल़।
गिरधर कहै सांभल़ो गुणियां
प्रीत विटप सूं राखो पाल़।।21
गिरधरदान रतनू दासोड़़ी

रविवार, 5 मई 2019

सटीक मारवाड़ी कहावते

'सटीक मारवाड़ी कहावते '

थोथी हथाई,
पाप री कमाई,
उळझोड़ो सूत,
माथे चढ़ायोड़ो पूत.... फोड़ा घणा घाले।*

झूठी शान,
अधुरो ज्ञान,
घर मे कांश,
मिरच्यां री धांस.... *फोड़ा घणा घाले।*

बिगड़ोडो ऊंट,
भीज्योड़ो ठूंठ,
हिडकियो कुत्तो,
पग मे काठो जुत्तो.... *फोड़ा घणा घाले।*

दारू री लत,
टपकती छत,
उँधाले री रात,
बिना रुत री बरसात.... *फोड़ा घणा घाले।*

कुलखणी लुगाई,
रुळपट जँवाई,
चरित्र माथे दाग,
चिणपणियो सुहाग.... *फोड़ा घणा घाले।*

चेहरे पर दाद,
जीभ रो स्वाद,
दम री बीमारी,
दो नावाँ री सवारी.... *फोड़ा घणा घाले।*

अणजाण्यो संबन्ध,
मुँह री दुर्गन्ध,
पुराणों जुकाम,
पैसा वाळा ने 'नाम'.... *फोड़ा घणा घाले।*

घटिया पाड़ोस,
बात बात में जोश,
कु ठोड़ दुखणियो,
जबान सुं फुरणियो.... *फोड़ा घणा घाले।*

ओछी सोच,
पग री मोच,
कोढ़ मे खाज,
"मूरखां रो राज" .... *फोड़ा घणा घाले।*

कम पूंजी रो व्यापार,
घणी देयोड़ी उधार,
बिना विचार्यो काम .... *फोड़ा घणा घाले !*

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

स्वाद राजस्थान का

एक कविता में राजस्थान के समस्त व्यंजनों का जिलेवार विवरण।
“स्वाद राजस्थान का
लूणी रा रसगुल्ला खाओ ; भुजिया बीकानेर का ।
चमचम खावणी पोकण ऱी; घोटमा जैसलमेर का ।।
कड़ी कचोरी अजमेर ऱी ;अर कचौरा नसीराबाद का ।
पाली रे गुलाब हलवे रा ; बड़ा मजा है स्वाद का ।।
ओसियां में दाल रा वड़ा ; जीवण जी खिलावे ।
फलोदी रे भैया भा रो हलवो; मूंडे लाळ पड़ावे ।।
रबड़ी रा भटका आवे तो ; सीधा जावो आबू रोड़ ।
जयपुर रा घेवर खावण रो; मौको ना दीजो छोड़ ।।
कोटा ऱी हींग कचोरी ; रतन आळे ऱी खाइजो ।
खीर मोहन खावण ने ; गंगापुर सीटी आइजो।।
घणो ई चौखो लागे है ; अलवर आळो मिल्क केक ।
भारत भर में पीवे चाव सूं ; भीलवाड़ा रो मिल्क शेक ।।
प्याज कचोरी ,मावा कचोरी ; अर मिर्ची बड़ो है जोर ।
सगळे स्वाद में राजा कहिजे ; है जोधाणो सिरमौर ।।
लिख्या जितरा ई खाया हूँ ; ह्रदय सूं थाने बतावूं ।
मिष्ठान लेखणी रो संगम हूँ ; लिख-लिख ने इतरावूं ।।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

सेल्फी लैवे सांतरी....

सेल्फी लैवे सांतरी, कर धर बंदुक खाग।
उपर आयांह ऊभजा, हिये न उठती आग।।

कंवर कोरा कूदता, पेर र केसरी पाग।
फोटू पाड़न फूटरा, कर धरि कटार खाग।।

बन्ना निवड़े बावला, बन्नी फेसनि फेस।
देखाव चक्कर दीपड़ा, मिटतो मुरधर देस।।

ठोक शायरी ठावकी, फूटरा देवां पोज।
सेल्फियां माहि सांतरो, आपां दिखावां औज।।

सिर सटे जो धारी धरा, भूप भूमि भरतार।
जबरदस्त सुण जूमला, बण ग्या चौकीदार।।

सीकर फीकर कुण करे, झेरे चौकीदार।
भेड़ चाल में भूलगा, चलावनी तलवार।।

लूखा सजनी लेयगा, भमता किथ भरतार।
टिरिया बे जिण टैम रा, कठै बली तलवार ।।?

गिदड़ा सिंहणी झांप ली,  नेहचे सुता नार ।
देख दशा आ दीपड़ा, खावै थूं क्यां खार।।

मणी ही मुँगी मौकली, नाठो लेयर नाग।
बाका फाड़ो बांकुरा, खन्नै होतां खाग ।।

सस्तर ना संभालिया, खागां लागो काट।
ठानीजे तो ठानले,  नी तो बैठो माठ।।

दीप चारण

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

लेबा भचक रूठियो लालो

*गिरधरदान रतनू    दासोड़ी
राजस्थान रो मध्यकाल़ीन इतियास पढां तो ठाह लागै कै अठै रै शासकां अर उमरावां चारण कवियां रो आदर रै साथै कुरब-कायदो बधाय'र जिणभांत सम्मान कियो  वो अंजसजोग अर अतोल हो।
जैसल़मेर महारावल़ हरराजजी तो आपरै सपूत भीम नै अठै तक कह्यो कै 'गजब ढहै कवराज गयां सूं, पल़टै मत बण छत्रपती।'तो महारावल़ अमरसिंहजी,  कवेसरां रो जिणभांत आघ कियो उणसूं अभिभूत हुय'र कविराजा बांकीदासजी कह्यो-'माड़ेचा तैं मेलिया ,आभ धूंवा अमरेस।'टोडरमलजी मोही, भोई बणिया, बूंदी रा शासक शत्रसालजी हाडा देवाजी महियारिया री पगरखियां खुद रै हाथां उठाय'र उणांरै पगां आगे राखी तो जोधपुर रा महाराजा अभयसिंहजी, करनीदानजी नै आपरै खांधै पग दिराय'र हाथी चढाय  जल़ेब में बैया।इणीभांत बड़ली रा ठाकुर लालसिंहजी राठौड़ ,कविश्रेष्ठ महादानजी मेहडू रै घोड़ै रै आगै पाल़ा-पाल़ा बैय'र उणांनै, उणांरै सासरै हिंयाल़िया पूगाय'र आया।
यूं तो केई लेखकां इण घटना रा कवि कविराजा करनीदानजी नै मानिया है अर लालसिंहजी बड़ली री कीरत में रचित गीत री रचनाकार बरजूबाई नै मानिया है। बरजूबाई नै केई करनीदानजी री जोड़ायत तो केई बैन मानै अर उणांरो मानणो है कै लालसिंहजी जद मराठां सूं लड़िया उण बखत तक करनीदानजी इहलोक नै तज चूका हा।सो करनीदानजी रै वादे मुजब लालसिंहजी रा बखाण बरजूबाई किया।पण आ बात इतियास री कसौटी माथै खरी नीं उतरै।  इण विषय में विख्यात इतिहासकार सुरजनसिंहजी झाझड़  रो मत वजनी है ।उणां कालखंड रै मुजब महादानजी मेहडू नै वै कवि  मानिया जिणांरी सेवा में बड़ली ठाकर आगे- आगे पाल़ा बुवा। आ बात वस्तुतः सही ई है।
सिरस्या रा महादानजी मेहडू, जिणांनै जोधपुर महाराजा मानसिंहजी उणां री इच्छा मुजब सोढावास ठिकाणो इनायत कियो।जद महाराजा इणांनै गांम रै मुजरै रो आदेश दियो तो उणां कह्यो-
*पांच कोस पांचेटियो,*
*आठ कोस आलास।*
*नानाणो म्हारो नखै,*
*समपो सोढावास।।*
अर महाराजा सोढावास उणांनै बगसियो।
महादानजी तीन ब्याव किया ।जिणांमें एक ब्याव उणां हियाल़िया रा बारठ शंकरदानजी री बैन साथै कियो।
एक'र चौमासै री बखत । महादानजी आपरै सासरै पधार रह्या हा।बड़ली पूगा ईज हा कै रात अंधारीजगी।आभो घटाटोप हुयग्यो।बीजल़ी कड़ाका करण लागी अर राटक'र मेह बरसियो-
सामठा चात्रग सोर दादुरां बकोर साद,
झाझा मोर बैठा करै गिरंदै झिंगोर।
वादल़ा तणा उलोल़ उत्तराधी कोर वाधै,
घघूंबै सजोर घटा मांडै घणघोर।।
च्यारां कानी पाणी रा बाल़ा ई बाल़ा।घणा झाड़ झंखाड़। ऐड़ै में कवि नै मारग रो ज्ञान नीं रह्यो।कवि गतागम में ईज हो कै बड़ली ठाकुर लालसिंहजी उणी बखत भेस बदल़'र गांम रो फेरो देवण निकल़िया।
उल्लेख्य है कै बड़ल़ी महान स्वातंत्र्य प्रेमी जोधपुर राव चंद्रसेनजी रै पोते कर्मसेनजी रै छोटे बेटे अखेराजजी री परंपरा  में एक ठावको ठिकाणो।अठै रा ठाकुर लालसिंहजी वीर,साहसी अर उदार मिनख अर इण बात रा पखधर-
*ऊदा अदतारां तणा,*
*जासी नाम निघट्ट।*
*जाण पंखेरू उड्डियो,*
*ना लिहड़ी ना वट्ट।।*
बड़ली रै गोरवें एक मिनख नै देखियो तो महादानजी उणनै हेलो कियो अर पूछियो -ऐड़ी मेह अंधारी रात।आभो रिंध रेड़ रह्यो है अर तूं घर छोड'र गांम रै गोरवें कांई करै?"
जद भेष बदल़ियोड़ा ठाकुर साहब कह्यो-
"अठै तो बड़ली ठाकुर साहब रै आदेश सूं गांम रै पोरो(पहरा)देय रह्यो हूं।कोई चोरी चकारी नीं हुय जावै।"
-"तो भाई! एक काम म्हारो ई करै कनी!कवि कह्यो तो उणां पूछियो कै -कांई?
जद महादानजी कह्यो -"तूं म्हनै हिंयाल़िया तक पूगाय दे नीं।तनै थारी धाड़ी दे दूंला।"
जणै लालसिंहजी जाणग्या कै बटाऊ चारण है जद उणां कह्यो-"तो आप रात-रात अठै ई ठाकुर साहब कनै ई विराजो नीं।दिनुगै आराम सूं पधार जाया।"
जणै कवि कह्यो-"तूं ठीक कैवै पण कोई पण आदमी आपरै गांम कै सासरै सूं दो-तीन कोस माथै कठै ई ठंभै तो-'का तो नार कुभारजा,का नीं नैणां नेह।' सो तूं म्हनै हिंयाल़िया पूगावै जैड़ी बात कर।"
ठाकुर साहब अबै पक्को जाणग्या कै बटाऊ कोई चारण है अर पाखती बारठां रै अठै जासी।मेह अंधारी रात ।ऐड़ै में मिनख रो फर्ज बणै कै अंसधै आदमी री मदद करणी चाहीजै अर पछै ओ तो चारण है!-
*चारण तणो रहे सो चाकर*
*सो ठाकर संसार सिरै।*
आ सोच'र उणां कह्यो कै -" तो हालो  आपनै हिंयाल़िया तक पूगाय दूं।"
हिंयाल़िया ,बड़ली सूं  दो-ढाई कोस।आगे-आगे पाल़ा -पाल़ा लालसिंहजी अर लारै-लारै घोड़ै सवार महादानजी मेहडू।
ज्यूं ई हिंयाल़िया रो गवाड़ अर उठै रै बारठ री तिबारी आई अर लालसिंहजी कह्यो -"लो हुकम!आपरो ठयो आयग्यो।आ हिंयाल़िया री तिबारी।अबै म्हनै रजा दिरावो ।म्हैं पाछो गांम रै पोरै माथै जाऊं।"आ सुण'र महादानजी कह्यो -"इयां क्यूं जावै?ब्याल़ू बीजो कर'र जा।"जणै लालसिंहजी कह्यो -"नीं ,ब्याल़ू बीजो नीं करूं।म्हनै आपनै ठयेसर पूगावणा हा सो पूगाय दिया अब म्हारो काम पूरो हुयो।" जणै महादानजी कह्यो-"कोई बात नीं, थारी मरजी पण थारी पगदौड़ (मजदूरी)तो लेय'र जा।"आ सुण'र लालसिंहजी कह्यो -"नीं हुकम!आप हिंयाल़िया रै बारठां रा मैमाण सो म्हारै ई मैमाण।इणमें कैड़ी पगदौड़?आप आराम सूं रावल़ै पधारो अर हूं पाछो जाऊं।"आ बंतल़ सुण'र रावल़ै मांयां सूं एक -दो सिरदार ई आयग्या।उणां आवतां ई अंधारी रात में ई बोली सूं लालसिंहजी नै ओल़ख लिया अर कह्यो -"खमा !खमा!पधारो हुकम !आज तो मेह अर मैमाण दोनूं एकै साथै!आपरै पधारणै सूं म्हांरी टापरी ई पवित्र हुई।"
महादानजी ई समझग्या कै म्हनै पूगावणियो कोई साधारण मिनख नीं बल्कि खुद बड़ली ठाकुर लालसिंहजी है।
उणां कह्यो -"हुकम आप म्हारै माथै ऋण चढा दियो।आप पाल़ा अर हूं घोड़े सवार!जुलम किया।ओ ओसाप कीकर उतरैला?अबार तो आप म्हनै पूगायो है ,इणरा तो हूं कांई बखाण करूं?पण भविष्य में कदै ई आप वीरता बतावोला तो हूं फूल सारू पांखड़ी रै रूप में अमर करण री कोशिश करूंलो।"
जोग ऐड़ो बणियो कै दोलतराव सेंदिया रो अजमेर   सूबेदार मराठा बापूराव मेवाड़ माथै हमलो कियो।उण बखत बड़ली ठाकुर लालसिंहजी मेवाड़ री मदद में जकी वीरता बताई वा सेंदियां रै आंख्यां री किरकिरी बणगी।उणी दरम्यान मेवाड़ अर सेंदियां रो राजीपो हुयग्यो।मेवाड़, लालसिंहजी नै कह्यो कै -"आप अठै आवोरा आपनै आपरै कुरब मुजब जागीर दी जासी।क्यूंकै अबै दुसमण आप माथै हमलो करसी अर बड़ली भिल़ण री पूरी संभावना है।लालसिंहजी इण बात री गिनर नीं करी।उण बखत लालसिंहजी रै हियै में जका भाव उमड़िया।उणांनै किणी चारण कवेसर इणगत दरसाया--
*बंका आखर बोलतौ*
, *चलतौ वंकी चाल।*
*झड़ियौ वंकी खाग झट,*
*लड़ियौ बंकौ लाल।।*

*वड़ली तल़ सूखी भई,*
* *तै पोंखी रिण ताल़।*
*पौह धरां किम पालटै,*
*लोही सींची लाल।।*

*इम कहतौ लालो अखर,*
*दूलावत डाढाल़।*
*जीवतड़ौ गढ सूंप दे*,
(वां)
*गढपतियों ने गाल़।।*
जोग सूं थोड़ै समय पछै ई दोल़तराव सेंदिया रै अजमेर रै अंतिम सूबेदार बापूराव ,बड़ली माथै हमलो कर दियो।
उण बखत लालसिंहजी जकी वीरता बताई वा इतियास में अमर है।
उण लड़ाई में लालसिंहजी आ सिद्ध कर दीनी कै-
*कंथा कटारी आपरी,*
*ऊभां पगां न देह।*
*रुदर झकोल़ी भुइ पड़ै,*
(पछै)
*भावै सोई लेह।।*
अदम्य साहस अर आपाण बताय'र राठौड़ दूलेसिंहजी रै सपूत लालसिंहजी वि.सं.1872 री चैत बदि दूज रै दिन वीरगत वरी।आ बात जद महादानजी मेहडू सुणी तो उणां दस दूहालां रो एक भावप्रवण सावझड़ो गीत बणायो।गीत रो एक -एक आखर वीरता रो प्रतिबिंब   सो लागै-
आंटीला ऊठ सतारावाल़ा।
तो ऊपर वागा त्रंबाल़ा।
नाह बाघ जागो नींदाल़ा।
कहिजै कटक आवियो काल़ा।।

चखरा वचन सुणे चड़खायो।
अंग असलाक मोड़तो आयो।
दूलावत इसड़ो दरसायो।
जांणक सूतो सिंघ जगायो।।

किसै काम आवण रण कालो।
बांधै माथै मोड़ विलालो।
भुजडंड पकड़ ऊठियो भालो।
*लेबा भचक रूठियो लालो।।*

जूनी थह जातां हद जूटो।
खूनी सिंघ सांकल़ां खूटो।
छूटां प्रांण पछै हठ छूटो।
तूटां सीस पछै गढ तूटो।।
उण महावीर रा बखाण करतां किणी बीजै कवि एक सतोलो कवित्त बणायो ।जिणमें कवि लिखै कै शिव री मुंडमाल़ा में पिरोयोड़ो लालसिंह रो सीस दकालां कर रह्यो है---
बनी सुख सज्या तहां चंद का उजाला वेस,
रैन के समय में आप पौढे ध्यान शाला में।
पीवै मेग प्याला ताते नैन है गुलाला पूर,
लहरा रहे चौसर से उर्ग मृगछाला में।
भाला खग कमध चलाया हद भारत में।
मस्तक सुमेर ज्यों बनाया कंठ माला में।
सोती संग शंभु कै चम्मकै बेर बेर बाला,
*करै सीस लाला को दकाला मुंडमाला में।*
आज नीं लालसिंहजी है अर नीं महादानजी मेहडू पण उण दोनां री बात जनकंठां में आज ई अमर है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

भारत का अंतिम जौहर


भारत_का_अंतिम_जौहर

#एक_हिन्दू_राजा_के_कारण_राजपूतानियों_ने_किया_ज़ौहर

#जाट_राजा_और_मुगलों_की_दोस्ती_का_गवाह_बना_एक_जौहर

#लकड़ियों_के_अभाव_में_गोले_बारूद_पर_बैठकर_किया_जौहर

पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारहवीं सदी में भरतपुर के #जाट_सूरजमल_ने_मुगल_सेनापति_के_साथ_मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा #बहादुर_सिंह_बड़गूजर पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। परन्तु दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियों ने जौहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया।

#अगर_जाट_राजा_सूरजमल_ने_मुगलों_से_संधि_नहीं_की_होती_तो_इतना_भयावह_जौहर_(#गोला-बारूद ) #राजपूतानियों_को_नहीं_करना_पड़ता।

#राजपूताने_का_अंतिम_जौहर

राजपूताने का अंतिम जौहर घासेड़ा के राव बहादुर सिंह बड़गूजर के शासनकाल में हुआ था |

राव बहादुर सिंह बड़गूजर के पिता हस्ती सिंह एक बागी थे |दिल्ली - हरियाणा की सीमा पर कॉल परगना ( अलीगढ़ ) पर राव बहादुर सिंह बड़गूजर का राज था |
हरियाणा में स्थित घासेड़ा की जागीर के अंतर्गत स्थित घासेड़ा के दुर्ग पर राव बहादुर सिंह बड़गूजर का कब्जा था | राव बहादुर सिंह बड़गूजर बेख़ौफ़ होकर अपने राज्य पर राज करता और लगातार मुगलों से लोहा लेता था , लेकिन यह बात मुग़ल सल्तनत के लिए असहनीय थी |

सूरजमल जाट और मुग़ल सल्तनत दोनों ही राव बहादुर सिंह बड़गूजर पर कई बार दबाव बनाते थे |
पर स्वाभिमानी राजपूत मुगलों के अधीन रहना स्वीकार नही करता है |

जहां औरंगजेब पूरे भारत के राजपूतों को मुस्लिम बनाने में लगा रहता है वही राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने धर्म के प्रति अडिग रहता है और शान से राजपूतों की पताका लहराता है | यह बात मुगलों को खटकती है |

शहंशाह औरंगजेब के सेनापति वजीर सफदरजंग , जो घासेड़ा के राव बहादुर सिंह बड़गूजर से कट्टरता रखता था , ने राव बहादुर सिंह बड़गूजर को एक पत्र भिजवाया जिसके अंतर्गत उसने कॉल परगने से तोपो को हटाने के लिए कहा |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर ने मुगलों के हुक्म की नाफ़रमानी की और इसके बदले उसने मुगलों ने कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया जिससे उसे भारी मात्रा में गोला -- बारूद मिले |
जब इसकी जानकारी वजीर सफदरजंग को मिली तो उसने घासेड़ा पर आक्रमण करने की सोची और अपनी सहायता के लिए #भरतपुर_के_राजा_सूरजमल_जाट_को_कहा |भरतपुर के राजा सूरजमल जाट ने गूगल सेनापति से मित्रता करके अपने पुत्र को आक्रमण करने का आदेश दिया।
सूरजमल के बेटे #जवाहर_सिंह ने कॉल परगने को घेर लिया | इस समय राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने पैतृक जागीर घासेड़ा में थे |

फरवरी - अप्रैल 1753 ई.

#सूरजमल_जाट ने घासेड़ा को चारों ओर से घेर लिया |
उसने अपने बेटे जवाहर सिंह और वजीर सफ़दरजंग को किले के उत्तरी छोर पर तैनात किया |
दक्षिण छोर पर बख्शी मोहनराम , सुल्तान सिंह , वीर नारायण समेत अपने भाइयों को तैनात किया |

#सूरजमल_खुद_5000_मुग़ल_जाट सेना सहित किले के मुख्य द्वार ( पूर्वी द्वार ) पर तैनात हुआ |
और बालू जाट के साथ कुछ मुग़ल सैनिक छोड़ उसे कहा कि जिस मोर्चे पर जरूरी हो पहुंच जाए |
घासेड़ा किला चारों ओर से घिरे जाने के कारण पहले दिन की लड़ाई में बड़गूजरों को काफी क्षति होती है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर का भाई जालिम सिंह और उसका बेटा कुँवर अजीत सिंह काफी ज़ख्मी होते है |
मुगल -- जाट सेना को भी नुकसान होता है |
कुछ दिनों तक युद्ध ऐसे ही चलता रहता है |
#सूरजमल_जाट किले में मौजूद #गोले_बारूद की चाह में एक सन्धि-प्रस्ताव भेजता है |
जिसमे वो किले का मोर्चा उठाने की बाबत में 10 लाख रु , गोला - बारूद और तोप मांगता है और आत्मसमर्पण करने को कहता है |
लेकिन राव #बहादुर_सिंह_बड़गूजर ने स्वाभिमान के विरुद्ध आत्मसमर्पण करने से मना कर देता है और सन्धि करने से मना कर देता है |
इसी बीच राव बहादुर सिंह बड़गूजर का भाई ज़ालिम सिंह का देहांत हो गया |रात को भीषण युद्ध होता है |

23 अप्रैल 1753 ई.

अगली सुबह मीर मुहम्मद पनाह , आलमगीर , नैनाराम सहित मुग़ल जाट सेना घासेड़ा में घुस जाती है |
बड़गूजरों और मुग़ल-जाट सेना में काफी भयानक युद्ध होता है | दोनों ओर से कई सैनिक मारे जाते है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपने पुत्र कुँवर अजीत सिंह के साथ केसरिया बाना पहनकर मुग़ल - जाट सेना पर भूखे सिंह की भांति टूट पड़ता है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर अपनी टुकड़ी के साथ सूरजमल जाट वाली टुकड़ी पर आक्रमण करता है |
राव बहादुर सिंह बड़गूजर द्वारा मार - काट मचता देख सूरजमल जाट कुछ हद तक डर जाता है और पीछे हटता है कि तभी बालू जाट मुग़ल सेना की एक टुकड़ी लेकर सुरजमल जाट की सहायता के लिए आ जाता है |
जिससे राजपूतों का मनोबल टूट जाता है |
वहीं दूसरी ओर कुँवर अजीत सिंह अपनी सेना के साथ वजीर सफदरजंग की टुकड़ी पर हमला करता है |
कुँवर अजीत सिंह की तलवार से वजीर सफदरजंग के पास वाले सिपहसालार का सर कट जाता है जिससे वजीर सफदरजंग डर जाता है |
तभी सुल्तान सिंह के कहने पर वीरनारायण वजीर सफदरजंग की सहायता के लिए आ जाता है |
उधर सुल्तान सिंह दक्षिण द्वार तोड़ कर मुग़ल सेना के साथ अंदर आ जाता है | जिसे रोकने के लिए 60 - 70 राजपूत सैनिक आगे आते है पर मुग़ल सेना ज्यादा होने के कारण सभी मारे जाते है |
यह सभी इतना जल्दी और अचानक होता है कि राजपूतों को जवाबी कार्यवाही का समय ही नही मिलता |
एक समय के लिए किले में मौत का तांडव हुआ सा प्रतीत होता है |
सभी ओर से जीत की कोई उम्मीद नही होने पर राव बहादुर सिंह की पत्नी , पुत्री राजपरिवार की महिलाओं के साथ अन्य राजपूत क्षत्राणियां और किले में मौजूद सभी महिलाएं जौहर करती है |
#किले_में_लकड़ियों_के_नही_होने_की_वजह_से_क्षत्राणियां_गोले_बारूदों_पर_बैठ_कर_जौहर_करती_है और मुग़ल सेना से अपनी सतीत्व की रक्षा करती है |

#सूरजमल_जाट_और_मुगलो_का_तिल्सिम_उस _वक़्त टूट जाता है जब वो देखते है की किले में लकडिया न होने के कारण सैकड़ों राजपूत महिलाएं जौहर की रस्म गोला और बारूद पर करती है और इतिहास में अमर हो जाती है।

#इतिहास_में_यह__संभवत_पहला_मौका_होता_है_जब_जौहर_की_रस्म_किसी_हिन्दू_राजा(सूरजमल_जाट)#के_सामने_हुयी_हो।

उधर राव बहादुर सिंह बड़गूजर , कुँवर अजीत सिंह शाका करते हैं और युद्ध मे मारे जाते है |
यह जौहर राजपूताने का अंतिम जौहर होता है |
इस जौहर के बाद राजपूताने में कोई और जौहर नही हुआ |
सभी क्षत्राणियों को नमन जिन्होंने धर्म पर अडिग रहकर
राजपूतों की परंपरा का पालन किया |

#मुग़ल_सल्तनत_ओर_जाट_सेना_के आगे राजपूतों ने आत्मसमर्पण नही किया और क्षत्रिय धर्म का पालन किया |

पेज राजपूताना रियासत

कुंवर महेंद्र सिंह राठौड़

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