गोरा और बादल
मेवाड़ की धरती की गौरवगाथा गोरा और बादल जैसे वीरों के नाम के बिना अधूरी है. हममें से बहुत से लोग होंगे, जिन्होंने इन शूरवीरों का नाम तक न सुना होगा! मगर मेवाड़ की माटी में आज भी इनके रक्त की लालिमा झलकती है.
मुहणोत नैणसी के प्रसिद्ध काव्य ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ में इन दो वीरों के बारे पुख्ता जानकारी मिलती है. इस काव्य की मानें तो रिश्ते में चाचा और भतीजा लगने वाले ये दो वीर जालौर के चौहान वंश से संबंध रखते थे, जो रानी पद्मिनी की विवाह के बाद चितौड़ के राजा रतन सिंह के राज्य का हिस्सा बन गए थे.
ये दोनों इतने पराक्रमी थे कि दुश्मन उनके नाम से ही कांपते थे. कहा जाता है कि एक तरफ जहां चाचा गोरा दुश्मनों के लिए काल के सामान थे, वहीं दूसरी तरफ उनका भतीजा बादल दुश्मनों के संहार के आगे मृत्यु तक को शून्य समझता था.
यहीं कारण था कि मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उन्हें अपनी सेना की बागडोर दे रखी थी.
इस कारण छोड़ना पड़ा मेवाड़…
इसमें कोई संदेह नहीं कि वीरता से ओतप्रोत होने के साथ-साथ गोरा और बादल में स्वामिभक्ति कूट कूट कर भरी हुई थी. ये दोनों शूरवीर अपने राज्य की तरफ उठने वाली आँखों को निकाल लेने का माद्दा रखते थे. उन्हें किसी भी कारण वश दुश्मन के सामने झुकना स्वीकार नहीं था.
माना जाता है कि जब अलाऊदीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमले से पहले रानी पद्मिनी को शीशे में देखने की बात कही, तो राजा रतन सिंह का खून खौल उठा था. वह उसको इसका जवाब देना चाहते थे, किन्तु उनकी पत्नी रानी पद्मिनी ने ही इस पर उनसे सहमति जताने को कहा था. असल में वह भलीभांति जानती थीं कि अगर खिलजी ने राज्य पर आक्रमण कर दिया, तो उसका दुष्परिणाम राज्य की निर्दोष जनता को भुगतना पड़ेगा. यह सोचते हुए रानी ने राजा को समझाते हुए खिलजी की यह पेशकश मान लेने की सलाह दी थी.
योजना के अनुसार खिलजी को रानी का मुख सामने से ना दिखा कर शीशे में उनका प्रतिबिम्ब दिखाया जाने वाला था. यह बात जब वीर गोरा के संज्ञान में आई तब वह क्रोध से झुलस उठे तथा उन्होंने राजा को ऐसा ना करने का आग्रह किया, किन्तु राजा ने इसे राजनीतिक मज़बूरी बता कर उनकी बात मानने से इंकार कर दिया.
राजा के इस इंकार से गोरा इतने आहत हुए कि अपने भतीजे बादल के साथ राज्य छोड़ कर चले गए. उनके राज्य छोड़ने का दुष्परिणाम यह हुआ कि उनकी गैरमौजूदगी में खिलजी ने राजा रतन सिंह को छल से अगवा कर लिया.
जब रानी पद्मिनी ने किया आग्रह!
खिलजी द्वारा राजा रतन सिंह को अगवा किए जाने के बाद खिलजी ने यह सन्देश भिजवाया कि यदि चित्तौड़ की सेना अपने राजा को वापिस चाहती है, तो उन्हें रानी पद्मिनी को उसके हवाले करना होगा. यदि ऐसा ना हुआ तो वह राजा की मृत्यु के साथ-साथ चित्तौड़ का विनाश भी कर देगा. इस विकट परिस्थिति में रानी पद्मिनी के दिमाग में एक ही नाम गूंजा और वह था सेनापति गोरा का.
रानी जानती थीं कि चितौड़ में वीर तो बहुत हैं, किन्तु खिलजी के चंगुल से राजा रतन सिंह को सकुशल वापिस ले आये, ऐसा कुशल सेनानायक सिर्फ गोरा ही है.
काफी कोशिशों के बाद रानी को गोरा का पता चला. वह जानती थी कि गोरा को मनाना आसान नहीं है, इसलिए वह खुद उनके पास गईं और उनसे सहायता की गुहार लगाई. शुरुआत में गोरा नहीं माने, उनकी आंखों में क्रोध की ज्वाला जल रही थी, किन्तु रानी पद्मिनी ने जब बार-बार द्रवित स्वरों में उनसे आग्रह किया तो गोरा का दिल पिघल गया.
उन्होंने रानी को वचन दिया कि भले ही उसे अपने प्राण ही क्यों ना गंवाने पड़ें, किन्तु राजा सकुशल चितौड़ अवश्य लौटेंगे.
खिलजी के खिलाफ ‘गोरा’ का प्लान
रानी पद्मिनी को गोरा ने वचन दे तो दिया था, किन्तु उन्हें इस बात का इल्म था कि खिलजी से सामने से जीतना आसान नहीं है. खिलजी की सेना के सामने उनकी सेना ठीक वैसी ही थी, जैसे समुद्र के सामने को छोटा तालब.
खैर, वह गोरा के इरादों से बड़ी नहीं थी. जल्द ही गोरा ने अपने भतीजे बादल के साथ मिलकर इसका तोड़ निकाल लिया. दोनों ने मिलकर एक ऐसी योजना तैयार की, जिससे वह चुप चाप जाकर राजा को बंदीगृह से छुड़ा कर वापिस ला सकें.
रानी पद्मिनी को पाने की ज़िद में बैठे खिलजी ने इन शर्तों को मानने में देरी नहीं की. वह मन ही मन रानी पद्मिनी को पाने के लिए खुश था, लेकिन उसे इस बात की खबर नहीं थी कि वह बादल और गोरा के चंगुल में फंस चुका है.
अगले दिन ही योजना के अनुसार सैंकड़ो डोलियाँ तैयार की गयीं, जिनमे दासियों के स्थान पर चित्तौड़ के चुने हुए बहादुर सैनिकों को बिठाया गया. रानी के स्थान पर गोरा स्वयं पालकी में बैठे. सभी पालकियां खिलजी के शिविर पर पहुँच गयीं.
शर्त के अनुसार रानी को राजा रतन सिंह से मिलने का समय दिया गया.
जब खिलजी पर मौत बनकर टूटे गोरा
जैसे ही रतन सिंह पालकी के पास पहुंचे, गोरा ने तेजी से उन्हें पालकी मे ंबैठ जाने को कहा और कुछ साथियों के साथ मेवाड़ की तरफ रवाना कर दिया. यह देख खिलजी का सेनापति भौचक्का रह गया!
चूंकि, उसे भी पहले से इसकी आशंका थी… उसने भी तैयारी कर रखी थी. उसने अपनी सेना को तेजी से हमला करने को कहा.
हालांकि, वह गोरा को रोक पाते, उससे पहले ही गोरा खिलजी के कक्ष में जा पहुंचें, जहाँ वह अपनी उपपत्नी के साथ उपस्थित था, कहा जाता है कि गोरा खिलजी को मारने ही वाले थे कि वह जाकर उस महिला के पीछे छिप गया.
खिलजी इस बात को अच्छे से जानता था कि राजपूत वीर किसी महिला अथवा बच्चे पर वार नहीं करते. हुआ भी यही, गोरा की तलवार जहाँ थी वहीं थम गयी. इस मौके का फायदा उठाते हुए खिलजी के सैनिकों ने गोरा पर पीछे से वार कर के उसका सर धड़ से अलग कर दिया.
गोरा का सिर जमीन पर पड़ा था, बावजूद इसके कहते हैं कि गोरा में इतना बल बचा हुआ था कि उनका धड़ दुश्मन का सामना कर रहा था. अपने पिता से बढ़ कर चाचा की छल पूर्वक हत्या के बाद मानो बादल में स्वयं काल समा गया था.
दुश्मन के भाले द्वारा पेट चीरे जाने के बाद भी बादल अपनी तलवार से युद्ध भूमि को दुश्मनों के लहू से सींचता रहा. उसके साथ चितौड़ के अन्य योद्धाओं ने भी महाबली गोरा का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया, उन्होंने एक कदम भी खिलजी की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया.
अंतत: वह अपने राजा रतन सिंह को मेवाड़ पहुंचाने में सफल रहे.
खून से लथपथ बादल मेवाड़ पहुंचे तो…
खून से लथपथ बादल जब राजा को लेकर महल लौटा, तब गोरा की पत्नी गोरा को उनके साथ ना देख कर समझ गयी कि उसके पति ने आज अपने वचन के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.
बादल इस धर्मसंकट में था कि वह अपने चाचा के मृत्यु की सूचना अपनी चाची को कैसे सुना पायेगा, किन्तु गोरा की पत्नी ने उसका धर्मसंकट दूर करते हुए स्वयं ही गर्व से पूछ लिया “बताओ बादल आज युद्ध की क्या स्थिति रही ? मेरे स्वामी युद्ध में किस प्रकार दुश्मनों पर काल बन कर टूटे ?”
बादल ने अपनी चाची के इस साहस का आदर करते हुए गर्व के साथ उन्हें कहा ‘आज उन्होंने शत्रुओं का खूब संहार किया, सैंकड़ों दुश्मनों के प्राण उनकी तलवार का शिकार बने. चाची चाचा वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये.’
बादल से अपने पति की वीरता का वर्णन सुनने के बाद गोरा की पत्नी के मुख पर संतोष छा गया तथा कुछ देर मौन रहने के बाद वह पहले से सजाई गयी जलती चिता में यह कहते हुए कूद पड़ीं कि ‘अपने स्वामी को अब मैं अपनी अधिक प्रतीक्षा नहीं करने दूंगी.’
गोरा और बादल जैसे वीरों के कारण ही आज हमारा इतिहास गर्व से अभिभूत है. ऐसे वीर जिनके बलिदान पर हमारे आंसू छलक जाएं,........
उन्हें कोटि-कोटि नमन.🙏
🚩जय राजपुताना🚩
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