सोमवार, 6 नवंबर 2017

उखङते ओलमें

"   उखङते ओलमें"
बात 21 वीं सदी के पहले दशक की है। मरूधर के कण - कण में करूणा और अहसान के प्रति कृतज्ञता की भावना ज़िंदा नज़र आती है। लेकिन आधुनिक शिक्षा के चकाचौंध ने किस तरह हमारी माटी की नैतिकता को जलील कर रखा है? मगजी का घर बोई के पार से चार km दूर सूनी नाण में था, 300 की छांग के साथ भरा पूरा परिवार था। तीन गायें थीं। चार गधे थे जो पार से पानी सींचकर मगजी के घर तक लाते थे। गीगू मगजी की बेटी थी और एक ही बेटा सगत जिन्हें मगजी स्नेह से गीगूङी और सगतिया कहकर बुलाते थे। गीगू मगजी के साथ पानी लाने और छांग को गोता देने में व्यस्त रहती थी। सगत को पहले सूंदरा की मिडिल स्कूल में दाखिल करवाया। सगत पढ़ाई में होशियार था, छांग के फलीये गिनने से लेकर बकरे व घेटे बिकने पर व्योपारी द्वारा दिए पैसे गिनने का काम मगजी सगते को ही दिया करते थे, सगते को आगे पढाने के लिए गडरा रोङ के आदर्श स्कूल भेजा तथा गडरा में ही कमरा दिलवा दिया जिसमें तीन बच्चे और भी साथ रहते थे। सगता नियमित स्कूल जाता और विज्ञान वर्ग में स्कूल का बेहतरीन छात्र बन गया। सगते को को स्कूल के सारे अध्यापक भी बङे स्नेह से सगता शेर कहकर पुकारते थे।सगते ने 12वीं कक्षा 80%से उत्तीर्ण की और पीएमटी की तैयारी के लिए कोटा चला गया। कोटा की तकनीकी चकाचौंध में सूनी नाण के मगजी का सगतिया शेर से ना जाने कैसे सैगी ब्रो बन गया पता ही नहीं चला। कोटा में सैगी ब्रो की दिनचर्या बङी रोचक थी, सुबह 10 बजे उठना और उठकर मित्र मंडली के साथ साइबर कैफे जाना व गेमिंग व चैटिंग में पूरा दिन खराब करना, रात को फ्लैट में सैगी ब्रो बिस्तर पर टुबोर्ज की बोतलों के साथ एडवांस मार्लबोरो के धुंए फूंकता कब सो जाता पता ही नहीं लगता। परीक्षा में मेहनत के अनुरूप ही परिणाम मिला और सगता फैल हो गया। मगजी ने गांव के मास्टर मोङजी से सगते के आगे की पढाई के बारे में पूछा तो उन्होंने विदेश से एमबीबीएस करने की सलाह दी। सैगी ब्रो की इच्छा भी तो यही थी। मगजी था भले ही अनपढ़ लेकिन कालजे का काठा था। उसने सैगी ब्रो को कजाकिस्तान जाने की हामी भर दी। सैगी ब्रो ने अमेरिकन टूरिस्टर के ट्रॉली बैग में सामान समेटे सीधे कोटा से उड़ान भरी। वहाँ उसने अपनी आदतों में कुछ और बातें शामिल कर ली, एक अपने होस्टलियरों के साथ बियर बार जाना और दूसरी नगरवधुओं के घाघरों में मुंह ढके पूरा दिन गुजार देता और वेश्यालयों में चरस और गांजा पीते रहना। सैगी ब्रो के पाँच साल कब गुजरे पता ही नहीं चला। सैगी ब्रो को पैसों के बदले डिग्री के नाम पर महज़ आश्वासन। उधर मगजी दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत कर सैगी ब्रो के बैंक अकाउंट को रिचार्ज देते रहते। छांग के पीछे दौड़ते दौड़ते एक दिन आकङे की फांक फटी पगरखी को भेदते मगजी के दांए पैर में गहराई से बैठ गई और मगजी फिर भी दौड़ धूप करते रहते। पखालें भर कर पार से पानी पिलाना, तपती दोपहरियों में खेजङी के खोखे झाङना और देर रात तक फोगों और बणों की ओट में नए फलीयों को ढूंढते रहने और आंखों में बेटे को डाक्टर बनाने के सपने ने मगजी के पैर में लगी फांक का पचवा होकर मवाद तक का रिसाव याद ही नहीं रहा। सङा हुआ पैर बदबू मारने लगा तो मगजी की धर्मपत्नी ने उन्हें छांग के पीछे जाने से रोक दिया। और घर पर ही तिल और मतीरे के बीजों को भूंजकर लिपरी बाँध दी। पर मगजी की पीड़ा कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी। जब पार के अन्य लोगों को ख़बर लगी तो मगजी को उपचार के लिए अहमदाबाद ले जाया गया, मगजी कहते रहे कि सगते को मत कहना नहीं तो वह सोच में पड़ेगा और पढ़ाई नहीं कर पाएगा। अहमदाबाद में भर्ती होने के उपरान्त भी वे डाक्टरों को कहते रहते कि 'हेक डीं मांहझो सगतियो य डाकतर बणसे अन माणसां रो इलाच करसे।' एक महीने बाद डाक्टरों ने गाँव के साथी और मगजी की देखभाल करने वाले 'करनींग' को बताया कि मगजी के पैर में इंफेक्शन की वज़ह से कैंसर फैल गया है और पैर को काटना पड़ेगा। मगजी का पैर आप्रेशन के बूते कट गया। मगजी की तबीयत दुरस्त हो गई, उन्हें गाँव वापस ले ले जाया गया और उन्हें बैडरेस्ट की सलाह मिली। मगजी नींद में भी बङबङाते रहते, 'मांहझो सगतियो डाकतर, सगतियो डाकतर।' भाग्य की करतूत भी अलहदा कि ठीक पंद्रह दिन बाद हृदयाघात से मगजी संसार छोड़ कर चले गए। पीछे छोड़ गए तो 200की अधमरी छांग, चार गधे और एक भारी भरकम सपना जो कभी पूरा नहीं होना था। मगजी को मुखाग्नि देने वाले हाथ भी पराये थे। तीहरे के दिन सैगी ब्रो भी पहुंच गया। उसकी आँखों में ना तो पश्चाताप और ना ही कुछ खोने की पीड़ा। और सब ख़ामोश था, पानी की पखालें, अधमरी छांग, चार गधे बार बार मगजी की याद में मानो रोए जा रहे हों। सैगी ब्रो को करनींग ने पूछ लिया कि "सगतू कडां वणीस डाकतर?" इतने में गीगू सैगी के बैग में स्मैक की पुङिया और मार्लबोरो का पैकेट लेकर सगते के आगे फेंक देती है और करनींग क्याङी का सहारा लेते हुए आसमान को तकता मगजी को जाने क्या ओलमें दे रहा था.............
-----तेज़स........

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