सोमवार, 29 जनवरी 2018

पागड़ी

।। पागड़ी ।।

पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी।
जिद्द पर अब न अड़ी पागड़ी।
रंग केसरियो फीको पड़ियो
रण खेतां में लड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(१)

सिर शूरां री ही शान पागड़ी
पोळयां री ही आन पागड़ी।
धर्म धरा पर धारण करियो
वीरां रो गुणगान पागड़ी।।
दया धर्म अर नेकी पर
अटल अडिग ही खड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(२)

पीड़ परायी भरी पागड़ी
वचनां री ही खरी पागड़ी।
ना हीरा ना मोती जड़ियां
अपणायत सूं हरी पागड़ी।।
कुल री काची कवंळी कुंपळ
स्वाभिमान सूं जड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(३)

सिर शूरां रे सोही पागड़ी
रण खेतां में खोयी पागड़ी।
धीर वीर अर सती झुंझारां
संग रणबंकी होयी पागड़ी।।
सत री साथण धणियांणया री
सत रे साथे खड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(४)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें