जोर जी चाम्पावत
जोरजी चांपावत कसारी गांव के थे जो जायल से 10 किमी खाटू सान्जू रोड़ पर है जहा जोरजी की छतरी भी है !
जोधपुर दरबार एक फोरेन से बन्दूक मंगाई थी और दरबार मे उसका बढ चढ कर वर्णन कर रहे थे संयोग से जोरजी भी दरबार मे मोजुद थे !
दरबार ने जोरजी से कहा, देखो जोरजी ये बन्दूक हाथी को मार सकती है !
जोरजी ने कहा, इसमे कोनसी बड़ी बात है हाथी तो घास खाता है !
दरबार ने फिर कहा, ये शेर को मार सकती है..
जोरजी ने कहा, शेर तो जानवर को खाता है !
इस बात को लेकर जोरजी और जोधपुर दरबार मे कहा सुनी हो गयी...
तब जोरजी ने कहा, मेरे पास अगर मेरे मनपसंद का घोड़ा और हथियार हो तो मुझे कोई नही पकड सकता चाहे पुरा मारवाड़ पिछे हो जाय..
तो जोधपुर दरबार ने कहा आपको जो अच्छा लगे वो घोड़ा ले लो और ये बन्दुक ले लो...
जोरजी ने वहा से एक अपने मनपसंद का घोड़ा लिया और वो बन्दुक ले कर निकल गये..
और मारवाड़ मे जगह जगह डाका डालते रहे !
जोधपुर दरबार के नाक मे दम कर दिया दरबार ने आस पास की रियासतो से भी मदद ली पर जोरजी को कौई पकड़ नही पाये ।
तब ये दोहा प्रचलित हुआ !
"चाम्पा थारी चाल औरा न आवे नी,
बावन रजवाङा लार तु हाथ कोई के आवे नी ।"
फिर दरबार ने जोरजी पर इनाम रखा की जो उनको पकड़ के लायेगा उन्हे इनाम दिया जायेगा,
इनाम के लालच मे आकर जोरजी के मासी के बेटे भाई खेरवा ठाकर धोखे से खेरवा बुलाकर जोरजी को मारा ! जोरजी ने मरते मरते ही खेरवा ठाकर को मार गिराया !
जब जोधपुर दरबार को जोरजी की मौत के बारे मे पता चला तो बहुत दूखी हुवे और बोले ऐसे शेर को तो जिन्दा पकड़ना था ऐसे शेर देखने को कहा मिलते है !!
जोरजी बन्दुक और कटारी हरसमय साथ रखते थे, खेरवा मे रात को सोते समय बन्दुक को खुंटी मे टंगा दी और कटारी को तकिये के नीचे रखते थे !
जब जोरजी को निन्द आ गयी तो खेरवा ठाकर बन्दुक को वहा से हटवा दी और जोरजी के घोड़े को गढ़ से बहार निकाल कर दरवाजे बन्द कर दिया !
तो घोड़ा जोर जोर से बोलने लगा घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर जोरजी को कुछ अनहोनी की आसंका हुई वो उठे ओर बन्दुक की तरफ लपके पर वहा बन्दुक नही थी !
तो जोरजी को पुरी कहानी समझ मे आ गयी ओर कटारी लेकर आ गये चौक मे मार काट शुरू कर दी उन सैनिको को मार गिराया !
खेरवा ठाकर ढ्योढी मे बैठा था वहा से गोली मारी !
जोरजी घायल शेर की तरह उछल कर ठाकर को ढ्योढी से निचे मार गिराया !
ओर जोरजी घायल अवस्था मे अपने खुन से पिण्ड बना कर पिण्डदान करते करते प्राण त्याग दिये !!
( उस समय जो राजपुत खुद अपने खुन से पिण्डदान करे तो उनकी मोक्स होती है ऐसी कुछ धारणा थी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें