#पग_ढकणा , #पागी , #खुरा , #FOOT_MARKS , #पदचिन्ह
तकनीक से लबालब इस युग से पहले जब कोई अपराध घटित होता था , तो प्रथम सबूत के तौर पर ये तकनीक अपनाई जाती थी ! थार के एक गाँव में कुछ दिन पहले किसी व्यक्ति की थङी को किसी #कुम्माणस नें आग लगा दी , और अपनी मोटर साईकिल से चलता बना !
प्रात: काल सूचना मिलने पर एकत्र जन समुदाय द्वारा उनके पदचिन्हों को उक्त तगारियों द्वारा ढक दिया गया , ताकि वे चलती हवा के साथ उङती बालू रेत के साथ विलुप्त ना हो जाएँ ! इन पदचिन्हों को पहचानने वाले पागी अब सीमित मात्रा में बचे हैं !
#गुलाबसिंह_सोढा_मते_का_तला ढाट के नामी पागी थे , जिन्हें सीमा सुरक्षा बल नें शैक्षिक योग्यता को दरकिनार कर साक्षर मात्र होने के बावजूद अपने बेङे में भर्ती किया ! नब्बे के दशक की शुरूआत में जब पश्चिमी सीमा पर तारबंदी नहीं थी और तस्करी अपने यौवन पर थी , तब गुलाबसिंह जी धोरों पर मंडे ऊँट के पाँवों के निशान देखकर बता देते थे कि ये ऊँट इतना समय पहले यहाँ से गुजरा है व इतना वजन उस पर लदा हुआ था ! बिना भार लदे ऊँट के पाँव बालू में कम धँसते थे , जबकि भार लदा होने पर वे धँसे हुए नजर आते थे !
यही नहीं , वे किसी व्यक्ति के नंगे पदचिन्ह को एक बार देख लेने के बाद वर्षों तक उसकी विशिष्ट पदचिन्ह पहचान को भूलते नहीं थे ! अपने लम्बे कार्यकाल में उन्होंनें पदचिन्हों के आधार पर अनेक अपराधियों को पकङवाकर राष्ट्रसेवा की ! गाँव में किसी भी प्रकार के अपराध घटित होने पर पागियों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है !
इन पदचिन्हों की मार्फत पागी अपराधी की पहचान में अब भी समर्थ है , पर अव्वल तो पागी गिने - चुने बचे हैं और आलम ये है कि पहचान हो भी गई तो अपराधी व उसके #पावळिये पागी को अनेक प्रकार के संकटों में डाल सकते हैं ! तब वर्तमान के क्लिष्ट व मूल्यरहित समय की सर्वाधिक प्रासंगिक और प्रचलित उक्ति "#अपने_क्या_है_जाने_दो_भाङ_में " की तर्ज पर वे भी स्वयं को बचाने का जतन करते हुए किनारा कर लेते हैं !
इन तगारियों के तले ढककर सुरक्षित रखे पदचिन्ह अपराधी की पहचान कर पाएँगे अथवा नहीं , यह वर्तमान दौर में इतना महत्वपूर्ण नहीं है , किंतु उस सौहार्द्रपूर्ण समय की तस्वीर एक बार फिर से याद दिला जायेंगे कि हमारी पीढियों नें इन नायाब और पूर्ण प्राकृतिक तरीकों से अपने सुदृढ सामाजिक वजूद को बचाए रखा !
#ढाटधरा अपने समृद्ध सरोकारों से सदैव आबाद रही है ! वातावरण और जीवनयापन हेतु कङे संघर्षों के बावजूद #ढाटियों नें अपनी प्रबल जिजीविषा के चलते हर तरह से अनुकूलन स्थापित करते हुए अपने आप को आबाद और अद्यतन रखा है !
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बुधवार, 13 फ़रवरी 2019
पागी
नमो करनला निहालै निजर नित नेहरी
गीत -प्रहास साणोर
नमो करनला निहाल़ै निजर नित नेहरी,
बगत मा ऐहरी राख बातां।
शरम तो भुजां मुझ गेहरी शंकरी,
आण मत मेहरी देर आतां।।1
तारिया बूडतां समंद ताणै।
जोरबल़ राकसां किता दल़ जारिया,
जगत में धारिया रूप जाणै।।2
भेंटती सुपातां रिजक भारी।
फेटती वरण रा अरि कर फिड़कला,
थेटती रही आ बाण थारी।।3
राज वड आपिया जिकां रीझी।
जयंकर सुजस तो जापिया जोगणी,
खुटल़ नर सापिया तिकां खीझी।।4
ताप दुख टाल़ती वेग तारां।
भाल़ती सताबी आय कर भीर नैं,
गाल़ती रूठ नैं विघनगारां।।5
चारणी धरै सो करै चातां।
थाट कर सेवगां काल़जो ठारणी,
हाकड़ो जारणी समंद हाथां।।6
नेहियां धारती मनां नातो।
खमा निज पाणवां खाग खणकारती,
तांण तणकारती सिंघ तातो।।7
लालधज समंगल़ भीर लैणी।
मोचणी अमंगल़ जाहरां महिपर,
दंगल़ में जैत नैं जीत दैणी।।8
ताल़ जद तीसरी पूग ताती।
नीच वो काल़ियो विडारण नीसरी,
खरै मन रीसरी जाय खाती।।9
जीतकर कल़ू में वल़ू जामी।
रीत मरजाद री द्रिढ नित राहपर,
नीत पथ बहै निज बाल़ नामी।।10
सूरकर साचपण जगत साखी।
पूरकर भणाई आपसी प्रेमकर,
राज ओ हूर कर महर राखी।।11
सदा रह अल़ै सूं परै सारी।
सल़ै रह सल़ूझी अवर सथ समाजां,
भल़ै तो चरण में भाव भारी।।12
रतन कर जिणां नैं पाल़ राखै।
जतन कर गुमर सूं लहै निज जीवारी,
उतन प्रत श्रद्धा रा कवत आखै।।13
सार री गहै नित बात सारा।
जुगत कर कार री जपै जस जोगणी,
थाप इण वार री दास थारा।।14
सायकर सायकर सदा सेवी।
जीयाहर गीधियो गाय गुण जामणी,
दायकर मनै तूं गीत देवी।।15
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
सोमवार, 11 फ़रवरी 2019
राव चाम्पा
वे चौबीस भाइयो मे ज्येष्ठ थे *इनका जन्म माघ शुक्ला 3 सम्वत1469* को हुआ था
इनका ननिहाल *चौहान राजपूतो* मे था
किसी कवि ने कहा है:-
*सोनगरा बङभागी जिणरा सपूत कहिजे भाण*
*एक चाम्पो रिङमलोत दुजो प्रताप राण*
जब राव रिङमल जी कि शिशोदियो ने मेवाङ हत्या करके मण्डोर पर कब्जा कर लिया तब राव चाम्पा जोधा
और भाईयो ने मिलकर मण्डोर वापस जित लिया और *शिशोदियो* को खदेङ दिया और उनका मेवाङ तक पिछा किया और अपने घोङो को पिछोला की झील पर पानी पिलाया
इसी सन्दर्भ मै जब हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद मानसिह जब अपने घोङो को *पिछोला* कि झील पर पानी पीला रहे थे तब घमण्ड मे कहा या तो यहा घोङे मेने ही पाये या फिर रिङमल राठौङ के बेटो ने हि पाया तब पास मे किसी चारण ने ताना मारते हुये कहा मानसिंह जी रिङमल के बेटो ने तो पिछोला पर घोङे अपने भुजबल पर पाये थे पर आप तो अकबर के भुजबल पर पा रहे हो
राव चाम्पा को भाई बन्ट मे *बणाङ* व *कापरङा* ठिकाना मिला इनी के वन्श मे एक से बढकर एक वीर हुये *राव गोपालदास जी* जिन्होंने चारणो के खातिर अपनी पाली की जागीर तक छोङने को तैयार हो गये फिर उनके बेटे *बल्लूजी* जो आगरा के किले से अमरसिंह का शव लेकर आये *पोकरण ठाकुर देवीसिह जी* जैसे महत्वाकांक्षी वीर हुये *लोकदेवता बगत सिह जी पीलवा* *ठाकुर खुशाल सिह आउवा* जैसो ने इनी के कुल मे जन्म लिया इनको कई मनसब ठिकाने ताजिमी ठिकाने परगने मिले इनके पराक्रम के कारण ही इनको मरूधर का *चान्दणा*(प्रकाश)और *मोङ* (सिरपेश)कहा है आज चम्पावत राठौङो के 93 गांव है
बुधवार, 6 फ़रवरी 2019
मुंछ के बाल
इतिहास के पन्नों में जोधपुर के रहस्य ।
पचास हजार में गिरवी रखे मुंछ के बाल के चुकाए 1लाख
संवत 16O1 में महाराजा गजे सिंह के जेष्ट पुत्र वीर अमर सिंह राठौड़ का आगरे के किले में हुए युद्ध में देहांत हो गया था। उनके पीछे रानियों ने राव अमर सिंह का मस्तक लाने के लिए बल्लू चंपावत के नेतृत्व में फौज तैयार की। आगरा के किले का दरवाजा बंद था, इसलिए उसे तोड़ने के लिए विशेष दल की आवश्यकता थी। उन समय नई भर्ती के लिए धन का अभाव था, अतः बल्लू चंपावत ने आगरे के एक व्यापारी सेठ के पास अपनी मूंछ का बाल गिरवी रख कर पचास हजार रुपए उधार लिए। सेना तैयार हो गई ,भीषण युद्ध हुआ और राठौड़ सैनिक अमर सिंह का मस्तक लाने में सफल रहे। रानियों ने पति के मस्तक के साथ चीतारोहण किया और बल्लू चंपावत स्वयं लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर गए। इस प्रकार सेठ के रुपयों का मामला ठंडा पड़ गया। कुछ पीढ़ियों के बाद आगरा के उसी नगर सेठ के वंशज निर्धन हो गए। तब उन्होंने बहियों के पुराने खत-खातों को देखना शुरु किया। इसी क्रम में एक डिबिया में बल्लू का रुक्का और उनका मूंछ का बाल मिल गया। यह सेठ पता लगाता हुए मारवाड़ के हरसोलाव ठिकाने में बल्लू के वंशज ठाकुर सूरत सिंह चंपावत के पास पहुंचा। सूरत सिंह जोधपुर की तत्कालीन महाराजा विजय सिंह के समय दुर्ग रक्षक और ईमानदार क्षत्रिय थे।अपने पूर्वज की मूंछ के बाल को शरीर का अंग मानकर विधिवत दाह संस्कार किया और बारह दिनों तक शोक रख कर दान, पुण्य, भोज सहित रिवाज पूरे किए। फिर उस सेठ का हिसाब करवाया तो ब्याज का ब्याज जोड़ने में रकम बहुत अधिक बढ़ गई और ठाकुर उसका पूरा चुकारा करना चाहते थे। असंभव की स्थिति और इमानदारी की पराकाष्ठा देख कर पंचो ने यह निर्णय दिया की दाम दृणा अर धान च्यार। घास-फूस रौ छेह न पार। अर्थात कितना भी समय बीत जाने पर भी दाम दुगुने और अनाज चौगुुना देने पर पूरी स्वीकृति हुई।
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019
क्षत्राणी हाड़ी राणी
क्षत्राणी हाड़ी राणी
"सर काट सजाया थाल दी निशानी युद्ध पर जाने को।"
हे हिन्द के हिन्दुस्तानी,क्या दुनियां में देखी है ऐसी कुर्बानी-देश,धर्म तथा स्वाधीनता से विपत्ति्ग्रस्त होने पर क्षत्रिय वीर ललनाएँ किस प्रकार अपने पतियों को उत्साहित कर उन्हें कर्तव्य पथ पर स्थिर रखने के लिए आत्म-बलिदान करती थी, *(हाड़ी राणी राजपूत हाड़ा चौहान वंश की पुत्री)* ज्वलन्त दृष्टांत आत्म -त्यागिनी हाड़ी रानी की जीवनी से स्पष्ट हो रहा है। जिस समय सलूम्बर के रावत रतनसिंह जी अपनी नवयौवना पत्नी के मोह में पड़ कर क्षत्रिय कर्तव्य से विचलित हो रहे थे,उस समय उनकी धर्मपत्नी हाड़ी रानी ने उनको कर्तव्य पर स्थिर रखने के लिए अपनी जो बलि चढ़ाई थी,वह अतुलनीय है,उसकी तुलना संसार के किसी बलिदान से नहीं की जा सकती।
मुगल बादशाह औरंगजेब बड़ा ही अधर्मी,क्रूर एवं धर्मांध शासक था।वह किशनगढ़ राज्य की राजकुमारी चरूमती का डोला मांग रहा था । किशनगढ़ छोटी से रियासत थी और उस मुगल बादशाह का मुकाबला करने में सक्षम भी नहीं थी। राजकुमारी जब उस मुगल औरंगजेब के अधर्मी इरादे का पता चला तो वह बहुत चिंतित हुई।
इसी काल में मेवाड़ में महाराणा की गद्दी पर महाराणा राजसिंह विराजमान थे जो एक वीर ओर निर्भीक शासक होने के साथ ही न्यायप्रिय भी थे। साहस ओर हिम्मत के साथ हर मुसीबत में दृढ़ता का परिचय देकर उन्होंने चारों ओर डंका बजा रखा था।उधर जब किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती को दुष्ट औरंगजेब से बचने का कोई रास्ता समझ नहीं आया तब उसने महाराणा राजसिंह जी को मन ही मन "वरण"{पति मान लिया} कर लिया और अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु प्रार्थना की । जब राजकुमारी चारुमती का संदेश मेवाड़ पहुंचा तो असमंजस की स्थिति पैदा हो गई। एक ओर राजपूती आन-बान-मान और मर्यादा का प्रश्न था दूसरी ओर औरंगजेब जैसे शक्तिशाली और क्रूर धर्मांध बादशाह से दुश्मनी मोल लेना था।
मेवाड़ के राजमहल में आम सभा बुलाई गई और महाराणा राजसिंह जी ने अपने मंत्रियों और सामन्तों से मन्त्रणा करने के बाद राजकुमारी चारुमती का आग्रह स्वीकार कर लिया ।चारुमती के विवाह करने हेतु प्रस्थान की तैयारियां होने लगीं।
सलूम्बर के रावत रतनसिंह जी चूंडावत मेवाड़ के महाराणा राजसिंह जी के प्रमुख उमराव थे। वीरवर सलूम्बर रावत ने अपनी नव विवाहिता हाड़ी रानी को चारुमती के विनय का वर्णन सुनाया तथा कल प्रातः ही महाराणा उससे विवाह करने हेतु प्रस्थान करेंगे,इसकी सूचना दी।सारा व्रतांत सुनकर हाड़ी रानी प्रसन्न हुई और उसे इस बात की खुशी हुई कि चारुमती की रक्षा करने महाराणा राजसिंह जी तैयार हुए।
अपने पति से निवेदन करते हुए हाड़ी रानी जो कि कुछ ही दिन पहले शादी होकर ही आईं ही थी कहने लगी -- *"आपके लिए भी यह सुनहरा अवसर है। अपने स्वामी के साथ आप एक राजपूत बाला को कठिन परिस्थिति से उबारने को जारहे है। नारी की रक्षा करना क्षत्रिय का पुनीत कर्तव्य है और आप इसे भलीभांति निभायें ,यही कामना करती हूं*"। वैसे भी हाड़ा राजपूतों की बेटियां सुन्दरता के साथ -साथ वीरता एवं दबंगता में भी चारों ओर प्रसिद्ध थी। रानी दुर्गावती तथा रानी कर्णावती पूर्व में भी चित्तौड़ में जौहर की अगुवा रही थी ओर उनकी कीर्ति देश के कोने-कोने में फैली हुई थी ।
रावत रत्नसिंह जी वीर और साहसी राजपूत थे किंतु वह अपनी रानी के स्नेह और प्रेम में खोये हुए थे जो नव विवाहित के लिए स्वाभाविक भी था। अपनी नव विवाहिता के सौन्दर्य को खुली आँखों से अभी निरख भी नहीं पाए थे,मधुर सपनों की कल्पना के किसलय विकसित होने से पहले ही उन्हें मुरझाते हुए प्रतीत हुए। युद्ध के लिए वीर वेश धारण कर लिया,फिर भी रावत के मन में हाड़ी रानी बसी थी,आँख उसी को निहारने हेतु एकटक झरोखे पर टिकी थी ।परम्परा के अनुसार हाड़ी रानी ने माथे पर तिलक किया विदा दी,ओर स्वयं सेना को जाते देखने के लिए महलों के "गोखले"{खिड़की} में बैठ गई ।कूच का बिगुल बजा,सेना रवाना होने लगी और चुंडावत सरदार का मन डाँवा -डोल होने लगा,घोड़ा आगे,पीछे हो रहा था,चूंडावत सरदार बैचैन थे,कुछ क्षण चला यह आलम हाड़ी रानी की नजरों से नहीं बच सका, रानी ने संदेश वाहक भेजकर पुछवाया कि *"युद्ध में जाने के समय यह हिचकिचाहट कैसी है"* सरदार ने संदेश वाहक से कहा कि "रानी से जाकर कहो,राजकुमार को उनकी निशानी चाहिए । जब रानी को संदेश वाहक ने कहा कि *"सरदार को आपकी प्रेम निशानी चाहिए"* तो हाड़ी रानी असमंजस में पड़ गई कुछ चिंतित हुई और समझ गई कि *"चूंडावत का मन डाँवा -डोल है"* और इस स्थिति में यदि ये युद्ध भूमि में गये तो इनकी वीरता, इनका साहस शायद साथ न दे और कोई अनहोनी भी हो सकती है, क्यों कि इनका मन, रानी के रूप,सौंदर्य और प्रेम में उलझ गया है ।"
क्षत्राणी ने कुछ पल विचार करके सोचा ओर एक ऐसा दिल दहलाने वाला निर्णय लिया जो आज से पूर्व दुनिया के इतिहास में न तो किसी ने लिया था ओर न उसके बाद भी ऐसी मिसाल आज तक कायम हो सकी। अपनी दासी को भेजकर एक थाल मंगाया तथा एक पत्र भी लिखा, रानी ने दासी को सब कुछ समझाया ओर तलवार के एक वार से अपना सिर काटकर अलग कर दिया। दासी ने उसे कहे अनुसार खुले बाल का कटा सिर एवं पत्र थाल में सजाकर चूंडावत सरदार के संदेशवाहक को दे दिया ओर रानी का संदेश भी बता दिया। चूंडावत सरदार निशानी की चाहत के लिए बेचैन थे ,संदेशवाहक के पहुंचते ही घोड़े पर बैठे -बैठे जैसे ही उसने थाल पर ढके कपड़े को हटाया विस्मय एवं आश्चर्य से वह उस प्रेम की निशानी को देखते ही आवक रह गए। प्रतिक्रिया में तांडव का भूचाल सरदार के मन में आगया। बड़े आदर ,प्रेम और सत्कार से उस रक्त रंजित कटे सिर को उठाया और खुले बालों वाले उस सिर को अपने गले में लटका लिया, जोरदार हुंकार भरी ओर घोड़े को ऐड लगाई,घोड़ा पवन गति से आगे बढ़ा औऱ चूंडावत सरदार की उस सेना ने युद्ध भूमि में पहुंचने से पूर्व पीछे मुड़कर नहीं देखा। पूर्व योजना के अनुसार इस सेना ने मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना को रोके रखा और उधर महाराणा राजसिंह जी किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती को ब्याह कर मेवाड़ के महलों में पहुंच गए। तत्कालीन मुगल इतिहासकारों ने भी लिखा है कि चूंडावत रत्नसिंह ने बादशाह की सेना में ऐसी तबाही मचाई कि कई मुगल सैनिक उसका रौद्र रूप देखकर आश्चर्य चकित रह गए और अपने प्राण बचा कर भागने लगे। सलूम्बर के इस वीर योद्धा ने अपने साहस व वीरता का परिचय देकर अपने कर्तव्य का पूर्णतया पालन कर युद्ध में वीर-गति को प्राप्त किया ।
हाड़ी रानी के इस बलिदान ने उसे संसार के सतियों में एक उच्च स्थान दिया।रानी इस लोक से तो चली गई पर अमर हो गई ।इसकी तुलना संसार के किसी बलिदान से नहीं की जासकती ।जब तक धरती रहेगी,इतिहास पढ़ा जायगा तब -तब हाड़ी रानी का बलिदान अवश्य याद किया जायेगा। धन्य है वह देवी ,जिसने अपने स्वामी को कर्तव्य पर स्थिर रखने के लिए अपने जीवन की बलि चढ़ा दी ।
*"चूंडावत मांगी सैनानी,सिर काट भेज दिया क्षत्राणी"*
धन्य है क्षत्रिय बाला,धन्य है क्षत्रिय जाति,धन्य है उसका साहस व कर्तव्य पथ और धन्य है उनका मातृभूमि के प्रति प्रेम और सम्मान।
हर तलवार पर,राजपूतों की कहानी है।
देश के हर क्षेत्र का राजपूत बलिदानी है।।
देश के लिए राजपूतों ने दी बड़ी बड़ी कुर्बानी है ।
तभी तो देश -दुनिया,राजपूतों की दीवानी है।।
हे हिन्द के भाइयो,माताओ,बहिनो,हाड़ी रानी और रावत रत्न सिंह जी चूंडावत के बलिदान से शिक्षा ग्रहण के राष्ट,जाति तथा धर्म की रक्षा में अपना योगदान निहित करो,इसी में देश,धर्म और हम सब का कल्याण है ।
लेकिन बड़ी खुशी और गौरव की बात है कि आज भी क्षत्राणियां अपने पति और पुत्रों को सेना में जाने के लिए ओर शहादत के लिए उत्साहित कर प्रेरणा देती है। अपने बच्चों को राष्ट्रभक्ति एवं ईमानदारी का पाठ पढ़ाती है जिससे बच्चों में अपने पूर्वजों के संस्कार समाहित हो सकें । शक्ति एवं भक्ति की गंगा -यमुना की पावन पवित्र धारा में क्षत्राणियों ने जो योगदान दिया वह स्मरणीय,प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय है।
लेकिन बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के हमारे इतिहास में हमारे पूर्वजों के बलिदान को आज युवाओं को नहीं पढ़ाया जाता ।
देश स्वतंत्र होने के बाद हकीकत में राजपूतों के वीरता -शौर्यतापूर्ण राष्ट्रभक्ति के बलिदान के इतिहास को विलुप्त किया गया । इतिहास बनाया गया ऐसे लोगों का जिनका कोई देश रक्षा में बलिदान ओर योगदान नहीं । अब युवाओं को जाग्रत होने की आवश्यकता है। अब युद्ध तलवार से नहीं बल्कि शिक्षित होकर लड़ना होगा तभी हम अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को बचा पायेंगे ।
सोमवार, 4 फ़रवरी 2019
तूं झल्लै तरवार!
तूं झल्लै तरवार!
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राजस्थान रै इतिहास में जोधपुर राव चंद्रसेनजी रो ऊंचो अर निकल़ंक नाम है।अकबर री आंधी सूं अविचल़ हुयां बिनां रजवट रो वट रुखाल़ण में वाल़ां में सिरै नाम है चंद्रसेनजी रो।राष्ट्रकवि दुरसाजी आढा आपरै एक गीत में लिखै कै उण बखत दो आदमी ई ऐड़ा हा जिणां रो मन अकबर रो चाकर बणण सारू नीं डिगियो।एक तो महाराणा प्रताप अर दूजा राव चंद्रसेनजी जोधपुर-
अणदगिया तुरी ऊजल़ा असमर,
चाकर रहण न डिगियो चीत।
सारां हिंदूकार तणै सिर,
पातल नै चंद्रसेण पवीत।।
महावीर चंद्रसेनजी ई उण बखत रै छल़ छदमां अर राजनीत रै दुष्चक्रां री चपेट आयग्या ।जिणसूं मारवाड़ रै गुमेज पानो अणलिखियो ई रैयग्यो।
चंद्रसेनजी री सतति घणा विखा भोगिया तो थापित हुवण सारू घणा भचभेड़ा खाया।ऐड़ै संक्रमणकाल़ में
चंद्रसेनजी रो पोतरो कर्मसेनजी पातसाह जहांगीर रै जाय रह्या।जहांगीर उणांनै वडो वीर अर साहसी मिनख जाण हाथी रै होदै खवासी में राखिया।कर्मसेनजी जितरा नामी वीर हा उतरा ईज मोटा दातार।उणांरै कनै सूं राज गयो पण उणां रीत नीं जावण दी-
कम्मो कमावै खाय कव,
कै ओल़ग्गै मग्ग।
नाट न देवै राठवड़,
पाट वडेरां पग्ग।।
बात चालै कै उणी दिनां मारवाड़ रो एक चारण कर्मसेनजी सूं मिलण उठै गयो।
साधारण चारण पातसाह रै दरबार में पूग नीं सकियो।उणनै किणी बतायो कै कर्मसेनजी पातसाह रै खवासी में है अर उणां तक पूगणो घणो आंझो है।लोगां बतायो कै प्रभात री पातसाह री सवारी अमुक मारग हुयर निकल़सी सो आप किणीगत कोई तजबीज लगाय'र मिल सको तो मिललो।वो चारण मारग में आए एक विरछ रै शिखरियै डाल़ै चढ'र बैठग्यो।
ज्यूं ई सवारी आई तो चारण देखियो कै मारवाड़ रो महावीर पातसाह रै लारै बैठो छत्र ढोल़ै!राव चंद्रसेनजी रो पोतरो अर आण रो रखवाल़ कर्मसेन ओ कांई ओछो काम अंगेजियो है? जिणरै ऊपर छत्र ढुल़णो चाहीजै वो इतरो विखायत हुयग्यो कै करण अकरण रो इणनै ठाह नीं रह्यो।
उण चारण नै आपरा गाभा खावण लागग्या ! बूकियां रै बटक्यां बोड़ण लागो।
ज्यूं ई सवारी कनैकर निकल़ रैयी है कै चारण आपरी ओजस्वी वाणी में बोलियो-
कम्मा उगरसेन रा,
तो हत्थां बल़िहार।
छत्र न झल्लै शाह रा ,
तूं झल्लै तरवार।।
ज्यूं ऐ ओजस्वी आखर कर्मसेनजी रै कानां पड़िया उणां अजेज उठीनै जोयो जठीनै सूं आवाज आई। ज्यूं ई दोनां री आंख्यां मिल़ी ।चारण भल़ै उणी ओजस्वी वाणी में कह्यो
मरै ममूकै माण,
माण ममूकै मर मरै।
पिंजर जब लग प्राण,
तबलग ताडकतो रहै।।
कर्मसेनजी उणी बखत बिनां किणी सोच रै छत्र अर चंवर छोड'र अंबाड़ी सूं नीचै कूदग्या।
सवारी ठंभगी।
अफरातफरी मचगी।पातसाही सेवग रो इणगत पातसाह री सेवा सूं कूदणो अक्षम्य अपराध हो। कर्मसेनजी कोई विद्रोही तो हा नीं अर नीं वै सामघाती हा।वै उण चारण कानी बैया अर चारण नीचै उतर'र उणां कानी लंफियो। कर्मसेनजी अर चारण नै पातसाही सेवगां पकड़ लिया।पातसाह कीं कैवतो उणसूं पैला ई किणी अरज करी कै -"जहांपनाह !इणनै इण रूंख माथै बैठे आदमी कीं कैयर भिड़कायो है।जितो ओ दोषी है उणसूं बतो वो आदमी दैषी है।" आ सुण'र जहांगीर खारी मींट सूं चारण कानी जोवतां कह्यो कै-"तनै ठाह है कै पातसाह रै खिलाफ किणी नै भिड़कावणो कितरो मोटो अपराध है? अर इणरी कितरी अर कांई सजा मिल सकै?"
आ सुण'र उण चारण कह्यो -हुजूर !म्हे तो चारण हां !राजपूत कोई अजोगतो काम करै आ म्हांरै सूं सहन नीं हुवै।ओ मारवाड़ रै धणी चंद्रसेनजी रै बेटे उग्रसेनजी सपूत है ।इणरी रगां में उण चंद्रसेन रो रगत प्रवाहित हुवै जिण आखी ऊमर आजादी रो झंडो उखणियो राखियो।इणनै तो पातसाह रै खिलाफ तरवार ताणणी चाहीजै जिको ओ छत्र ढोल़ण री सेवा करै!इणसूं नाजोगी कांई बात हुसी?राजपूत है! तरवार रै बल़ सेवा करणी चाहीजै।म्हैं तो इणनै इतरो ईज कह्यो है तूं पातसाह रो छत्र मत झाल तरवार झाल !!इणसूं बतो कीं नीं कह्यो जको आप भिड़कावण री बात मानो।म्हैं इणनै आ नीं कैतो तो म्हैं आफरो आय'र मर जावतो--
म्हे मगरै रा मोरिया,
काकर चूण करंत।
रुत आयां बोलां नहीं,
(तो)हीयो फूट मरंत।।
चारण री स्वामीभक्ति खरापण अर वाकपटुता नै देख'र पातसाह राजी हुयो हुयो साथै ई कर्मसेनजी रै मनमें चारण री वाणी आदर अर मोत नै अंगेजण री हूंस सूं ई घणो राजी हुयो। उण उणी बखत आदेश दियो कै आगै सूं कर्मसेन पातसाह रै खास अंगरक्षकां में तैनात रैसी अर सोजत रो धणी हुसी।
सोमवार, 22 अक्टूबर 2018
झूठ
झूठ तो होवे चिकणी ,
गळा सूं उतरे सोरी ।
सांच है थोड़ी करड़ी ,
बुलीजे आ थोड़ी दौरी ।
चटोरा झूठ ने चाटै ,
स्वाद रबड़ी सो लागे ।
साँच ने चाटण रो केवा ,
मिनखड़ा आंतरा भागै ।
भाई झूठ ने पिवण री ,
लाग्योड़ी लेण है भारी ।
सांच री नाळ देणी पड़ै ,
भाई आ चीज है खारी ।
थू झूठ बोलसी क सांच ,
बता मरजी काई है थारी ।
मत नागो करो जजमान ,
खोलो मत पोल थे म्हारी ।
करे मन मोकळौ म्हारो ,
पण इण रो बोलणो भारी ।
रविवार, 16 सितंबर 2018
रंग रा दूहा
रंग रा दूहा
जननी कुख धन जनमिया दुनिया वीर दातार ।।
डोढ़ा रंग तिण दिजिये , सुयश लिया संसार ।।1।।
शिर पड़ियां लड़िया सरस , दीना निज शिर दान ।।
राजन उण रंग दिजिये , जस तिण अमर जहान ।।2।।
कश्यप स्वाम्भुव भूप कहाँ , ऊजल बिरद अनूप ।।
तपसी राजन रंग तिहि , भया आर्यव्रत भूप ।।3।।
अर्क चंद्र अरु ऋषि अगन , समरथ भूप सुजान ।।
वंदिये रंग सह विश्व में , वंश तांहि विद्यमान ।।4।।
सम्पत राज समपे सर्व , भयो नृपत भीखंग ।।
अमूल्य वचन राख्यो अडग , राजा हरिचंद रंग ।।5।।
तपधारी कुळ तारवा , गिर से लायो गंग ।।
अमलां वेळा आपने , राजा भगीरथ रंग ।।6।।
जाचया हाड जोगी तणा , सरव देव मिल संग ।।
दिया हाड कट दान में , रिसीवर दधिचि रंग ।।7।।
भगवन्त निज भिक्षुक भये , निरख दता नवडंग ।।
निश्चय सत चुकयो नहीं , राजा बली ज रंग ।।8।।
नीति धरम निभाड़णो , छेदयो मांस छुरंग ।।
शरणागत सुंपयो नहीं , राज शिबी घण रंग ।।9।।
अहो भाग्यवर अवधपत , अति बळ युद्ध अभंग ।।
पुत्र राम त्रयलोक पत , राजा दशरथ रंग ।।10।।
सांम अवध सेना सघन , सहोदर लक्ष्मण संग ।।
बिहड़यो दशकंधर बली , राम प्रभु घण रंग ।।11।।
प्रचंड सेन बळ पराक्रमी , तोड़ण मद तरसंग ।।
भूप आर्यव्रत भूमि रा , राजा यदु घण रंग ।।12।।
दीन वत्सल दुष्टां दळण , जय कर पांडव जंग ।।
चीर द्रोपदी सिर चढ़ण , राजा कृष्ण रंग ।।13।।
अवनी ऊपर अवतरे , श्री कृष्ण के संग ।।
हलधर भट दुष्टों हणे , रोज दियां तिण रंग ।।14।।
सतवादी पांडु सतन , सहे कष्ट तन संग ।।
नीति धरम त्यागयो नहीं , राज युधिष्ठर रंग ।।15।
नीति न्याय ज्ञानी नृपत , बायुस युद्ध बलिबन्ड ।।
दुंणा रंग तिहि दीजिये , पराक्रम भीष्म प्रचंड ।।16।।
संत शिरोमणि सज्जन चित , राम भजन दिल रंग ।।
विमल नीतिवत विदुरजी , रोज दियां घण रंग ।।17।।
सुर दाता दिनकर सुतन , जोधो असाध्य जंग ।।
दत सुवर्ण वांटयो दुनि , राजा करण ज रंग ।।18।।
गुरुवार, 13 सितंबर 2018
विनायक- वंदना
विनायक- वंदना--गिरधरदान रतनू दासोड़ी
गीत -जांगड़ो
व्हालो ओ पूत बीसहथ वाल़ो,
दूंधाल़ो जग दाखै।
फरसो करां धरै फरहरतो,
रीस विघन पर राखै।।१
उगती जुगती हाथ अमामी,
नामी नाथ निराल़ो।
भगतां काज सुधारण भामी,
जामी जगत जोराल़ो।।२
आगैडाल़ पूजवै अवनी,
सार संभाल़ सचाल़ो।
सिमरै बाल़ स्हायक बणनै,
विणसै दुख विरदाल़ो।।३
परचंड पिंड बडाल़ो पेटड़,
स़ूंड लटकती सामी। वरदायक माल़ गल़ै वैंजति,
नायक गण घणनामी।।४
बुध रो बगसणहार वदीजै,
काम अनोखा कोटी।
मुरलोकां सिरताज मुणीजै,
महल़ दोउं घर मोटी।।५
रणतभंवर तणो बड राजा,
शंकर कंवर सुणीजै।
ढिग जग सारो चँवर ढोल़वै,
प्रभता प्रात पुणीजै।।६
आखू तणी चढै असवारी,
भल मन मोदक भावै।
शस्त्रां करां अरि -दल़ साजै
अबढी विरियां आवै।।७
एको रदन ऊजल़ै अंगां,
लाभ शुभां रो लेखो.
आगर ग्यान तणो अन्नदाता,
प्रीत निजर निज पेखो।।८
वेदव्यास तणी सुण विणती,
अमी दीठ भर आयो।
भारत- महा कियो सिग भूमि,
बड कज सहज बणायो।।९
जन रो देव जगत सह जाणै,
नित उठ नाक नमावै।
उर में दया जिणां रै ऊपर,
देव आवै हर दावै।।१०
गणपत तणी सरण गिरधारी,
धरण ऊपरै धारी।
हरण विघन दास हरसाजै,
सुकवी कारज सारी।।११
आप सगल़ां नै गणेश चौथ री हार्दिक शुभकामनावां।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी