बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

लेबा भचक रूठियो लालो

*गिरधरदान रतनू    दासोड़ी
राजस्थान रो मध्यकाल़ीन इतियास पढां तो ठाह लागै कै अठै रै शासकां अर उमरावां चारण कवियां रो आदर रै साथै कुरब-कायदो बधाय'र जिणभांत सम्मान कियो  वो अंजसजोग अर अतोल हो।
जैसल़मेर महारावल़ हरराजजी तो आपरै सपूत भीम नै अठै तक कह्यो कै 'गजब ढहै कवराज गयां सूं, पल़टै मत बण छत्रपती।'तो महारावल़ अमरसिंहजी,  कवेसरां रो जिणभांत आघ कियो उणसूं अभिभूत हुय'र कविराजा बांकीदासजी कह्यो-'माड़ेचा तैं मेलिया ,आभ धूंवा अमरेस।'टोडरमलजी मोही, भोई बणिया, बूंदी रा शासक शत्रसालजी हाडा देवाजी महियारिया री पगरखियां खुद रै हाथां उठाय'र उणांरै पगां आगे राखी तो जोधपुर रा महाराजा अभयसिंहजी, करनीदानजी नै आपरै खांधै पग दिराय'र हाथी चढाय  जल़ेब में बैया।इणीभांत बड़ली रा ठाकुर लालसिंहजी राठौड़ ,कविश्रेष्ठ महादानजी मेहडू रै घोड़ै रै आगै पाल़ा-पाल़ा बैय'र उणांनै, उणांरै सासरै हिंयाल़िया पूगाय'र आया।
यूं तो केई लेखकां इण घटना रा कवि कविराजा करनीदानजी नै मानिया है अर लालसिंहजी बड़ली री कीरत में रचित गीत री रचनाकार बरजूबाई नै मानिया है। बरजूबाई नै केई करनीदानजी री जोड़ायत तो केई बैन मानै अर उणांरो मानणो है कै लालसिंहजी जद मराठां सूं लड़िया उण बखत तक करनीदानजी इहलोक नै तज चूका हा।सो करनीदानजी रै वादे मुजब लालसिंहजी रा बखाण बरजूबाई किया।पण आ बात इतियास री कसौटी माथै खरी नीं उतरै।  इण विषय में विख्यात इतिहासकार सुरजनसिंहजी झाझड़  रो मत वजनी है ।उणां कालखंड रै मुजब महादानजी मेहडू नै वै कवि  मानिया जिणांरी सेवा में बड़ली ठाकर आगे- आगे पाल़ा बुवा। आ बात वस्तुतः सही ई है।
सिरस्या रा महादानजी मेहडू, जिणांनै जोधपुर महाराजा मानसिंहजी उणां री इच्छा मुजब सोढावास ठिकाणो इनायत कियो।जद महाराजा इणांनै गांम रै मुजरै रो आदेश दियो तो उणां कह्यो-
*पांच कोस पांचेटियो,*
*आठ कोस आलास।*
*नानाणो म्हारो नखै,*
*समपो सोढावास।।*
अर महाराजा सोढावास उणांनै बगसियो।
महादानजी तीन ब्याव किया ।जिणांमें एक ब्याव उणां हियाल़िया रा बारठ शंकरदानजी री बैन साथै कियो।
एक'र चौमासै री बखत । महादानजी आपरै सासरै पधार रह्या हा।बड़ली पूगा ईज हा कै रात अंधारीजगी।आभो घटाटोप हुयग्यो।बीजल़ी कड़ाका करण लागी अर राटक'र मेह बरसियो-
सामठा चात्रग सोर दादुरां बकोर साद,
झाझा मोर बैठा करै गिरंदै झिंगोर।
वादल़ा तणा उलोल़ उत्तराधी कोर वाधै,
घघूंबै सजोर घटा मांडै घणघोर।।
च्यारां कानी पाणी रा बाल़ा ई बाल़ा।घणा झाड़ झंखाड़। ऐड़ै में कवि नै मारग रो ज्ञान नीं रह्यो।कवि गतागम में ईज हो कै बड़ली ठाकुर लालसिंहजी उणी बखत भेस बदल़'र गांम रो फेरो देवण निकल़िया।
उल्लेख्य है कै बड़ल़ी महान स्वातंत्र्य प्रेमी जोधपुर राव चंद्रसेनजी रै पोते कर्मसेनजी रै छोटे बेटे अखेराजजी री परंपरा  में एक ठावको ठिकाणो।अठै रा ठाकुर लालसिंहजी वीर,साहसी अर उदार मिनख अर इण बात रा पखधर-
*ऊदा अदतारां तणा,*
*जासी नाम निघट्ट।*
*जाण पंखेरू उड्डियो,*
*ना लिहड़ी ना वट्ट।।*
बड़ली रै गोरवें एक मिनख नै देखियो तो महादानजी उणनै हेलो कियो अर पूछियो -ऐड़ी मेह अंधारी रात।आभो रिंध रेड़ रह्यो है अर तूं घर छोड'र गांम रै गोरवें कांई करै?"
जद भेष बदल़ियोड़ा ठाकुर साहब कह्यो-
"अठै तो बड़ली ठाकुर साहब रै आदेश सूं गांम रै पोरो(पहरा)देय रह्यो हूं।कोई चोरी चकारी नीं हुय जावै।"
-"तो भाई! एक काम म्हारो ई करै कनी!कवि कह्यो तो उणां पूछियो कै -कांई?
जद महादानजी कह्यो -"तूं म्हनै हिंयाल़िया तक पूगाय दे नीं।तनै थारी धाड़ी दे दूंला।"
जणै लालसिंहजी जाणग्या कै बटाऊ चारण है जद उणां कह्यो-"तो आप रात-रात अठै ई ठाकुर साहब कनै ई विराजो नीं।दिनुगै आराम सूं पधार जाया।"
जणै कवि कह्यो-"तूं ठीक कैवै पण कोई पण आदमी आपरै गांम कै सासरै सूं दो-तीन कोस माथै कठै ई ठंभै तो-'का तो नार कुभारजा,का नीं नैणां नेह।' सो तूं म्हनै हिंयाल़िया पूगावै जैड़ी बात कर।"
ठाकुर साहब अबै पक्को जाणग्या कै बटाऊ कोई चारण है अर पाखती बारठां रै अठै जासी।मेह अंधारी रात ।ऐड़ै में मिनख रो फर्ज बणै कै अंसधै आदमी री मदद करणी चाहीजै अर पछै ओ तो चारण है!-
*चारण तणो रहे सो चाकर*
*सो ठाकर संसार सिरै।*
आ सोच'र उणां कह्यो कै -" तो हालो  आपनै हिंयाल़िया तक पूगाय दूं।"
हिंयाल़िया ,बड़ली सूं  दो-ढाई कोस।आगे-आगे पाल़ा -पाल़ा लालसिंहजी अर लारै-लारै घोड़ै सवार महादानजी मेहडू।
ज्यूं ई हिंयाल़िया रो गवाड़ अर उठै रै बारठ री तिबारी आई अर लालसिंहजी कह्यो -"लो हुकम!आपरो ठयो आयग्यो।आ हिंयाल़िया री तिबारी।अबै म्हनै रजा दिरावो ।म्हैं पाछो गांम रै पोरै माथै जाऊं।"आ सुण'र महादानजी कह्यो -"इयां क्यूं जावै?ब्याल़ू बीजो कर'र जा।"जणै लालसिंहजी कह्यो -"नीं ,ब्याल़ू बीजो नीं करूं।म्हनै आपनै ठयेसर पूगावणा हा सो पूगाय दिया अब म्हारो काम पूरो हुयो।" जणै महादानजी कह्यो-"कोई बात नीं, थारी मरजी पण थारी पगदौड़ (मजदूरी)तो लेय'र जा।"आ सुण'र लालसिंहजी कह्यो -"नीं हुकम!आप हिंयाल़िया रै बारठां रा मैमाण सो म्हारै ई मैमाण।इणमें कैड़ी पगदौड़?आप आराम सूं रावल़ै पधारो अर हूं पाछो जाऊं।"आ बंतल़ सुण'र रावल़ै मांयां सूं एक -दो सिरदार ई आयग्या।उणां आवतां ई अंधारी रात में ई बोली सूं लालसिंहजी नै ओल़ख लिया अर कह्यो -"खमा !खमा!पधारो हुकम !आज तो मेह अर मैमाण दोनूं एकै साथै!आपरै पधारणै सूं म्हांरी टापरी ई पवित्र हुई।"
महादानजी ई समझग्या कै म्हनै पूगावणियो कोई साधारण मिनख नीं बल्कि खुद बड़ली ठाकुर लालसिंहजी है।
उणां कह्यो -"हुकम आप म्हारै माथै ऋण चढा दियो।आप पाल़ा अर हूं घोड़े सवार!जुलम किया।ओ ओसाप कीकर उतरैला?अबार तो आप म्हनै पूगायो है ,इणरा तो हूं कांई बखाण करूं?पण भविष्य में कदै ई आप वीरता बतावोला तो हूं फूल सारू पांखड़ी रै रूप में अमर करण री कोशिश करूंलो।"
जोग ऐड़ो बणियो कै दोलतराव सेंदिया रो अजमेर   सूबेदार मराठा बापूराव मेवाड़ माथै हमलो कियो।उण बखत बड़ली ठाकुर लालसिंहजी मेवाड़ री मदद में जकी वीरता बताई वा सेंदियां रै आंख्यां री किरकिरी बणगी।उणी दरम्यान मेवाड़ अर सेंदियां रो राजीपो हुयग्यो।मेवाड़, लालसिंहजी नै कह्यो कै -"आप अठै आवोरा आपनै आपरै कुरब मुजब जागीर दी जासी।क्यूंकै अबै दुसमण आप माथै हमलो करसी अर बड़ली भिल़ण री पूरी संभावना है।लालसिंहजी इण बात री गिनर नीं करी।उण बखत लालसिंहजी रै हियै में जका भाव उमड़िया।उणांनै किणी चारण कवेसर इणगत दरसाया--
*बंका आखर बोलतौ*
, *चलतौ वंकी चाल।*
*झड़ियौ वंकी खाग झट,*
*लड़ियौ बंकौ लाल।।*

*वड़ली तल़ सूखी भई,*
* *तै पोंखी रिण ताल़।*
*पौह धरां किम पालटै,*
*लोही सींची लाल।।*

*इम कहतौ लालो अखर,*
*दूलावत डाढाल़।*
*जीवतड़ौ गढ सूंप दे*,
(वां)
*गढपतियों ने गाल़।।*
जोग सूं थोड़ै समय पछै ई दोल़तराव सेंदिया रै अजमेर रै अंतिम सूबेदार बापूराव ,बड़ली माथै हमलो कर दियो।
उण बखत लालसिंहजी जकी वीरता बताई वा इतियास में अमर है।
उण लड़ाई में लालसिंहजी आ सिद्ध कर दीनी कै-
*कंथा कटारी आपरी,*
*ऊभां पगां न देह।*
*रुदर झकोल़ी भुइ पड़ै,*
(पछै)
*भावै सोई लेह।।*
अदम्य साहस अर आपाण बताय'र राठौड़ दूलेसिंहजी रै सपूत लालसिंहजी वि.सं.1872 री चैत बदि दूज रै दिन वीरगत वरी।आ बात जद महादानजी मेहडू सुणी तो उणां दस दूहालां रो एक भावप्रवण सावझड़ो गीत बणायो।गीत रो एक -एक आखर वीरता रो प्रतिबिंब   सो लागै-
आंटीला ऊठ सतारावाल़ा।
तो ऊपर वागा त्रंबाल़ा।
नाह बाघ जागो नींदाल़ा।
कहिजै कटक आवियो काल़ा।।

चखरा वचन सुणे चड़खायो।
अंग असलाक मोड़तो आयो।
दूलावत इसड़ो दरसायो।
जांणक सूतो सिंघ जगायो।।

किसै काम आवण रण कालो।
बांधै माथै मोड़ विलालो।
भुजडंड पकड़ ऊठियो भालो।
*लेबा भचक रूठियो लालो।।*

जूनी थह जातां हद जूटो।
खूनी सिंघ सांकल़ां खूटो।
छूटां प्रांण पछै हठ छूटो।
तूटां सीस पछै गढ तूटो।।
उण महावीर रा बखाण करतां किणी बीजै कवि एक सतोलो कवित्त बणायो ।जिणमें कवि लिखै कै शिव री मुंडमाल़ा में पिरोयोड़ो लालसिंह रो सीस दकालां कर रह्यो है---
बनी सुख सज्या तहां चंद का उजाला वेस,
रैन के समय में आप पौढे ध्यान शाला में।
पीवै मेग प्याला ताते नैन है गुलाला पूर,
लहरा रहे चौसर से उर्ग मृगछाला में।
भाला खग कमध चलाया हद भारत में।
मस्तक सुमेर ज्यों बनाया कंठ माला में।
सोती संग शंभु कै चम्मकै बेर बेर बाला,
*करै सीस लाला को दकाला मुंडमाला में।*
आज नीं लालसिंहजी है अर नीं महादानजी मेहडू पण उण दोनां री बात जनकंठां में आज ई अमर है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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