"उठो जसवंत....,
तुम्हें, भट्याणी जसोल पुकार रही,
उठो जसवंत.....,
तुम्हें, मालाणी की धरा पुकार रही,
सो गए तुम निश्चित होकर, चले गए वो राम, जिनके तुम थे हनुमान,
मालाणी की है पुकार, अब जग चूका है स्वाभिमान,
उठो जसवंत ...,
आज़ादी और अर्थ की चोट हमने झेली है,
..मगर अब अहम् पर वज़्रपात भारी है,
उठो जसवंत ...,
तुम्हे अब मालाणी पुकार रही है,
तुमने राष्ट्र का अभिमान- स्वाभिमान और अरमान बढ़ाया था,
....मगर, हमने तुम्हे मिटाने कीर्तिमान बनाया है,
अब उठ जाओ जसवंत,
सोवो मत अब, मत रूठो, उसे उठा दो,
..उसे बुला दो, हमे जगा दो, जिसे मालाणी पुकार रही,
..............अब उठो जसवंत"..
साभार : स्वरूप सिंह चामू ।
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शनिवार, 1 सितंबर 2018
उठो जसवंत....
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