" पत्नी री पीड़ मोबाईल "
--------------------
ऐ सखी म्हारो सायबो
सुणे नी मन की बात।
सोच सोच बिलखूँ घणी,
निबळो पड़ियो गात।
जद स्यूं घर में आवियो,
रिपु मोबाइल भूत।
बतळायाँ बोले नहीं,
रैवे जियां अवधूत।
दिन आखो चिपक्यो रैवे,
मोबाइल रे संग।
जक नी लेवै रात दिन,
आछ्यो हुयो अपंग।
बता सखी यो वाट्सप,
कुण करियो निरमाण।
छाती छोल र धर दी ,
इन म्हारी सौतन जाण।
आँख्यां ताणे उंघतो,
आधी आधी रात।
झंझारकै ही जागज्या,
झट ले ठूंठो हाथ।
म्हा स्यूं तो बतळे नहीं,
फेसबूक पे गल्ल।
मुळक मुळक गल्लां करै,
कर मोबायल ,
टुकड़ो तिल खावै नहीं,
लाईक री घण भूख।
चढ़ चश्मो आंधा हुआ,
डोबा लाग्या दूख।
रैण दिवस पड़ियो रैवे,
करै न कोई काम!
मोबाईल हाथां रेवै,
भोर दुपहरी शाम।
हाथ मगज़ दुबळा हुया,
नैण हुया अणसूझ।
सखी तमीणे सायबे ने,
रस्तो कोई तो बूझ।
पिंड छूटे इण पाप स्यूं,
करै' जै कोई काम।
करै राजरी नौकरी,
सिंझ्या भजले राम।
सखी राह कोई बता,
किम छोडाउं लार।
मोबाइल री सौत ने,
केहि बिध काढुं बार।
हाल रैयो जै कैई दिनाँ,
तो उठसी म्हारौ चित्त।
क मोबाइल रैइसी,
क बंदी रहसी इत्त।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें