सोमवार, 29 जनवरी 2018

पागड़ी

।। पागड़ी ।।

पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी।
जिद्द पर अब न अड़ी पागड़ी।
रंग केसरियो फीको पड़ियो
रण खेतां में लड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(१)

सिर शूरां री ही शान पागड़ी
पोळयां री ही आन पागड़ी।
धर्म धरा पर धारण करियो
वीरां रो गुणगान पागड़ी।।
दया धर्म अर नेकी पर
अटल अडिग ही खड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(२)

पीड़ परायी भरी पागड़ी
वचनां री ही खरी पागड़ी।
ना हीरा ना मोती जड़ियां
अपणायत सूं हरी पागड़ी।।
कुल री काची कवंळी कुंपळ
स्वाभिमान सूं जड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(३)

सिर शूरां रे सोही पागड़ी
रण खेतां में खोयी पागड़ी।
धीर वीर अर सती झुंझारां
संग रणबंकी होयी पागड़ी।।
सत री साथण धणियांणया री
सत रे साथे खड़ी पागड़ी।
पीड़ पुराणी पड़ी पागड़ी..................(४)

सोमवार, 15 जनवरी 2018

भूलग्या

भूलग्या
"""""""""""""
कंप्यूटर रो आयो जमानो कलम चलाणीं भूलग्या।
मोबाईल में नंबर रेग्या लोग ठिकाणां भूलग्या।

धोती पगडी पाग भूलग्या मूंछ्यां ऊपर ताव भूलग्या।
शहर आयकर गांव भूलग्या बडेरां रा नांव भूलग्या ।

हेलो केवे हाथ मिलावे रामासामा भूलग्या।
गधा राग में गावणं लाग्या सारेगामा भूलग्या ।

बोतल ल्याणीं याद रेयगी दाणां ल्याणां भूलग्या ।
होटलां रो चस्को लाग्यो घर रा खाणां भूलग्या ।

बे टिचकारा भूलगी ऐ खंखारा भूलग्या ।
लुगायां पर रोब जमाणां मरद बिचारा भूलग्या ।

जवानी रा जोश मांयनें बुढापा नें भूलग्या ।
हम दो हमारे दो आपरा मा बापां ने भूलग्या ।

संस्कृति नें भूलग्या खुद री भाषा भूलग्या ।
लोकगीतां री रागां भूल्या खेल तमाशा भूलग्या ।

घर आयां ने करे वेलकम खम्मा खम्मा भूलग्या ।
भजन मंडल्यां भाडा की जागण जम्मा भूलग्या ।

बिना मतलब बात करे नीं रिश्ता नाता भूलग्या ।
गाय बेचकर गंडक ल्यावे खुद री जातां भूलग्या ।

कांण कायदा भूलग्या लाज शरम नें भूलग्या ।
खाणं पांण पेराणं भूलग्या नेम धरम नें भूलग्या ।

घर री खेती भूलग्या घर रा धीणां भूलग्या ।
नुवां नुंवां शौक पालकर सुख सुं जीणां भूलग्या ।
पण थे आ कविता पढ'र लाईक करणो मती भूलजो !!
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रविवार, 14 जनवरी 2018

भूख कोनी

एक बार एक आदमी जंगल में जा रहा था।

अचानक भालू देखकर सांस रोककर जमीन में लेट गया।

ये देख कर भालू आया और उसके कान में बोला......

"?  भूख कोनी अबार।। नही तो  सगली हुस्यारी  भेली कर देतो

रविवार, 7 जनवरी 2018

धरती फाटै मेघ मिलै


*धरती फाटै मेघ मिलै,
      *कपडा फाटै डौर,
*तन फाटै को औषधि,
   *मन फाटै नहिं ठौर।

जब धरती फटने लगे अर्थात दरारें पड़ जाये तो मेघों द्वारा जल बरसाने पर दरारें बन्द हो जाती हैं और वस्त्र फट जाये तो सिलाई करने पर जुड़ जाता है। चोट लगने पर तन में दवा का लेप किया जाता है, जिससे शरीर का घाव ठीक हो जाता है
*किन्तु मन के फटने पर कोई औषधि या उपाय कारगर सिद्ध नहीं होता। अतः प्रयास रहे कि आपकी वाणी से किसी को ठेस न लगे।
    
   

गुरुवार, 4 जनवरी 2018

पांचू पीर

हड़बू पाबु रामदेव  मांगलिया मैहा।
पांचू पीर पधारजो गोगाजी जैहा।।
मारवाड़ की पावन देव रमणी धरा पर पांच देवोंःहड़बूजी सांखला बैंगटी, पाबुजी राठौड़ कोलू , रामदेवजी तंवर रुणिचा, मैहोजी मांगलिया  बापिणी , गौगाजी चौहान गौगामेड़ी  की  पूजा  कर सभी अपने आप को धन्य मानते है ।
आज गौगाजी की जयंती गौगा नवमी पर सभी सनातन धर्मावलंबियों को  शुभकामनाएं ।
जय गोगा जी चौहान
गोगा नवमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ
गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे 'जहरवीर गोगा जी' के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादों शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनो पूजते हैं।

वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान (राजपूत) वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।[1]
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में इन्हें जहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।
प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है।
गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं। विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।।
जुगत सिह करनोत भाखरी जोधपुर राजस्थान

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

राजपुताना के रीति रिवाज

राजपुताना के रीति रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए आवश्यक है।

1.) *अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आ/ दि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!

2.) *जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता, हां ,सर के पीछे हाथ तभी रखते है जब आप नंगे सर हो, तो सर ढकने के लिए हाथ रखें।

3.) *पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते

4.) *मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है

5.) *खम्मा घणी का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं, जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!

6.) *असल में खम्माघणी , चारण, भाट, राज्यसभा मे ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.

7.) *ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!

8.) *हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।

9.) *पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!

10.) *मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी मनवार के हाथ लगाके या हाथ में ले कर सर पर लगाके वापस दे दे, पीना जरुरी नहीं है , पर ना -नुकुर कर उसका अनादर न करे

11.) *अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार, मकसद होता था, भाई, बंधु, भाईपे, रिश्तेदारों को एक जाजम पर लाना !!

12.) *ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।

13.) *आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!

14.) *तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षश था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था

15.) *ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई, माताजी तो माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है, दरअसल बलि माताजी की सवारी (शेर) के लिए चढ़ती है, उसको प्रसन्न करने के लिए.

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

गोद खिलावै गीगलो

गोद खिलावै गीगलो,लाड घणो लडाय।
चम्मच भरनै चाव सूं, खीर खांड खवाय।।

गोडै बैठयो गीगलो,चित में करनै चाव।
दूध पिलावै मावडी,मन्द मन्द  मुस्काव।।

लाड लडावै मोकलो, ममता री भरमार।
गोद खिलावै गीगलो,देवै घणो दुलार।।

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

चारण- राजपूत परंपरा

*चारण- राजपूत परंपरा

राजा रावल हरराज भाटी जैसलमेर
कहते है की मेरा राज्य व धन वैभव सभी कुछ चले जावे उसकी मुझे चीन्ता नही है परन्तु मेरे घर से चारण (भांजो) का जाना मुझे स्वीकार नही है-

कुछ पंक्तीया:,

जावैगढ राज भलैभल जावै राज गयां नह सोच रत्ती
गजबढ है आं चारण गयां सूं पलटे मत वण छत्रपति।।

अर्थ:-रावल हरराज भाटी कहते है मेरा गढ चला जावे, राज्य सत्ता चली जावे, ईन सबके चले जाने पर मुझे लेश मात्र की चींता नही है। पर अगर चारण गया तो अनर्थ ही हो जायेगा। इसलिए राजपूतो तुम राजा बनने पर मदान्ध हो चारण को कभी मत भुलना।।

धू धारण केवट छत्रिधर्म रा कळयण छत्रवट भाळ कमी।
व्रछ छत्रवाट प्राजळण वेळा चारण सींचणहार अमी।।

अर्थ:- जीस प्रकार ध्रुव अटल है उसी प्रकार चारण अटल व अडीग रहकर क्षत्रिय धर्म नीभाते है,वे जहा कही भी क्षात्रधर्म की कमी देखते है उसे तत्काल पुरा करते है। ये चारण क्षात्रवट रुपी वृक्ष को सींचकर सदैव हराभरा रखने वाले है।

आद छत्रियां रतन अमोलो कुळ चारण अपसण कीयो
चोळी-दांमण सम्बध चारणां जीण बळ यळ रुप जीयौ

अर्थ:- शक्ति ने चारण नामक जाति उत्पन्न करकर क्षत्रियो को यह अमूल्य रत्न प्रदान कीया है। इस पावन सम्बन्ध -'चोलीदामन'(चारण - राजपूत ) का स्थापित किया है ,अब तुम इनको साथ रखकर अपने बल से जीवित रहो।

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

पतली लागे सौड़

ठण्ड पड़े है जोरगी, पतली लागे सौड़ ।
चाय पकौड़ी मुंफली, इण सर्दी रो तोड़ ।।

डांफर चाले भूंडकी , चोवण् लाग्या नाक ।
काम्वल  राखां ओढगे , सिगड़ी तापा हाथ ।।

काया धूजे ठाठरे,  मुँडो छोड़े भाप ।
दिनुगे पेली चावड़ी, न्हाणो धोणो पाप ।।

गूदड़ माथे गूदडा , ओढ्यां राखो आप ।
ताता चेपो गुलगुला, चा चेपो अणमाप् ।।

राजपुताना के रीति रिवाज

राजपुताना के रीति रिवाज जिनकी जानकारी हमारे लिए आवश्यक है।
1.) अगर आप के पिता जी /दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!
2.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता, हां ,सर के पीछे हाथ तभी रखते है जब आप नंगे सर हो, तो सर ढकने के लिए हाथ रखें।
3.) पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते
4.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है
5.) खम्मा घणी का असली मतलब है "माफ़ करना में आप के सामने बोलने की जुरत कर रहा हूं, जिस का आज के युग में कोई मायने नहीं रहा गया है !!
6.) असल में खम्माघणी , चारण, भाट, राज्यसभा मे ठिकानेदार / राजा /महाराजा के सामने कुछ बोलने की आज्ञा मांगने के लिए use करते थे.
7.) ये सरासर गलत बात है की घणी खम्मा, खम्मा-घणी का उत्तर है, असल में दोनों का मतलब एक ही है !!
8.) हर राज के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इस्थ देवता होते थे, जो की जायदातर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का greet करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की...जय गोपीनाथ जी की ।
9.) पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा, निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!
10.) मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी मनवार के हाथ लगाके या हाथ में ले कर सर पर लगाके वापस दे दे, पीना जरुरी नहीं है , पर ना -नुकुर कर उसका अनादर न करे
11.) अमल घोलना, चिलम, हुक्का या दारू की मनवार, मकसद होता था, भाई, बंधु, भाईपे, रिश्तेदारों को एक जाजम पर लाना !!
12.)ढोली के ढोल को "अब बंद करो या ले जायो" नहीं कहा जाता है "पधराओ " कहते हैं।
13.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है !!
14.) तोरण मारना इसलिए कहते है क्योकि तोरण एक राक्षश था, जिसने शिवजी के विवाह में बाधा डालने की कोशिश की थी और उसका शिवजी ने वध किया था
15.) ये कहना गलत है की माताजी के बलि चढाई, माताजी तो माँ है वो भला कैसे किसी प्राणी की बलि ले सकती है, दरअसल बलि माताजी की सवारी (शेर) के लिए चढ़ती है, उसको प्रसन्न करने के लिए.

गजब परिवार


         गजब परिवार

एक परिवार मे 5 बहने थी,

एक का नाम था -: टूटी

दूसरी का नाम -: फटी

तीसरी का नाम -: फीकी
    
चौथी का नाम -: मरी

पांचवी का नाम :- भूतनि

एक दिन उनके घर पर  लड़की देखने के लिये मेहमान आए  !

मम्मी ने पूछा , आप कुर्सी पर बैठेगें या नीचे चटाई पर ?

मेहमान:- कुर्सी पर

मम्मी :- टूटी !! कुर्सी लेकर आओ ,

मेहमान :- नहीं नहीं , हम चटाई  पर बैठ जायेंगे ,

मम्मी :- फटी  !! चटाई लेकर आओ ,

मेहमान :- रहने दीजिए , हम जमीन पर ही बैठ जायेंगे ,

( मेहमान जमीन पर बैठ गये)

मम्मी :- आप चाय पीएँगे या दूध ?

मेहमान :- चाय ,
☕☕

मम्मी :- फीकी !! चाय लेकर आओ ,

मेहमान :- नहीं नहीं , चाय रहने  दो , हमें दूध ले आओ ,

मम्मी :- मरी !! भेस का दूध लेके आओ ,

मेहमान :- रेहेने दीजिये हमें कुछ भी नहीं चाहियें 

सिर्फ लड़की दिखाईये ,

मम्मी :- बेटियों !! भूतनि को लेकर आओ ,
☠☠

मेहमान :- बेहोश !

   

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

जयमल जी राठौड रा मरसिया

महाराणा प्रताप के शस्त्र  गुरू व हमारे पूर्वज मेड़ता के राजा जयमल जी राठौड़ पर पचास दोहे बनाकर समर्पित कर हुं हुकुम । पसन्द आये तो शेयर करना ।
04--12--2017(ये भाषा राजस्थानी हैं)
लेखन:--कवि महेन्द्र सिंह राठौड़ जाखली
(1)
धरती  मेवाडी़  जठे , घणो  हुयो   घमशाण
खून  सूं   धरा  सींचदी , थारे   पगंला  पाण
(2)
अजी   शीश   दे  भौमने, ऐडो   है   रजपूत
जणै  जबर  आ  मावडी़ , न्यौछावर है  पूत
(3)
जयमल लड़ियो जोरको,चार भुजा भगवान
लड़ लड़ के  धड़ पोढ़गा, चितौड़  रे  मैदान
(4)
मेवाड़   री   पुकार  पर , आयो  मैं  तो  दौड़
पहुँचगो  प्रताप  कनै , जयमल  जी   राठौड़
(5)
मेवाड़  मान  राखियो ,सिंहा  कुल  रो  आज
नीचो  न   देखणो  पडे़,  ऊँचो   है   सरताज
(6)
हाथी  रो  सिर  काटतो ,जयमल  जी  राठौड़
बाँसू   कांपे   दूसमी , देख   मुँछ    रो  मरौड़
(7)
जयमल   जैडी   वीरता , बणगी  रे  इतिहास
महाराणा  प्रताप  को , गुरू   हो   ओ  खास
(8)
परमवीर  जद  मारतो,  जबर  करतो  दहाड़
बेरी    ऊबो   कांपताे ,  बे    गुजंता    पहाड़
(9)
जयमल  वीर   शिरोमणी,  मेड़तियो  सरदार
सजधज   जोराँ   ओपतो,  मेवाड'र   दरबार
(10)
रण  कौशल  रो  पारखी, युद्ध  धरा  रो  ज्ञान
जयमल  जी   तो  राखियो,  मेवाडी  सम्मान
(11)
जबरी   थारी   मावडी़,  जबरो  जण्यो  जौध
बब्बर  सिंह  ओ  जोरको , जोराँ  थारा क्रोध
(12)
राणोजी    तो    मानतो , थारी    सारी   बात
सेनापति  थों    जोरको ,   देतो  सबने   मात
(13)
मेवाड़   मान    वासते ,   करियो'र   बलीदान
धरती   मां'न   शीश दियो, म्हाने  हैं अभिमान
(14)
थे    ही    राखी  आबरू  , राठौडा़   रो  मान
गजब  दिखाई   वीरता  ,नहीं  सयो  अपमान
(15)
धाकड़  धाक'र  आपरी, मोटा  करिया  काम
दुश्मन  सुतो  ओझतो,  जयमल  जी  रे  नाम
(16)
मारवाड़   ही   मोकळी,   गावे   थारा    गान
तु  ही राखी जयमलजी, आन बान आ  शान
(17)
साचो    सपूत    मानियो    ,मेवाडी    दरबार
गढ़  चितौड़ी  सौप  दियो, दियो रक्षा  रो भार
(18)
थे  तो  करियो  सामनो , छाती   लीनी   ताण
जबरो  जायो  सिंहणी , लड़ता  त्याग्या प्राण
(19)
दुध  नी  लजायो  जयमल,  मेड़तियो  दातार
चार  भुजाँ'राे  भगत ओ, नामी  करियो कार
(20)
कट कट के  शीश  सामने, लाग्या  रे  अम्बार
कण  कण  बोले  मां धरा, घणो दियो रे प्यार
(21)
रज   में   नपजे   मावडी़ ,  थारे  तो  रणवीर
काटताँ   ही   बढ़े   घणो , ऐ   राजपूत  बीर
(22)
अम्बर  सू  तो  आवता, जद  करता अरदास
दोडे़    आता     देवता ,  रजपूताँ    रे   पास
(23)
धरम  बचावण   जावतो, क्षत्रिय  ओढ़  पीर
राज  धरम   की  पालना,  करता  यौद्धावीर
(24)
जब जब आयी आफताँ, रिया  बीच बाजार
पीठ  नह   दिखाई   कदै,  राजपूत   सरदार
(25)
कटिया शीश धड़ लड़िया, ऐडी़  ही आ रीत
समर'म   बेरी   कांपतो, होती   वीराँ   जीत
(26)
जग  में   हुई'र   कीरती ,  मेड़तियो  रे  लार
काकाे  भतीज  सांवठो, उतार  दियो'र  भार
(27)
कल्ला के कँधे  बैठियो , जयमल ओ  राठौड़
दोनों  दुसमी   मारिया ,लियो  बैरी  राे  औड़
(28)
लागे  लड़तो  ओ  इयां, चार भुजा  रो   नाथ
जग में घणो नाम किधो  काको भतीज साथ
(29)
ब'जद  करेलाँ   सामनो , दूँला  फीच्चाँ  काट
बैरी   धरती   चाटसी, खडी़   हुसी  रे   खाट
(30)
हुयो   रवाना   जापतो ,  मारवाड   री  फौज
चितौड़  मान  बचावण'न, करी  ने  कदै मौज
(31)
कुल देवी  की  आरती ,नमन  करू कर जोड़
साथ  दिजै  थौ  मावडी़, बढ़गो अबके  झौड़
(32)
काली  माता   चांमुडा , आवो  थे   तो   साथ
झगडो़  होसी  जोरको  ,कर  सूं  दो  दो  हाथ
(33)
परतख  धरती   होवसी,  होवेली   आ   लाल
युद्ध  धरा  में  सायना , सब  खैलसी  गुलाल
(34)
खड़गाँ  झन  झन  बाजसी, बाजेली आ  मार
खचक खचक आ काटसी, नाडा़ँ सबकी जार
(35)
चितौड़   साय  मेड़तो  , करै   घणो   रे  युद्ध
जोधा   जबरा    जोरका,  टूटे     ना    प्रभुद्ध
(36)
के   मरणो   या  मारणो, ओ   हो  तो  आदेश
मां  रो   मान   बचावणो, ओ   ही   है  सन्देश
(37)
यौद्धा  समर'म  जावता , करता  घणी'र  राड़
मरता   पर   हटता   नहीं,  झंडो    देता  गाड़
(38)
नारियां  समर  भेजती ,  हो   चाहे    नुकसान
नर  की  करती  आरती ,राख  खड़ग री शान
(39)
हाथ  सू  आप   देवती , पकडो़   थे   शमशीर
बेरी  पर  टूट  पड़  ज्यो,  बीनै    दिज्यो  चीर
(40)
र'महेन्द्र  सिंह   जाखली,   गावै   थारा   गान
जयमल   वीर   शिरोमणी,   हीरो  हिन्दूस्थान
(41)
राणा  को  शस्त्र  गुरू,  जयमल  जी  राठौड़
जबर   पढा़यो   भूपने, सबसू   ओ   बेजौड़
(42)
चुणतो  गढ़  की  पाळने, करियो  नी  आराम
शोर्य   वीर   तो   कामसू , देतो   ऐडी़   खाम
(43)
ठाडो शरीर रो ओ धणी, करतो तकडो़ काम
चितौड़ गढ़'न  रोजिना, चीणतो सुबह  साम
(44)
रोजाना    ही    दूसमी ,   र'तोड़ता    दिवार 
चुणतो   रात्यू   रात   में , करतो   ऐडो़   कार
(45)
एक  जोद्धाे   मारताे , दस दस   एक व साथ
ऐडा़  गजब  पराक्रमी, पटके  भरभर   बाथ
(46)
महा    राणा'र     राजमें , सेनापति     राठौड़
कमधज   जयमल  नामची, माथा  हंदो  मौड़
(47)
राज  काज  ओजाणतो ,करतो चोखो  काम
शानदार   तो   पैठ  ही,बोहत   बढ़िया   नाम
(48)
हिण  हिण करता  रण  में ,घौडा़ जाता  दौड़़
साफाे  कलडो  बांधके, जबरो  करता  झौड़
(49)
सीधो  समर  में  न  पडे़, ह वीराँ   री  मरौड़
झगडो़    सामौ    लेवता , रणबंका   राठौड़
(50)
प्रण    निभायो    जयमल, मेवाड़'र   दरबार
कटियो पर हटियो नहीं, शीश  दियो  सरदार