सोमवार, 25 दिसंबर 2017

चारण- राजपूत परंपरा

*चारण- राजपूत परंपरा

राजा रावल हरराज भाटी जैसलमेर
कहते है की मेरा राज्य व धन वैभव सभी कुछ चले जावे उसकी मुझे चीन्ता नही है परन्तु मेरे घर से चारण (भांजो) का जाना मुझे स्वीकार नही है-

कुछ पंक्तीया:,

जावैगढ राज भलैभल जावै राज गयां नह सोच रत्ती
गजबढ है आं चारण गयां सूं पलटे मत वण छत्रपति।।

अर्थ:-रावल हरराज भाटी कहते है मेरा गढ चला जावे, राज्य सत्ता चली जावे, ईन सबके चले जाने पर मुझे लेश मात्र की चींता नही है। पर अगर चारण गया तो अनर्थ ही हो जायेगा। इसलिए राजपूतो तुम राजा बनने पर मदान्ध हो चारण को कभी मत भुलना।।

धू धारण केवट छत्रिधर्म रा कळयण छत्रवट भाळ कमी।
व्रछ छत्रवाट प्राजळण वेळा चारण सींचणहार अमी।।

अर्थ:- जीस प्रकार ध्रुव अटल है उसी प्रकार चारण अटल व अडीग रहकर क्षत्रिय धर्म नीभाते है,वे जहा कही भी क्षात्रधर्म की कमी देखते है उसे तत्काल पुरा करते है। ये चारण क्षात्रवट रुपी वृक्ष को सींचकर सदैव हराभरा रखने वाले है।

आद छत्रियां रतन अमोलो कुळ चारण अपसण कीयो
चोळी-दांमण सम्बध चारणां जीण बळ यळ रुप जीयौ

अर्थ:- शक्ति ने चारण नामक जाति उत्पन्न करकर क्षत्रियो को यह अमूल्य रत्न प्रदान कीया है। इस पावन सम्बन्ध -'चोलीदामन'(चारण - राजपूत ) का स्थापित किया है ,अब तुम इनको साथ रखकर अपने बल से जीवित रहो।

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