#जहाँ_भाई_के_पीछे_सती_हुई_थी_बहिन...
आज से करीब 800 वर्ष पहले कि बात हैं | हमारे गाँव सुराणा से मुगलो ने गाँव कि गायो को घेर कर के ले गये थे| ईस बात का पता गाँव वालो को लगा तो सुबह गाँव मे सभी लोग ईक्कटे हुए और गाँव मे सभा बुलाई गई तभी ननिहाल से विक्रम सिंह जी गाँव पधारे गाँव मे लोगों कि कॉफ़ी भीड को देख अपनी बहिन मनरु बाई से पुछा तो बहिन ने पुरी जानकारी बताते हुए रोने लगी | जब विक्रम सिह ने गायो को वापस लाने का वादा करते हुए अपना घोडा और तलवार लेते हुए गायो कि रक्षा के लिए दुशमनो का बदला लेने के लिए निकल पडे वहा घमासान युद्ध हुआ और सेकडो मुगलो को मार गिराया और गायो को सुरक्षित गाँव को ले आये ! युद्ध मे घायल होने के कारण वीर विक्रम सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये। गाँव वाले और रिश्तेदार भी सब आ सुके थे | अब अंतिम संस्कार कि तेयारीया होने लगी | ईधर भाई बहन मे अगाध प्रेम होने के कारण मनरु बाई भी भाई के साथ सती होने कि बात कहि तो गाँव वाले धर्म संकाट मे पड गये |सब लोगों के समजाने के बावजूद भी नहीं माने, एक ही बात रठ रहे थे सती होउला |
गाव वालो ने मनरु बाई कि ईच्छा हि र्सवोपरि मानि गई फ़िर मनरु बाई के ईच्छानुसार गाँव के चौहटे पर लकड़िया सजाई गई | अब ढोल-नगाडो के संग वहा पहुंच चुके थे | अब लोगो की उत्सुकता और बढ गई थी | चारों तरफ़ भीड़ ही भीड थी |लोग कई तरह कि अलग अलग बाते कर रहे थे, रिशतेदार और गाव वाले सब शिन्ता मे थे लोगों को एक ही बात कि शिन्ता थी कहि आग मे से भाग तो नहि जायेगी ? ,अब मनरु बाई भाई के मर्त शरीर को गोद मे ले कर सजाई हुई लकड़िया पर बेठ गये | और महाराज को गंगा जल छिडक कर अग्नि प्रवज्ज्लित करने को कहा महाराज ने अग्नि प्रज्ज्वलित कि अब जय कारो के साथ ओम का उशारहण करते हुए देखते देखते भाई के पीछे बहन सती हो गयी।
इतिहास मे पति के पीछे पत्नी के सती होने के हज़ारो उदहारण हैं, पर भाई के पीछे बहन के सती होने का बहुत कम जगह उल्लेख मिलता हैं।
जालोर (सायला) के नजदीक सुराणा गाँव के बीचो बीच वीर विक्रम सिंह जिन्हें स्थानीय भाषा मे "दादाजी बावजी" कहते है,का बड़ा सुन्दर मंदिर बना हुआ।प्रसाद के रूप मे गुड़ चढ़ाया जाता है।मंदिर सभी के लिए खुला है कोई भेदभाव नहीं कोई रोकटोक नहीं।
दादाजी का बड़ा प्रताप है,और कभी भी संकट की घडी मे इन्हें याद करो, ये सहायता करेंगे।
ये राजस्थान हैं जहां गाँव गाँव मे त्याग और बलिदान के सैकड़ो किस्से हैं, सामंत सामंत कहकर बदनाम करने की लाख कोशिशें कर लो,पर पुरखो के बलिदानो के ये जीते जागते निशान कैसे मिटाओगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें