सोमवार, 9 जुलाई 2018

हूं नीं, जमर जोमां करसी

हूं नीं, जमर जोमां करसी!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

धाट धरा(अमरकोट अर आसै-पासै रो इलाको) सोढां अर देथां री दातारगी रै पाण चावी रैयी है।सोढै खींवरै री दातारगी नै जनमानस इतरो सनमान दियो कै पिछमांण में किणी पण जात में ब्याव होवो ,पण चंवरी री बखत 'खींवरो' गीत अवस ही गाईजैला-
कीरत विल़िया काहला,
दत विल़ियां दोढाह।
परणीजै सारी प्रिथी,
गाईजै सोढाह।।
तो देथां रै विषय में चावो है-
दूथियां हजारी बाज देथा।।
इणी देथां रो एक गांम मीठड़ियो।उठै अखजी देथा अर दलोजी देथा सपूत होया।अखजी रै  गरवोजी अर मानोजी नामक दो बेटा होया। मानोजी एक 'कागिये'(मेघवाल़ां री एक जात) में कीं रकम मांगता।गरीब मेघवाल़ सूं बखतसर रकम होई नीं सो मानोजी नै रीस आई ।वे गया अर लांठापै उण मेघवाल़ री एकाएक सांयढ आ कैय खोल लाया कै -"थारै कनै नाणो होवै जणै आ जाई  अर सांयढ ले जाई।"
थाकोड़ो(गरीब) आदमी हो सो रुपिया कठै?कीं जेज कल़पियो अर पछै हिम्मत करर गरवैजी देथा कनै गयो अर आपरा रोवणा रोयो तो साथै ई आमनो ई कियो कै -"थे म्हारी मदत नीं करोला तो कुण करैला?"
गरवोजी नै उण माथै दया आई।वे गया अर आपरै भाई मानैजी नै फटकारिया कै -काला!ओ आपांरो कारू मतलब आपांरो टाबर अर तूं इणरी सांयढ खोल लायो!तनै विचार नीं आयो कै ऐड़ी रिणी रुत(अकाल का समय)में ओ पइसा कठै सूं लावै?सो इणरो टंटेर पाछो दे।"
आ सुण मानजी कैयो कैयो कै -"ऐड़ी घणी कीरप आवै तो घर सूं छीजो।पइसा घर सूं देवो अर सांयढ ले जावो ।नीतर लूखो लाड अर घणी  खमा दरसावण री जरूत नीं।ऐ च्यारूं मारग ऊजल़ा है।जचै जकै जावो।"
इण बात सूं दोनूं भाइयां में असरचो(विवाद)
बधग्यो  अर अणबण होयगी।
वाद इतो बधग्यो कै एक-दूजै सूं अबोलणा रैवण लागा।
गरवैजी मिठड़ियो छोडण रो विचार कियो।जोग ऐड़ो बणियो कै चौमासै रो बखत हो।मेह वरसियो सो मीठड़िये सूं थोड़ो पाखती ,पाणी एक जागा भेल़ो होय धरती रै मांया जावणो लागो।गरवैजी देखियो कै पाणी कठै जावै।पतो लागो कै उठै एक तल़ो(कुओ) है। दरअसल उठै 'केसरिया' जातरै बामणां रै खिणायो 'केसड़ार' नामरो कुओ हो।गरवोजी आपरो घर अर आदमी लेय इण केसड़ार माथै आय बसिया।
धाट क्षेत्र पूरो अंग्रेजी सत्ता रै सीधो अधिकार में हो।अंग्रेजां इण केसड़ार रो पट्टो गरवैजी रै बेटे जुगतोजी नै 'जुगता -मकान ' रै नाम सूं दे दियो।
चारण मालधारी (गायां बगैरह) हा सो गोल़ बीजै जावता रैता अर ई भ्रम में रैता कै म्हांरी जमी माथै कुण अधिकार करै? सो जुगतोजी छाछरै कनै जाय बसिया।उठै ई उणांनै उण जमी रो पट्टो जुगता-मकान रै नाम सूं मिलग्यो।
जोग ऐड़ो बणियो कै उणी दिनां  छाछरै रै एक मेघवाल़ आय केसड़ार में  एक  खेत बावण लागो अर अठीनै धड़ैलै गांम रै  एक मुसल़मान सूनी जमी देख केसड़ार माथै कब्जो कर लियो   आय उण मेघवाल़ नै धमकायो कै -"म्हारो  तूं खेत किणनै पूछर बावै?"
उण मेघवाल़ खेत चारणां रै आजै(विश्वास) माथै बायो ।उण बिनां डरियां कैयो -"थारो किसो खेत ?तूं कुण है म्हनै पालणियो? म्है तो खेत चारणां रो बावूं। आ जमी जुगतैजी री।"
उण मुसल़मान कैयो कै -"कोई चारणां रो पट्टो नीं ,हमे पट्टो म्हारो है।छोड खेत।"
उण मेघवाल़ जाय चारणां नै कैयो कै -"फलाणै मुसल़मान केसड़ार माथै कब्जो कर लियो  अर म्हनै खेत बावण सूं रोकै।"
चारणां कैयो -"
जमी आपांरी ,कुण रोकै ?हाल।
चारणां आय मुसलमान नै कैयो -
"तूं कुण है ?अठै खेत मना करणियो?जमी म्हांरी!!"
मुसलमान चारणां नै सधरिया नीं अर लांठापै खेत जमी खोसी।
वाद बधियो।मुकदमो होयो अर पेशी पड़ण लागी।चारणां री तरफ सूं गवाह  छाछरै रा सोढा हरिसिंह अर   सालमसिंह ।
हाकम कैयो कै -"ऐ  कैय दे ला कै जमी चारणां री कदीमी तो जमी थांरी नी़तर मुसल़मान री।"
चारणां नै पतियारो हो कै पैली बात तो  राजपूत ,पछै सोढा! !
सो गवाह तो निपखी म्हांरै पख में ईज देवैला।
पण ओ उण चारणां रो भ्रम हो,माखण डूबो।सालमसिंह  मुसलमानां रै पख में ग  कूड़ी गवाह दी ।उण जीवती माखी गिटतै कैयो कै-
"आ जमी चारणां री नीं अपितु इण मुसल़मान री ईज है।चारणां कनै कठै जमी है?ऐ तो म्हांरै माथै निर्भर है,म्हांरी जमी में पड़िया है!!तो हरिसिंह कैयो कै जमी चारणां री कदीमी अर पट्टै सुदा पण-
पखां खेती पखां न्याव!
पखां हुवै बूढां रा ब्याव!!सालमसिंह प्रभाव वाल़ो आदमी हो ,उण फैसलो मुसलमान रै पख में कराय दियो।
पण चारण तो डोढ सूर बाजै।वे मरणो अर मारणो दोनूं तेवड़ै। सो
चारण इयां आपरी जमी कीकर छोडै देता?उणां धरणो दियो ।जमर री त्यारी होई पण जमर कुण करै?
धरणै-स्थल़ माथै बात चाली कै कोई हड़वेची होवै तो जमर करै!! उल्लेख जोग है कै हड़वेचां चारणां रो एक गांम जिणरी जाई नै महासगत देवलजी रो वरदान, कै वा अन्याय अर अत्याचारां रै खिलाफ  सत रुखाल़ जगत में नाम कमावैला।
मीठड़ियै रा देथा अमरोजी जिकै मानैजी रै बेटे रामचंद्रजी  रा बेटा हा।वे हड़वेचां परण्योड़ा तो हा ई साथै ई धरणै में भेल़ा हा।उणां री जोडायत रो नाम जोमां हो ,जिकै बारठ सुदरैजी री बेटी हा।उण दिनां जोमां सूं मिलण ,जोमां री मा आयोड़ी ही।किणी मसकरी करतै कैयो कै "अमरैजी री सासू हड़वेचां सूं आयोड़ा है!!सो वे जमर करैला । आं ई हड़वेचां रै तल़ै रो पाणी पीयो है।"
आ बात जद जोमां री मा सुणी तो उणां कैयो कै -"हूं हड़वेचां आई हूं जाई नीं!! जमर म्हारी डीकरी करसी ,वा ई उदर तो म्हारै में ई लिटी !! सो जमर हूं नीं  जोमां करैला।"
आ बात जद जोमां सुणी तो उणां कैयो कै -जमर हूं करूंली!!मेघवाल़  बारठां रो नीं, देथां रो है !!पछै
हड़वेची हूं ,हूं ,म्हारी मा नीं अर  अजेज उणां रा भंवरा तणग्या ,सीस रा बाल़ ऊभा होयग्या।उणां मेघवाल़ री जमी   अर जात रो माण राखण जोमां वि.सं. 1900 री चैत बदि दूज रै दिन जमर कियो।
जोमां झल़ झाल़ां में झूलती(स्नान) कैयो कै -सालमसिंह रा भीलै भिल़सी अर छाछरो हरिसिंह रै वल़सी( आना) आ ईज बात होई ।सोढै सालमसिंह री संतति जातभ्रष्ट होई अर छाछरै माथै हरिसिंह री संतति रो आभामंडल़ रैयो।उण मेघवाल़ री संतति  आज ई जोमां रै प्रति अगाध आस्था राखै तो
उण मुसलमान   रै घर री काल़ी होई।
जोमां रै जमर  रो सुजस कवियां सतोलै आखरां मांडियो-

धिनो धाट में रूप जोमां धिराणी।
जिकी राखियो जात रो माण जाणी।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 28 जून 2018

सीए


एक मारवाड़ी पिता अपनी बेटी के लिये लड़का देखने गया ।
उन्होंने ल़ड़के के पिता से पूछा –

“छोरो काई कर ह ?”
ल़ड़के का पिता – सीए ह।
उन्होंने पूछा – छोरा की बहन काई कर ह ?
लड़के का पिता – बा भी सीए ह ।
उन्होंने फिर पूछा –  छोरा की माँ काइ कर ह?

लड़के का पिता – बा भी सीए है ।

उन्होंने फिर पूछा – अरे वाह ! सब सीए ह,
मतलब थे भी सीए ही होंगा?
लड़के का पिता – ना ना… मैं तो घाघरा चोली
कटींग करू हूँ… ये सब लोग सीए है…

कठु लावना

जब मुंबई में बारिश हो तो लोग पूछते हे- खंडाला या लोनावला ?

वही जोधपुर में पानी रो दो छांटा ही पड़ जावे तो एक ही बात पूछे- कठु लावना ? जनता, खत्री या पचे सूर्या।।

शुक्रवार, 22 जून 2018

हाल ताई भीड़

दोपहर की चिलचिलाती धूप में गली से जा रहा था।।गली में सन्नाटा था ।। अचानक कुछ तुफानी करने की सुझी ।।

जोर से आवाज लगायी "आम्बा 10  रिपिया किलो" 

उण गली में हाल ताई भीड़ है
आम्बा वाळो कठीनै गियो‌।

रविवार, 17 जून 2018

भोड़की गढ़ और अंग्रेज़

सन 1803 में राजस्थान में जयपुर रियासत की ईस्ट इंडिया कम्पनी से मैत्रिक संधि व कुछ अन्य रियासतों द्वारा भी मराठों और पिंडारियों की लूट खसोट से तंग राजस्थान की रियासतों ने सन 1818ई में शांति की चाहत में अंग्रेजों से संधियां की| शेखावाटी के अर्ध-स्वतंत्र शासकों से भी अंग्रेजों ने जयपुर के माध्यम से संधि की कोशिशें की| लेकिन स्वतंत्र जीवन जीने के आदि शेखावाटी के शासकों पर इन संधियों की आड़ में शेखावाटी में अंग्रेजों का प्रवेश और हस्तक्षेप करने के चलते इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| अंग्रेजों के दखल की नीति के चलते शेखावाटी के छोटे-छोटे शासकों ने अपने सामर्थ्य अनुसार अंग्रेजों का विरोध किया और अग्रेजों के साथ खूनी लड़ाईयां भी लड़ी| बिसाऊ के ठाकुर श्यामसिंह व मंडावा के ठाकुर ज्ञान सिंह अंग्रेजों की खिलाफत करने वाले शेखावाटी के प्रथम व्यक्ति थे| इन दोनों ठाकुरों ने वि.सं.1868 में पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह की सहातार्थ अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेनाएं भेजी थी|

चित्र प्रतीकात्मक है|
अमर सिंह शेखावत (भोजराज जी का) ने बहल पर अधिकार कर लिया था, उसकी मृत्यु के बाद कानसिंह ने वहां की गद्दी संभाली और बहल पर अपना अधिकार जमाये रखने के लिए ददरेवा के सूरजमल राठौड़, श्यामसिंह बिसाऊ, संपत सिंह शेखावत, आदि के साथ अपनी स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के साथ संघर्ष जारी रखा, प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार इनके नेतृत्व में तीन हजार भोजराज जी का शाखा के शेखावत अंग्रेजों से लड़ने पहुँच गए थे| इनके साथ ही शेखावाटी के विभिन्न शासकों अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में उतर आये थे, जो अंग्रेज व अंग्रेजों से संधि किये शासकों द्वारा शासित प्रदेशों में अक्सर धावे डालकर लूटपाट करते| ये क्रांतिकारी अक्सर अंग्रेजों की सैनिक छावनियां लूटकर अंग्रेज सत्ता को चुनौती देते| अंग्रेजों ने इनकी गतिविधियों की अंकुश लगाने के लिए राजस्थान की देशी रियासतों के माध्यम से भसक कोशिश की पर ये क्रांतिकारी जयपुर, बीकानेर, जोधपुर किसी भी रियासत के वश में नहीं थे|

आखिर अंग्रेजों ने शेखावाटी के इन क्रांतिवीरों के दमन के लिए जिन्हें अंग्रेज लूटेरे व डाकू कहते थे, शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना की| जिसका मुख्यालय झुंझनु रखा गया और मेजर फोरेस्टर को इसका नेतृत्त्व सौंपा गया| मेजर फोरेस्टर ने शेखावाटी के सीमावर्ती उन किलों को तोड़ना शुरू किया, जिनमें ये क्रांतिकारी अक्सर छुपने के लिए इस्तेमाल करते थे| मेजर की इस कार्यवाही में अक्सर शेखावाटी के क्रांतिकारियों की शेखावाटी ब्रिगेड से झड़पें हो जाया करती थी| इस ब्रिगेड में भर्ती हुये शेखावाटी के ठाकुर डूंगरसिंह व जवाहर सिंह, पटोदा ने ब्रिगेड के ऊंट-घोड़े व हथियार लेकर विद्रोह कर दिया था| गुडा के क्रांतिकारी दुल्हेसिंह शेखावत शेखावाटी ब्रिगेड के साथ एक झड़प में शहीद हो गए| मेजर फोरेस्टर ने उनका सिर कटवाकर झुंझनु में लटका दिया, ताकि अन्य क्रान्ति की चाह रखने वाले भयभीत हो सकें| लेकिन एक साहसी क्रांतिकारी खांगा मीणा रात में उनका सिर उतार लाया और मेजर फोरेस्टर की सेना देखती रह गई|

मेजर फोरेस्टर ने गुमानसिंह, शेखावत, टाई जो वि.सं. 1890 में भोड़की चले गए थे, के प्रपोत्र रामसिंह को सजा देने के लिए भोड़की गढ़ को तोड़ने के लिए तोपखाने सहित आक्रमण किया| इससे पूर्व जी रामसिंह तथा उनके भाई बेटे पकड़े जा चुके थे| अत: मेजर फोरेस्टर का मुकाबला करने के लिए रामसिंह की ठकुरानी ने तैयारी की| ठकुरानी के आव्हान पर भोड़की की सभी राजपुतानियाँ मरने के लिए तैयारी हो गई और भोड़की गढ़ में तलवारें लेकर मुकाबले को आ डटी|

राजपुतानियों के हाथों में नंगी तलवारें और युद्ध कर वीरता दिखाने के उत्साह व अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की ललक देख मेजर फोरेस्टर ने बिना गढ़ तोड़े ही अपनी सेना को वहां से हटा लिया| इस तरह राजपूत नारियों के साहस, दृढ़ता के आगे अपनी कठोरता के लिए इतिहास में प्रसिद्ध मेजर फोरेस्टर को भी युद्ध का मैदान छोड़ना पड़ा|

मंगलवार, 22 मई 2018

म्हांनै तो अपणास चाहीजै!!

म्हांनै तो अपणास चाहीजै!!

बीजी वुस्तां सूं म्हांरै की लैणो,
म्हांनै तो अपणास चाहीजै।
अंतस में हद घोर अंधारो,
दूर करण प्रकाश चाहीजै!!

दपट्योड़ी पांखड़ियां खोलण अर पसरावण,
मनड़ै नै सरसावण यूं
उनमुक्त उडण आकाश चाहीजै!!

जीवण जितरै सीवण भाई,
इसड़ी जुगत सीखने यूं!
लूखी-सूकी है जिसड़ी में
सुख री सोरी सास चाहीजै!!

हीमत हिरदै पांण पिंड सूं,भाखर धोरा सह चींथण
उर में उमंग जंग नै जीतण,
खुद पर खुद विश्वास चाहीजै!!

एकलियो रैयां सूं भाई,ऊंच-नीच नीं भान पड़ैलो!
जग रा जाल़ समझवा ओ तो जैड़ो तैड़ो बास चाहीजै!!

फूंफाड़ा करता ई आया और भल़ै खुरदाल़ी करवै
टोरण नै बल़धां आ तो हाथां सबल़ां रास चाहीजै!!

सीधो सरल़ रैयां तो धूत हमेशा ठगता जासी!
बण थोड़ो बांको आंको डोल़ बतावण देवण नै उकरांस चाहीजै!!

मन बागां रा हरियल़ पानां झड़ -झड़ देखो सह झड़िया!
स्नेह  बांट कूंपल़ियां सारी विगसण नै मधुमास चाहीजै!!

अबखी में  जण -जण रो मूंडो ताक्यां की होसी?
भांगण नै भैती कर हैती मानणियो दरखास चाहीजै!!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शनिवार, 21 अप्रैल 2018

सोमनाथ री लिंग

जद अलाऊदीन खिलजी सोमनाथ री लिंग लियां मदछकियो जाल़ोर री आंटीली धरा में बड़ियो तो अठै रै अडर अर धरम रक्षक शासक कान्हड़दे आपरै आपाण रै पाण खिलजी सूं खेटा कर लिंग खोसली अर माण सहित सरना गांम में थापित करी।इणी रै अजरेल अर जबरेल सपूत वीरमदे री वीरता अर सुंदरता देखर अलाऊदीन री बेटी फिरोजा रीझगी अर हट पकड़ियो कै शादी करेला तो इणी वीरम रै साथै !नीं तो कंवारी ई भली।बादशाह कान्हड़़दे नैं कैवाय़ो पण वीरमदे नटग्यो ।बांकीदासजी रै आखरां में-
*परणूं धी पतसाह री,*
*रजवट लागै रोग।*
*वर अपछर वीरम कहै,जांणो सुरपुर जोग।।*
अलाऊदीन खिलजी आपरी बेटी फिरोजा नै पैला मान मनोवल़ सू अर पछै वीरमदे नैं मांडै परणावण जालोर चढ आयो पण धरम रक्षक अर स्वाभिमान रो सेहरो बांधणियो वीरमदे एक विधर्मी जाति री स्त्री नैं वरण करण सूं सफा नटग्यो।फौज घणा दिन पड़ी रैयी पण पार नीं पड़ी।कुजोग सूं इणी धरा रै वीकै दइयै गढ रो भेद दियो।छत्राण्यां सहित बीजी जाति री वीरांगनावां जौहर री ज्वाल़ां झूली अर वीरां केशरिया करर वि. सं.1368 में साको करर जाल़ोर धरा नैं जस दिरायो।इण लड़ाई में वीरमदे रा प्रिय कवि *सहजपाल़ गाडण आपरै भाई नरपाल, मान अर कान भतीजै,दो आपरै खवास सेवकां साथै घणी बहादुरी सूं लड़र वीरगति वरी।*
जाल़ोर गढ रो भेद देवणियो वीको जद मोद सूं घरै गयो अर इणरी घरनार वीरांगना हीरांदे नैं देश घात करण रो ठाह लागो तो उण ,उणी घड़ी आपरी कटार सूं देश द्रोही धणी नैं मारर मोद सूं वैध्वय अंगेजियो।
आज म्हारा मित्र अर स्नेही शंभुसिंहजी बावरला एक पोस्ट घालर इण महान सपूत वीरमदे रो बलिदान दिवस  आ कैयर याद दिलायो कै-
*मात-पिता सुत मेहल़ी,*
*बांधव वीसारैह।*
*सूरां पूरां बातड़ी ,चारण चीतारैह।।*
इणी संदेश रै साथै म्है ई उण महान धरम रक्षक वीर नैं आखर पुष्प चढाया  है सो आपरी निजर कर रह्यो हूं-

सनातनी मरजादा पाल़णियै महान वीर वीरमदे सोनगरै रो गीत-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीत प्रहास साणोर
अवतार वो गिणीजै शंकर रो इल़ा पर,
खागधर कान्हड़ै कीर्त खाटी।
महाबल़ कनकगिर राखियो मछरधर,
दोयणां आवती घड़ां दाटी।।1

सोनगरो सधर कज  बात कज सूरमो,
निडरपण केवियां अड़्यो नांमी।
मांण हिंदवांण रो राखियो मरटधर,
भाल़ सब भारती हुवा भांमी।।2

सोहड़ उण सा'यता कर सज संभ री,
धिनो ससीनाथ कज मरण धारै।
खोस लिंग थापना करी खत्रवाट वट,
मरट तुरकांण रो वीर मारै।।3

अलाऊदीन जद आवियो उरड़ मन,
वीरम नै दियण निज आप बेटी।
कान्ह नै कहायो बता करवाल़ कर,
जोधवर मेलजै परण जेठी।।4

सांभल़्यां वैण अरियांण रा सूरमै,
वीरमै धिनो मछरीक वंकै।
कनकगिर अखंडित रखण वा कीरती,
अडर नह धमकियां गिणी अंकै।।5

बोलियो महाबल़ मोत नै वरण लूं,
वरूं नह तुरक री कदै बेटी।
जीवतो कदै नह हुवण दो जोयलो,
हाथ हिंदवांण री मूंछ हेठी।।6

कनकगिर घिरी गो फौज बल़ केवियां,
क्रोध तुरकाण धर अथग कोपै।
मांण कज मरण नैं संभ्या मछरीक मन,
रणांगण अगंद ज्यूं पाव रोपै।।7

किता दिन फौज वा पड़ी री कनकगिर,
वीरम रो हुवो ना बाल़ वांको।
वीकियै दियो वो भेद गढ विदर जद,
आवियो वीरगत वरण आंको।।8

किया जद सूरमां मरण नैं केशरिया,
रंग छत्रांणियां झल़ां रीझी।
वंदना मात भू करी भड़ वीरमै,
खाग अरियाण सिर जदै खीझी।।9

अड़ण नैं अलाऊदीन सूं उरड़िया,
सोनगरा मोत सूं भिड़ण साचा।
बेख वा काल़ री जदै विकराल़ता,
पेख पग कायरां पड़्या काचा।।10

वरी ना तुरकणी कान्ह सुत वींदणी,
मांण कज अपछरा वरी मांटी।
सुजस रो हालियो बांध नैं सेहरो,
चुतरभुज नाथ री करण चांटी।।11

*धिनो कवराज वो कनकगिर धरा रो,*
*मोत नैं सांमछल़ वरी माथै।*
*गाडणां राव गढ काज धर गाढ नैं*
*सहजो वीरम रै गयो साथै।।12*

द्रोह निज देश सूं कियै इण दइयै
वीक री कमी नैं कही वीरां।
छत्राणी खमंध नैं मार नैं उणी छिण
दुहागण देश कज हुई *हीरां।।13*

अभंग वा कीरती वीरमै अखंडित
रंग धर वीरती अमर राखी।
गुणी ज्यूं सुणी इतियास री गिरधरै
साच मन बणाई बात साखी।।14

जबर भड़ वीरमो धरम कज जूझियो
छतो निज देह रो मोह छांडै।
सोनगरै शंभ नैं गीत ओ सरस मन
मित्रता भाव सूं दियो मांडै।।15

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

शौर्य शेखा का

#शेखावत_वंश व शेखावाटी के प्रवर्तक, प्रातःस्मरणीय,नारी रक्षक, साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक, वीरवर क्षत्रिय शिरोमणि पूजनीय_महाराव_शेखाजी के 530वे निर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन..

शेखाजी से हार के बाद चन्द्रसेन का अपनी हार पर चिन्तन करना और अपनी सेना को संगठित कर शेखाजी पर फिर से आक्रमण की तैयारी करना।

         शौर्य शेखा का अध्याय-6
     ===================

शेखा आ तूँ बुरी करी,घटग्यो म्हारो माण।
वक़्त वक़्त री बातां सारी,वक़्त प लेस्यां जाण।।

वक़्त थारो तो आतोड़ो है,म्हारी गयी पिछाण।
शेर मारण र खातर शेखा,ऊँचो घाल्यो मचाण।।

चन्द्रसेन रा राज र माँहि,काळो पड्यो अकाश।
चाँद सूरज भी काळा पड़ग्या ,ना देवे प्रकाश।।

जीत है जश्न मानवणी,जीत्यो गढ़ आमेर।
रही अबे न लाग लपट अर,ना ही रही बछेर।।

शेखा थारो जस बढियो बढ्यो सिंघ रो राज।
कुल कछावा माँहि शेखो,भुपां रो शरताज।।

हार,हरण सूं मरण भलो,भलो बिना सिर ताज।
काट्या पंख पखेरू रा,ना पँखा परवाज।।

चिंता चिता समान है,चिंता चित रो नाश।
चिंता छोडो चंद्रराज जी,इण सूं हुवे विनाश।।

गढ़ आमेरी लश्कर डटिया,गाँव धुळी र खेत।
आज बचेड़ो चुकसी शेखा,चुकसी सूद समेत।।

घणो तने समझायो चन्दरजी,मत न रोपे फ़ांस।
रण मं पीठ दिखावणियो,तूँ कुल रो खोनाश।।

हारया ओजूं फेर चन्दरजी,भाग रह्या ढुंढाँर।
अबक शेखोजी कर लियो,कूकस पर अधिकार।।

जे गढ़ आमेरी सूरज डूब्यो,रुळ ज्यासी ढ़ूंढ़ाड़।
एको करल्यो अब सगळा,जीत लेवां बरवाड़।।

शेखो अब ललकार रह्यो,सकल कछावा भूप।
कसल्यो काठी घुड़लां री,रण में करस्यां कूच।।

नरुजी जायो नार रो,चन्दर थारे साथ।
गढ़ आमेरी मान राखस्यां,धर तरवारां हाथ।।

रणछोड़ू रणधीर थे होग्या,दो बर बखस्या प्राण।
तीजां रण र माहि चन्दर जी,थारा जगे मसाण।।

किण भगतां तूं जण्यो चंद्रजी,कलंक लग्यो रघुराज।
घणा घणा कुलधीर जन्मिया,इण कुल रा सिरताज।।

कुबद थारी अब मिटे चन्द्रजी,रख रजपूती मान।
कायर बणियो कुळ कलंक ,भागे रण मैदान।।

रजपूती रो जायो नहीं,जे छूटे मैदान।
ओ शेखो तो रण रमें,रण रो है बरदान।।

जे तूं साँचो बीर कहिजे,रण मं मिल्जये आज।
थारो शीश चढ़ाय के,रखूँ कछावा लाज।।

कुल कछाव जन्म लियो,जन्माय वीर अनूप।
शेखा मिलसी रण माँहि,सकल ढूंढाड़ी भूप।।

गढ़ आमेरी  लश्कर उतराया,कूकस नद री पाळ।
शेखाजी रा लश्कर देखो,शस्त्र लिया सम्भाळ।।

देख शेखा रा लश्कर न,नरजी है बेहाल।
सूरज जेड़ो चमक रह्यो,शेखाजी रो भाल।।

झट नरजी अब पाळो बदल्यो,शेखाजी शरणाय।
नरजी थारे  साथ है शेखा,हारलो चन्दराय।।

नरजी शेखा लश्कर माँहि,लग्यो चन्दर र घात।
म्हरो साथ निभावणीय अब,शेखाजी र साथ।।

हार मान क अब चन्द्रजी भेज्यो एक प्रस्ताव।
शेखा संधि मान ल्यो म्हारी,मेटो अब दुर्भाव।।

आखातीज

सूरज री नई रोशनी में,हवा री आवाज।
मुळके मरूधर री माटी,आ गई आखातीज।।
हळियों लेकर हालिया,खेतां बोवा बीज।
छांटा करजे सावरा,आई आखातीज।।
सुगन होवे सांतरा,मैटो मन री खीज।
सागे हालो सांवरा ,आई आखातीज।।
करसो निरखे कैर ने,हिवड़ो गयो पसीज।
बरखा होसी जोर री,कैवे आखातीज।।
बाजरियो रो सोगरो,मँग मोट री दाळ।
खिच बणायो जोर रो,जीमो थे गोपाळ।।
कैर कुमठिया सांगरी,बाजरिया रा रोट।
छाछ परोसूं थाळ में,मारवाड़ री गोठ।।
हेत घणो है रेत सूं,खेत सजावे तान।मौखळी बरखा देखने,मुळके मोर किसान।।

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

हाड़ी रानी पर कविता

हाड़ी रानी
मन्ना डे द्वारा गायी कविता १९६५ में बनी हिंदी फिल्म "नई उमर की नई फसल" में मन्ना डे द्वारा राजस्थान के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत की हाड़ी रानी पर गायी गई एक कविता का वीडियो मिला | तो आइये देखते है मेवाड़ के सलुम्बर ठिकाने की उस वीरांगना रानी जिसने युद्ध में जाते अपने पति के द्वारा निशानी मांगे जाने पर अपना शीश काटकर भेज दिया था | इस फिल्म में हाड़ी रानी पर गायी गई इस कविता उपर्युक्त पंक्तिया

थी शुभ सुहाग की रात मधुर
मधु छलक रहा था कण कण में
सपने जगते थे नैनों में
अरमान मचलते थे मन में

सरदार मगन मन झूम रहा
पल पल हर अंग फड़कता था
होठों पर प्यास महकती थी
प्राणों में प्यार धड़कता था

तब ही घूँघट में मुस्काती
पग पायल छम छम छमकाती
रानी अन्तःअपुर में आयी
कुछ सकुचाती कुछ शरमाती
मेंहदी से हाथ रचे दोनों
माथे पर कुमकुम का टीका
गोरा मुखड़ा मुस्का दे तो
पूनम का चाँद लगे फ़ीका

धीरे से बढ़ चूड़ावत ने २
रानी का घूँघट पट खोला
नस नस में कौंध गई बिजली
पीपल पत्ते सा तन डोला

अधरों से अधर मिले जब तक
लज्जा के टूटे छंद बंध
रण बिगुल द्वार पर गूँज उठा २
शहनाई का स्वर हुआ मंद

भुजबंधन भूला आलिंगन
आलिंगन भूल गया चुम्बन
चुम्बन को भूल गई साँसें
साँसों को भूल गई धड़कन
सजकर सुहाग की सेज सजी २
बोला न युद्ध को जाऊँगा
तेरी कजरारी अलकों में
मन मोती आज बिठाऊँगा

पहले तो रानी रही मौन
फिर ज्वाल ज्वाल सी भड़क उठी
बिन बदाल बिन बरखा मानो
क्या बिजली कोई तड़प उठी

घायल नागन सी भौंह तान
घूँघट उठाकर यूँ बोली
तलवार मुझे दे दो अपनी
तुम पहन रहो चूड़ी चोली

पिंजड़े में कोई बंद शेर २
सहसा सोते से जाग उठे
या आँधी अंदर लिये हुए(?)
जैसे पहाड़ से आग उठे
हो गया खड़ा तन कर राणा
हाथों में भाला उठा लिया
हर हर बम बम बम महादेव २
कह कर रण को प्रस्थान किया
देखा

जब(?) पति का वीर वेष
पहले तो रानी हर्षाई
फिर सहमी झिझकी अकुलाई
आँखों में बदली घिर आई
बादल सी गई झरोखे पर २
परकटी हंसिनी थी अधीर
घोड़े पर चढ़ा दिखा राणा
जैसे कमान पर चढ़ा तीर

दोनों की आँखें हुई चार
चुड़ावत फिर सुधबुध खोई
संदेश पठाकर रानी को
मँगवाया प्रेमचिह्न कोई
सेवक जा पहुँचा महलों में
रानी से माँगी सैणानी
रानी झिझकी फिर चीख उठी
बोली कह दे मर गैइ रानी

ले खड्ग हाथ फिर कहा ठहर
ले सैणानी ले सैणानी
अम्बर बोला ले सैणानि
धरती बोली ले सैणानी
रख कर चाँदी की थाली में
सेवक भागा ले सैणानि
राणा अधीर बोला बढ़कर
ला ला ला ला ला सैणानी

कपड़ा जब मगर उठाया तो
रह गया खड़ा मूरत बनकर
लहूलुहान रानी का सिर
हँसता था रखा थाली पर

सरदार देख कर चीख उठा
हा हा रानी मेरी रानी
अद्भुत है तेरी कुर्बानी
तू सचमुच ही है क्षत्राणी

फिर एड़ लगाई घोड़े पर
धरती बोली जय हो जय हो
हाड़ी रानी तेरी जय हो
ओ भारत माँ तेरी जय हो