शनिवार, 31 मार्च 2018

आऊवा के चारण सत्याग्रही

*आऊवा के सभी *चारण* *सत्याग्रहियों को सादर नमन।* नमन
*गोपाल़दासजी चांपावत* को जिन्होंने इन *सत्य के पुजारियों* के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
नमन उनके *ढोली गोविंद* को जिन्हें यह काम सौंपा गया था कि वो बड़ पर बैठ जाए और सूर्य की प्रथम किरण के साथ ढोल पर डाका दें,और
उसी आवाज के साथ सभी सत्याग्रही अपने गले में कटार पहनकर जोधपुर राजा उदयसिंह के अत्याचारों का प्रतिकार करते हुए प्राणांत करेंगे।
*गोविंद* की संवेदना जागी कि मेरे एक ढोल के डाके के साथ यहां उपस्थित सभी वृद्ध, युवा,तरुण व किशोर वय एक साथ अपने प्राण त्यागेंगे !!और मैं निर्मोही यह मृत्यु रम्मत देखूंगा!!नहीं, मैं इतना निष्ठुर नहीं हूं !!क्यों नहीं सूर्य की पहली किरण के साथ इनसे पहले ही मृत्यु का वरण कर धरण पर अमरता का भागी बनूं।
उस मोटमन ने निस्वार्थ भाव से केवल इसलिए प्राण दे दिए कि ऐसे त्यागी पुरुषों का मरण मैं देख नहीं पाऊंगा।
धन्य है *गोविंद ढोली* जिसने चारणों के लिए अपने प्राण प्रतमाल़ी में पिरोकर त्याग दिए।
*कृतज्ञ चारणों* ने लिखा -
*मुवो सारां मोर*
*दाद ढोली नै दीजै।*(खीमाजी आसिया)
लेकिन हमने हमारी उदात्त मानसिकता को त्यागकर इसी पंक्ति में संशोधन करके  लिखा-
*सिरै मुवो सामोर*
*दाद ढोलां सूं दीजै।।*
जोकि मूल छप्पयों में कहीं नहीं है। मैं  व्यक्तिगत रूप ऐसी मानसिकता को कतई उचित नहीं मानता।
उस  पुण्यात्मा को कुछ शब्द सुमन मैंने समर्पित किए हैं ।जो आपसे साझा कर रहा हूं।
*गीत गोविंद ढोली रो*-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
कमंध जोधांण रो उदैसिंह कोपियो,
लोप मरजाद री थपी लीकां।
खडगबल़ चारणां नेस कर खालसै,
सताया सिटल़पण मांन सीखां।।1

महिपत उदैसिंघ करी जद मनाही,
कमँध जद बिजोड़ा हुकम कांपै।
प्रीत गोपाल़ की उवै दिन पातवां,
चाढ हद भ्रगुटी सधर चांपै।।2

बांहबल़ जितैतक सास वल़ बदन में,
उतैतक चारणां खड़ो आडो।
मुवां गोपाल़ नै हुवै मुर दीहड़ा,
गाढ जद अणाजै भूप गाढो।।3

अणाया पात गोपाल़ जद आऊवै,
भाल़ भड़ अड़ीखंभ हुवो भीरी।
चारणां मरण में प्रीतधर चोल़चख ,
सनातन कारणै हुवो सीरी।।4

ऊभियो आप ले सुतन धिन आठही,
डकर जोधांण नै देय देखो।
धिन पाल मांडणहर हुवो धिन धरा पर,
पौरायत पातवां आप पेखो।।5

तेवड़  धरणो भांणवां मरण ई तेवड़ियो,
करण अदभूत मजबूत कामा।
लाज स्वाभिमान रै  लाल कर लोयणां
सरग दिस हालवा बैय सामा।6

बजंदरी पाल रो वडो बजरागियो,
ईहग अनुरागियो उठै आयो।
जमर थल़ देखनै जोस उर जागियो,
गोविंद बडभागियो गलां गायो।।7

मिहिर री उगाल़ी सज्या कव मरण नै,
धरण पर  रखण जसनाम धाको।
बिठायो ढोल दे गोम नै विरछ पर
दुरस वो समैसर दैण डाको।।8

अंतस में करुणा  गोम रै ऊपड़ी,
ढमंको बाजँतां साच ढोलां।
पहरसी विदग सह गल़ै प्रतमाल़का,
बात उजवाल़सी आप बोलां।।9

ऊजल़ै नरां रो मरण मो ईश्वर,
दिखाजै लोयणां मती  दाता।
ऐहड़ी गोमंदै सोच चित ऊजल़ै,
रढाल़ै गल़ै की नैण राता।।10

पातवां काज दे प्राण प्रतपाल़ियै,
खरैखर  सुजस री हाट खोली।
दुथियां तणो वो मरण नीं देखवा
ढोल रो ढमंको तज्यो ढोली।।11

दुनी में लियो जस लूट धिन दमामी,
कियो धिन अमामी बडम काजा।
सरग पथ बहियो गोविंदो सुनामी,
बजायर कीरति तणा बाजा।।12

गुणी धिन हुवो धर ऊपरै गोमंदा,
जांणियो ईहगां इल़ा जोतां।
पेख वो कमाई तणो फल़ पाकियो,
पांमियो आदरं गोविंदपोतां।।13

पहल वो सारां सूं मरण तैं पांमियो,
मानियो पातवां गुणी मांटी।
वोम धर जितैतक गोम री वल़ोवल़
चहुंवल़ रहेला अमर अजै चांटी।।14

कांमेसर शंभु रै आगल़ै कवेसर,
धिनो धाराल़ियां गात धारी।
खल़कियो रगत परनाल बण खल़हलै,
साख दुनियांण आ अजै सारी।।15

आंटीलै भड़ां री धरा धिन आऊवो,
मोटमन मारका हता मांटी।
टकर जोधांण नै दिवी हद टणकपण,
अड़्यां फिरंगांण सूं देय आंटी।।16
गिरधरदान रतनू  दासोड़ी

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