.......दुर्गौ कठे गयौ ले लाठी.......
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गों कठे गयौ ले लाठी !
थानें राख सख्या नही मालक, ज्यांने थें जिमाई बाठी !!
चुगलखोराँ आगे गली नहीँ ही,
दुर्गदास री दाल !
हौकौ भरीयो राजाजी रौ,सेवट दियो निकाल !!
मुंडे सूँ तो कयो नहीँ हो,जाओ थे दुर्गादास !
काट मतीरो सेवक साथे,दिजौ ऊणनें खास !!
राजाओं रे चुगलखौराँ री,रहती न्यारी फौज !
अठी उठी री बाँता नें वे,परोसता नित रोज़ !!
पुग्यौ दुर्गों मेहरानगढ़ में,चावन्ड रे दरबार !
टाबर ज्यूँ अरडावण लागौ,क्यूँ हुई आ हार !!
चावन्डा सूँ पाछॊ आताँ,देख्यौ शहर जोधाण !
हियौ उण रौ भर आयौ,छोड़यौ ज़द मेहराण !!
भोले मनड़े रौ ओ मालक,फसग्यो चुगलखौराँ रे जाल !
थानें अरज करूँ मैं मायड़,पहली इणनें तूँ निकाल !!
मारवाड़ सूँ छेलौ मुजरौ,जातौ कियो जूहार !
कुलदेवी नें अरज करी वे,धाम नागाणा जार !!
मनसा म्हारी आ हिज है, मयूरध्वज रौ मान !
राखे भूप अजितसिंह,रणबँका री शान !!
दुर्गादास पुगीया अबे ,राणा रे दरबार !
सादडी़ रौ पट्टो बख्स्यो,स्वगत कियो अपार !!
दुर्गादास रौ मेवाड़ में,हौयौ जबरो मान !
राणा राखी रणबँका री,वा राठौड़ी शान !!
दुर्गौ कहे राणाजी नें,बात एक मैं अरज करूँ !
मनसा म्हारी आ हिज है,शिप्रा तट पर जाय मरूं !!
उज्जिण आप रे भाग नें,मन्न ही मन्न सराय !
दुर्गा जैडो़ देसभगत,शिप्रा में ज़द नहाय !!
शिप्रा पूछे दुर्गदास नें,सुणज्ये तूँ करणौत !
क्यूँ छोङयौ तूँ मारवाड़,भाई-बंधु अर गोत !!
बौल्यौ दुर्गौ हाथजोड़ नें,सुण तूँ शिप्रा माय !
निस्वार्थ सूँ काम करे वो,एक दिन इण गत आय !!
सतरे सौ पीछरौतरौ,आयौ मिंगसर मास !
सुद ग्यारस शनिवार नें,दुर्गौ छोड़ी साँस !!
दुर्गौ कुल रौ सिरोंमणी राठौड़ वंश रौ मोड़ !
सामधर्म नें राखनीयौ,हुयौ न इण री जोड़ !!
मारवाड़ री क्षत्राणियाँ,राखे आ हिज आस !
पूत भला ही एक व्है,पण होवै दूर्गादास !!
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गादास कठे गयौ ले लाठी !
थानें राख सख्या नीं मालक,ज्यांनै थे बाटी !!
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