रविवार, 15 अक्टूबर 2017

वीर वीरमदे

"वीर वीरमदे"
गढ़ जालोरी घणो जोर को,कान्हड़ रो दरबार।
उण रो जायो पूत वीरमदे शूराँ रो सिरदार।।

शूराँ रो सिरताज है कान्हड़,वीरम वीर प्रताप।
पिंडयाँ धुजे बैरयाँ री,अर मौत वरणीयो आप।।

कुल रो बढ़ियो मान घणो,उज्जळो गढ़ जालोर।
वीरम दे री ख्याति रा अबे,चर्चा च्यारों ओर।।

उण दिनां र माहि लगे,ख़िलजी रो दरबार।
सुन शहजादी ख्यात वीरम री,मान लियो भरतार।।

बात मान ले म्हारी फिरोजा, ख़िलजी रह्यो समझाय।
वीर घणा है जग र माँहि,वीरम न वरण्यो जाय।।

मर्दानी और एक मर्द,म्हारो वीर वीरम।
दासी उण रा चरणा री,काढू थारो भरम।।

थकियो हार्यो ख़िलजी बोल्यो,सुण वीरम म्हारी बात।
शहजादी रो वरण थे करल्यो,देश्यूँ गढ़ सौगात।।

सुण बादशाह गाँठ बंद ले,एक म्हारी तूँ बात।
धर्म  राखबा खातर वीरम,छाती सह्वे आघात।।

विधर्मी ना वीर वीरम,छोड़ देऊँ दरबार।
धर्म न राखण खातर,जनम्यो ओ सिरदार।।

धर्म रूखाळा वीरम देव जी कर दीन्यो इनकार।
जाण फिरोजा आ पहुंची फेर कान्हड़ र दरबार।।

जा फिरोजा ओठी चलीज्या,तूँ दिल्ली दरबार।
धर्म न राखण गढ़ जालोरी,टुकड़ा होवे हजार।।

बातां सुणके वीरमदेव री,ख़िलजी होग्यो लाल।
सर काट क तेरो वीरम दे, करस्यूं तने हलाल।।

ख़िलजी रा लश्कर फेरूँ,करयो कूच जालोर।
वीरम देव र साथ र माँही,रण हुयो घणघोर।।

वीर वीरम दे घणो ही लड्यो,काट्या सौ मुग्लाय।
लड़ता लड़ता धर्म रूखाळो,वीरगति गयो पाय।।

जी जीवंता धर्म राखियो,राख्यो गढ़ जालोर।
धर्म री ख्याति इणसूं फैली देखो चारो ओर।।

(कुँवर आयुवान सिंह जी हुडील द्वारा रचित हठीलो राजस्थान की अन्तरकथा "वीरमदे" का काव्य रुपांतरण

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

आखर रा उमराव आई जी

मायड़ भाषा राजस्थानी अर मरूधरा री मरजादा रै अँतस री ऊंडी पीड़ रा चावा अर ठावा चितेरा अर मिनखपणै ने  ओपती ओळखांण  देय 'र आपरै पुरसारथ री सीळी सौरम सूं सुवासित कर साहित रै गिगनार में उगंता अरक रै उनमान उजास थरपणिया आदरजोग आई दान सिंह जी भाटी  आईजी सा ने आपरै अवतरण दिवस रै मौकै मौकळी बधाई अर रावळै चरणां में सबद सुमन ....

अँगेजण री घणैमान अरदास

आखर रा उमराव आई जी
हिवडे रा हरसाव आई जी

ठाकरबा री ठावी ठौड़ां
देखी बालपणै री दौड़ां
टाबर टोळी ओळै दोळै
घर गुवाड़ी मिसरी घोळै
आंगण रा ऊमाव आईजी
हिवडे रा हरसाव आईजी
आखर रा उमराव आईजी

मिनखपणौ सीखी मरजादा
सांच बोलणा रहणा सादा
रीत प्रीत रा जबर रुखाळा
अँतस आतम दीप उजाळ.
चित्तडै चढियौ चाव आईजी हिवड़े रा हरसाव आाईजी
आखर रा उमराव आईजी

सबद ब्रह्म री सदा सेवना
खरी बात री करी खेवना
कूड़ कपट तो कदै न कहणौ
निरमल मन अर निरभै रहणो
दिलड़ै रा दरियाव आईजी
हिवड़ै रा हरसाव आईजी
आखर रा उमराव आईजी

माँडै रोज मुळकती माटी
भव री पीड़ उघाड़ै भाटी
जियाजूण रो साम्प्रत लेखो
मीच आँखियां साम्ही देखो
दुनिया रा दरसाव आईजी
हिवड़ै रा हरसाव आईजी
आखर रा उमराव आईजी

अनमी अटल अवधूत आप हैं
मरुभौम री असल छाप है
धोरा री धरती रो धोरी
सहज उगैरे कवित सजौरी 
छिन छिन शीतल छांव अाईजी
हिवड़े रा हरसाव आई जी
आखर रा उमराव आई जी

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*रतनसिंह चाँपावत रणसीगाँव कृत*

बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

मरणो तो इक मोत,

मरणो तो इक मोत,मार नित नाही मरणो!
करणो सुफरत काम,चाल चलन राह चलणो!!१
डग नाँह पल डिगांय,बात आँह उमर बहणी!
लेवे जग मे लार,कहानी मुँख गढ कहणी!!२
दुर्लभ तन पर दाग,धोया नही कदे धुपे!
धारण तन कर धार,जीव गिरधर राम जुपे!!३

शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

राव शेखाजी

राव शेखाजी
राजस्थान में शूर-वीरों की कभी कोई कमी नहीं रही।
यही कारण था कि राजस्थान के इतिहास के जनक जेम्स कर्नल टॉड को यह कहना पड़ा कि इस प्रदेश का शायद ही कोई ग्राम हो जहाँ एक भी वीर नहीं हुआ हो। बात सही भी लगती है।

इस अध्याय में जिन वीर शेखा का वृतांत ले रहे हैं वो किसी बड़े राज्य के स्वामी नहीं बल्कि उनका एक बहुत ही छोटे ठिकाने में जन्म हुआ था।
आज भले ही वह क्षेत्र एक बड़े नाम 'शेखावाटी' से जाना जाता है।
जिसमें राजस्थान को दो जिले सीकर व झुंझनु आते हैं।
यह शेखावाटी इन्ही वीर शेखा के नाम पर है।

शेखा का सम्बन्ध यूं तो जयपुर राजघराने के कछवाह वंश से है लेकिन उनके पिता राव मोकल के पास मात्र 24 गाँवों की जागीर थी।
राव मोकल के घर आंगन में शेखा का जन्म सम्वत् 1490 में हुआ था।
इनके जन्म की भी अपनी एक रोचक कहानी है जो इस प्रकार है।

राव मोकल बहुत ही धार्मिक वृति के पुरुष थे।
मोकल के वृद्धावस्था तक कोई सन्तान नहीं हुई फिर भी संतोषी प्रवृति के होने के कारण किसी से कोई शिकायत नहीं थी।
बस, साधु-संतों की सेवा-सुश्रा में लगे रहते थे।
मोकल को एक दिन किसी महात्मा ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी और उसी के अनुसार महाराव मोकल वृंदावन गये।
वहां उन्हें गऊ सेवा में एक विशिष्ट आनन्द की अनुभूति हुई।
यहीं उन्हें किसी ने गोपीनाथजी की भक्ति करने के लिए कहा। मोकल अपनी वृद्धावस्था में गऊ सेवा और भगवान गोपीनाथजी की सेवा-आराधना में ऐसे लीन हुए कि उन्हें दिन कहाँ बीतता, पता ही नहीं लगता।

मोकल जी की
निरबान रानी की कोख से बच्चे ने जन्म लिया। 
शेखा निश्चित ही प्रतापी पुरुष थे। इन्होंने अपने पिता की 24 गाँवों की छोटी सी जागीर को 360 गाँवों की एक महत्वपूर्ण जागीर का रूप दे दिया।
सच तो यह है कि शेखा किसी जागीर के मालिक नहीं थे बल्कि वे एक स्वतंत्र रियासत के मुखिया हो गये थे।

दूरदृष्टा-राव शेखा ने अपने जीवन काल में करीब बावन युद्ध लड़े। इनमें कुछ तो अपने ही भाइयों आम्बेर के कछवाहों के साथ भी लड़े।
शेखा की दिन दूनी-रात चौगूनी सफलता को नहीं पचा पाए, जिसके कारण उनके न चाहते हुए भी उन्हें संघर्ष को मजबूर होना पड़ा था।
सौभाग्य से उन्हें हर युद्ध में सफलता प्राप्त हुई।
एक बार आम्बेर नरेश ने नाराज होकर बरवाड़ा पर आक्रमण कर दिया तो राव शेखा ने इस क्षेत्र में रहने वाले पन्नी पठानों को अपनी तरफ करके उस आक्रमण को भी विफल कर दिया।

इस सफलता के पीछे राव शेखा की दूरदृष्टि थी।
शेखा ने समझ लिया था कि क्षेत्र में पन्नी पठानों का बाहुल्य है और उनको बिना विश्वास में लिए शासन करना सम्भव नहीं है, तो उन्होंने पन्त्री पठानों के 12 कबीलों को 12 ग्राम जागीर में दिये ताकि हमेशा शान्ति बन रहे। इस निमित्त कुछ नियम बनाये ताकि हिन्दुमुस्लिम दोनों ही में कभी कोई विरोध पैदा ना हो।
राव शेखा ने अपने पीले झंडे के नीचे चौ-तरफा नीली पट्टी लगवाई क्योंकि पठानों का झंडा नीले रंग का था।
इसी तरह से दोनों धर्मों में पवित्र माने जाने वाले पशुपक्षियों के वध एवं उनके मांस-भक्षण पर सहमति बनाली, जैसे पठान गाय-बेल का मांस नहीं खायेंगे और हिन्दु सुअर का मांस भोजन में नहीं लेंगे।

मर्यादा पुरुष-राजपूती संस्कृति के अनुरूप शेखा एक मर्यादाशील पुरुष थे तथा अन्य से भी मर्यादोचित व्यवहार की अपेक्षा रखते थे, फिर वे चाहे कोई भी हो।
जीवन पर्यन्त उन्होंने मर्यादाओं की रक्षा की।
इतिहास गवाह है कि एक स्त्री की मान मर्यादा के पालनार्थ उन्होंने अपने ही ससुराल झूथरी के गौड़ों से झगड़ा मोल लिया जिसके परिणामस्वरूप घाटवे का युद्ध हुआ और उसमें उन्हें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी थी।

घटना कुछ इस प्रकार से थी। झूथरी ठिकाने का राव मोलराज गौड़ अहंकारी स्वभाव का था। उसने अपने गाँव के पास से जाने वाले रास्ते पर एक तालाब खुदवाना आरम्भ किया और यह नियम बनाया कि रास्ते से गुजरने वाले प्रत्येक राहगीर को एक तगारी मिट्टी खोदकर बाहर की ओर डालनी होगी।

एक कछवाह राजपूत अपनी पत्नी के साथ गुजर रहा था। पत्नी रथ में थी, वह स्वयं घोड़े पर था, साथ में एक आदमी और था। इन सबको भी मिट्टी डालने को विवश किया। कछवाह राजपूत व उसके साथ के आदमी ने तो मिट्टी डालदी परन्तु वहाँ के लोग स्त्री से भी मिट्टी डलवाने के लिए जबरदस्ती रथ से उतारने
लगे तो पति ने समझाया-बुझाया पर जब नहीं माने और बदसूलकी पर उतर आये तो उसने गौड़ों के एक आदमी को तलवार से काट दिया।
इस पर वहाँ एकत्रित गौड़ों ने भी स्त्री के पति को मौत के घाट उतार दिया।
पत्नी ने अपने आदमी का अन्तिम संस्कार करने के बाद वहाँ से एक मुट्ठी मिट्टी अपनी साड़ी के पलू में बांधकर लाई और सारी घटना से शेखा को अवगत कराया।
शेखा ने सारा वृतांत जानकर गौड़ों को तुरन्त दंड देने का मन बना लिया और झूथरी पर चढ़ाई करदी।
जमकर संघर्ष हुआ और गौड़ सरदार का सिर काटकर ले आये और उस विधवा महिला के पास भिजवा दिया।
बाद में शेखा ने वह सिर अपने अमरसर गढ़ के मुख्य द्वार भी टांगा ताकि कभी और कोई ऐसी हरकत नहीं करें।

न्याय तो हो गया लेकिन गौड़ों ने इसे अपना घोर अपमान समझा और पूरी शक्ति के साथ घाटवा के मैदान में शेखा को ललकारा। शेखा ने भी उनकी चुनौती को स्वीकारा।
दोनों ओर से घमासान मचा। शेखा को 16 घाव लगे लेकिन वे निरन्तर लड़ते रहे।
गौड उनके आगे नहीं ठहर सके किंतु इस युद्ध के बाद बैशाख शुक्ला 3 (आखा तीज) संवत् 1545 में वे अपनी राजपूती मान-मर्यादा की बेदी पर स्वर्ग सिधार गये।

संक्षेप में शेखा निडर एवं आत्म स्वाभिमानी थे।
शौर्य व साहस की प्रतिमूर्ति थे, धर्म-कर्म और पुण्य के मार्ग के अनुयायी थे।
सम्भवत: शेखा के इन्हीं पुण्यात्मकता के कारण उनके नाम से प्रसिद्ध शेखावटी अचंल आज विश्वस्तर पर नाम को रोशन कर रहा।
शेखा के बाद आठ पुत्रों की संतानें शेखावत कहलाई और इन्हीं में से एक खांप ने देश को उपराष्ट्रपति (भैरोसिंह शेखावत) दिया तो एक खांप की पुत्रवधु देश की राष्ट्रपति बनी।

ऐसे ही विश्व का सबसे धनी व्यक्ति भी इसी शेखावटी क्षेत्र की देन है। अत: स्वयं शेखा अपने समय में राजपूताने के एक ख्यातिनाम वीर पुरुष थे और आज भी उनका नाम सर्वत्र सम्मानीय है। इतिहासकार सर यदूनाथ सरकार ने भी लिखा है की जयपुर राजवंश में शेखावत सबसे बहादुर शाखा है।

   

आसलसर के जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत

बिना ठाकुर {सामन्त/जागीरदार} के किसी भी गाँव की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी ??

हर गाँव की रक्षा हेतु किसी राजपूत को ठाकुर का पद दे दिया जाता था !!

न कि सिर्फ लगान वसूलने के लिए इसी बात पर एक किस्सा पेश कर रही हूँ !!

अंग्रेजो ने दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बन्दी बना लिया और मुगलो का जम कर कत्लेआम किया ??

सल्तनत खत्म होने से मुगल सेना कई टुकड़ो में बिखर गई और देश के कई हिस्सों में जान बचा कर छुप गई ??

पेट भरने के लिए कोई रोजगार उन्हें आता नही था क्योंकि मुगल सदैव चोरी लूटपाट और बलात्कार जेसे गन्दे और घ्रणित कार्यो में ही व्यस्त रहे इसलिए वो छोटे गिरोह बना कर लूटपाट करने लगे ??

बीकानेर रियासत में न्याय प्रिय राजा गंगा सिंह जी का शासन था !!

जिन्होंने गंग नहर {सबसे बड़ी नहर} का निर्माण करवाया ??

जिसको कांग्रेस सरकार ने इन्दिरा गांधी नहर नाम देकर हड़प लिया ??

उन्ही की रियासत के गाँव आसलसर के जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत की वीरता और गौ और धर्म रक्षा के चर्चे सब और होते थे ??

"तीज" का त्यौहार चल रहा था और गाँव की सब महिलाये और बच्चियां गांव से 2 किलोमीटर दूर गाँव के तालाब पर गणगौर पूजने को गयी हुई थी ??

और तालाब के समीप ही गांव की गाये भी चर रही थी उसी समय धूल का गुबार सा उठता सा नजर आया

और कोई समझ पाता उससे पहले ही करीब 150 घुड़सवारों ने गायों को घेर कर ले जाना शुरू कर दिया ??

चारो तरफ भगदड़ मच गई और सब महिलाये गाँव की और दौड़ी ??

उन गौओ में से एक उन मुगल लुटेरो का घेरा तोड़ कर भाग निकली तो एक मुसलमान ने भाला फेक मारा जो गाय की पीठ में घुस गया ??

पर गाय रुकी नही और गाँव की और सरपट भागी ??

दोपहर का वक्त था और आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी भोजन करने बेठे ही थे ??

की गाय माता की करुण रंभाने की आवाज सुनी वो तुरन्त उठे

और देखते ही समझ गए की मुसलमानो का ही कृत्य है ??

उन्होंने गाँव के ढोली राणा को नगारा बजाने का आदेश दिया जिससे की गाँव के वीर लोग युद्ध के लिए तैयार हो सके ??

पर सयोंगवश सब लोग खेतो में काम पर गए हुए थे ??

केवल पांच लोग इकट्ठे हुये और वो पाँच थे दीप सिंह जी के सगे भाई ??

सब ने शस्त्र और कवच पहने और घोड़ो पर सवार हुये

तभी दो बीकानेर रियासत के सिपाही जो की छुटी पर घर जा रहे थे वो भी आ गए ??

दीप सिंह जी उनको कहा की आप लोग परिवार से मिलने छुट्टी लेकर जा रहे हो आप जाइये ??

पर वो वीर कायम सिंह चौहान जी के वंशज नहीं माने और बोले हमने बीकानेर रियासत का नमक खाया है ??

हम ऐसे नहीं जा सकते ??

युद के लिए रवाना होते ही सामने एक और वीर पुरुष चेतन जी भी मिले वो भी युद्ध के लिए साथ हो लिए ??

इस तरह आठ "8" योद्धा 150 मुसलमान सेनिको से लड़ने निकल पड़े और उनके साथ युद्ध का नगाड़ा बजाने वाले ढोली राणा जी भी ??

मुस्लिम सेना की टुकड़ी के चाल धीमी पड़ चुकी थी ??

क्योंकि गायो को घेर कर चलना था ??

और उनका पीछा कर रहे जागीरदार दीप सिंह जी ने जल्दी ही उन मुगल सेनिको को "धाम चला" नामक धोरे पर रोक लिया ??

मुस्लिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मुखिया को इस बात का अंदाज नही था ??

की कोई इतनी जल्दी अवरोध भी सामने आ सकता है ??

उसे आश्चर्य और घबराहट दोनों महसूस हुई ??

आश्चर्य इस बात का की केवल आठ 8 लोग 150 अति प्रशिक्षित सैनिको से लड़ने आ गए और घबराहट इस बात की कि उसने आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी की वीरता के चर्चे सुने थे ??

उस मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने प्रस्ताव रखा की इस लूट में दो गाँवों की गाये शामिल है ??

अजितसर और आसलसर आप आसलसर गाँव की गाय वापस ले जाए

और हमे निकलने दे पर धर्म और गौ रक्षक श्री दीप सिंह जी शेखावत ने बिलकुल मना कर दिया और कहा की

एे मलेच्छ दुष्ट ये गाय हमारी माता के सम्मान पूजनीय है

कोई व्यपार की वस्तु नहीं तू सभी गौ माताओ को यही छोड़ेगा और तू भी अपने प्राण यही त्यागेगा ये मेरा वचन है ??

मुगल टुकड़ी के मुखिया का मुँह ये जवाब सुनकर खुला ही रह गया

और फिर क्रोधित होकर बोला की "मार डालो सबको" ??

आठो वीरो ने जबरदस्त हमला किया जो मुसलमानो ने सोचा भी नही था ??

कई घण्टे युद्ध चला और 150 मुसलमानो की टुकड़ी की लाशें जमीन पर आठ वीर योद्धाओ ने बिछा थी ??

सभी गऊ माता को गाँव की और रवाना करवा दिया और गंभीर घायल सभी वीर पास में ही खेजड़ी के पेड़ के निचे अपने घावों की मरहमपट्टी करने लगे ??

और गाँव की ही एक बच्ची को बोल कर पीने का पानी मंगवाया !!

सूर्य देव रेगिस्तान की धरती को अपने तेज से तपा रहे थे और धरती पर मौजूद धर्म रक्षक देव अपने धर्म से

सभी लोग खून से लथपथ हो चुके थे ??

और गर्मी और थकान से निढाल हो रहे थे ??

आसमान में मानव मांस के भक्षण के आदि हो चुके सेंकडो गिद्द मंडरा रहे थे ??

इतने ज्यादा संख्या में मंडरा रहे गीधों को लगभग 5 किलोमीटर दूर मौजूद दूसरी मुस्लिमो की टुकड़ी के मुखखिया ने देखा तो किसी अनहोनी की आशंका से सिहर उठा ??

उसने दूसरे साथियो को कहा जरूर कोई खतरनाक युद्ध हुआ है ??

वहां और काफी लोग मारे गए है इसलिए ही इतने गिद्ध आकाश में मंडरा रहे है ??

उसने तुरन्त उसी दिशा में चलने का आदेश दिया और वहां का द्रश्य देख उसे चक्कर से आ गए ??

150 सेनिको की लाशें पड़ी है जिनको गिद्ध खा रहे है ??

और दूर खेजड़ी के नीचे 8 आठ घायल लहू लुहान आराम कर रहे है ??

अचानक दीप सिंह शेखावत जी को कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ ??

और उन्होंने देखा की 150 मुस्लिम सेनिक बिलकुल नजदीक पहुँच चुके है ??

वो तुरन्त तैयार हुए और अन्य साथियो को भी सचेत किया ??

सब ने फिर से कवच और हथियार धारण कर लिए और घायल शेर की तरह टूट पड़े ??

खून की कमी तेज गर्मी और गंभीर घायल वीर योद्धा एक एक कर वीरगति को प्राप्त होने लगे ??

दीप सिंह जी छोटे सगे भाई रिड़मल सिंह जी और 3 तीन अन्य सगे भाई वीरगति को प्राप्त हुए ??

पर तब तक इन वीरो ने मुगल सेना का बहुत नुकसान कर दिया था ??

"7 " सात लोग वीरगति को प्राप्त कर चुके थे और युद्ध अपनी चरम सीमा पर था ??

अब जागीरदार दीप सिंह जी अकेले ही अपना युद्ध कोशल दिखा कर मलेछो के दांत खट्टे कर रहे की तभी एक मुगल ने धोखे से वार करके दीप सिंह की गर्दन धड़ से अलग कर दी ??

और और मुगल सेना के मुखिया ने जो द्रश्य देखा तो उसकी रूह काँप गई ??

दीप सिंह जी धड़ बिना सिर के दोनों हाथो से तलवार चला रहा था ??

धीरे धीरे दूसरी टुकड़ी के 150 मलछ् में से केवल दस ग्यारह मलेच्छ ही जिन्दा बचे थे ??

बूढ़े मुगल मुखिया ने देखा की धड़ के हाथ नगारे की आवाज के साथ साथ चल रहे है

उसने तुरंत जाकर निहथे ढोली राणा जी को मार दिया ??

ढोली जी के वीरगती को प्राप्त होते ही दीप सिंह का शरीर भी ठंडा पड़ गया ??

वो मुगल मुखिया अपने सात" 7" आदमियो के साथ जान बचा कर भाग निकला
??

और जाते जाते दीप सिंह जी की सोने की मुठ वाली तलवार ले भागा ??

लगभग 100 किलोमीटर दूर बीकानेर रियासत के दूसरे छोर पर भाटियो की जागीरे थी जो अपनी वीरता के लिए जाने पहचाने जाते है ??

मुगल टुकड़ी के मुखिया ने एक भाटी जागीरदार के गाँव में जाकर खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था मांगी और बदले में सोने की मुठ वाली तलवार देने की पेशकश करी ??

भाटी जागीरदार ने जेसे ही तलवार देखी चेहरे का रंग बदल गया और जोर से चिल्लाये ??

अरे मलेछ ये तलवार तो आसलसर जागीरदार दीप सिंह जी की है ??

तेरे पास कैसे आई ??

मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने डरते डरते पूरी घटना बताई और बोला ठाकुर साहब 300 आदमियो की टुकड़ी को गाजर मूली जेसे काट डाला ??

और हम 10 जने ही जिन्दा बच कर आ सके ??

भाटी जागीरदार दहाड़ कर गुस्से से बोले ??

अब तुम दस भी मुर्दो में गिने जाओगे और उन्होंने तुरंत उसी तलवार से उन मलेछो के सिर कलम कर दिए ??

और उस तलवार को ससम्मान आसलसर भिजवा दिया

ये सत्य घटना आसलसर गाँव की है और दीप सिंह जी जो इस गाँव के जागीरदार थे !!

आज भी दीपसिंह जी की पूजा सभी समाज के लोग श्रदा से करते है !!

और हाँ वो "धामचला " धोरा जहाँ युद्ध हुआ वहां आज भी युद्ध की आवाजे आती है !!

और इनकी पत्नी सती के रूप में पूजी जाती है

और उनके भी चमत्कार के चर्चे दूर दूर तक है ??

आज जो टीवी फिल्मो के माध्यम से दिखाया जाता है किसी भी गाँव के जागीरदार या सामंत सिर्फ शोषण करते थे ??

और कर वसूल करते थे उनके लिए करारा जवाब है  ??

गॉव के मुखिया होते हुए भी इनकी जान बहुत सस्ती हुआ करती थी ??

कैसी भी मुसीबत आये तो मुकाबले में आगे भी ठाकुर ही होते थे ??

गाँव की औरतो बच्चो गायों और ब्राह्मणों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहते थे ??

सत् सत् नमन है ऐसे वीर योद्धाओ को अपनी प्रजा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया ??

जय जय राजपुताना

बोबाङ

पाडा बकरा बांदरा,
चौथी चंचल नार ।
इतरा तो भूखा भला,
धाया करे बोबाङ ।।

भला मिनख ने भलो सूझे, कबूतर ने कुओं ।
अमलदार ने एक ही सूझे, किण गाँव मे मुओl

गरज गैली बावली,
जिण घर मांदा पूत।
सावन घाले नी छाछङी,
जेठां घाले दूध ।।

बाग बिगाङे बांदरो,
सभा बिगाङे फूहङ।
लालच बिगाङे दोस्ती,
करे केशर री धूङ. ।।

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

लालबहादुरजी शास्त्री

करनी रू कथनी में रह्यो तूं अभेद सदा,
होय के निशंक कियो निकलंक काम को।
कदाचार त्याग सदाचार अनुराग माग,
सत्य पे अडग रह्यो थिर प्रात शाम को।
नीति हूं से प्रीति बहु देश दिल जीति लियो,
झुरे आज सबै लालबहादुर नाम को।
कबै झुक्यो नहीं अवरोधन से रुक्यो नहीं,
वारै ऊ गीध शास्त्री पे कोटीश  सलाम को।।
प्रातः स्मरणीय स्व. प्रधानमंत्री लालबहादुरजी शास्त्री के चरणों में उनकी जयंती पर सादर वंदन।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गद्दां बैठ्या गंडकड़ा !!

गद् दां बैठ्या गंडकड़ा !!

गांव छोड सहरां बस्या , जड़ सूं छूट्यो हेत ।
गढ पोळां सारा बिक्या , बाड़ा बच्या न खेत ।।
दादीसा इसकूल सूं , नित पोतां नैं ल्याय !
मोड़ो-बेगो ज्ये हुवै, बहू आंतड़ा खाय !!
नहीं काम घर रो करै , बहू बणी अब मेम ।
भागै बासण छोड कर , जद व्है डूटी-टेम ।।
ऊँठ् या-बासण ठीकरा , सासू सिर सरकाय ।
पोतां की अणभांवती , कुलफी दादी खाय ।।
फौजां में पीठू लद् या , अब थैलो परचूण ।
दादोसा ल्याता फिरै , कदे तेल घी लूँण ।।
फ्लेट किराये रो लियो , सूळी ऊपर सेज ।
हांफल्डो जबरो भरै , चढतां लागै जेज ।।
गाय-बाछड़ी भैंस नीं , नीं छ्याळी रा खोज ।
छाछ-दूध थैल्यां बिकै , जाणैं लागै बोझ ।।
खेत खळां खुद जावता , लाट ल्यावता रास ।
दादोसा अब लोन में , बैठ्या खेलै ताश ।।
दाता रावण बाजिया, लाम्बी मूँछ्याँ खोड़ ।
गयो ठाकरां माजनूं , ठरको ओर मरोड़ ।।
बहु-बेटा बेजां लड़ै , बोलै कोजा बोल !
घर घर बे'रो पाटगो , बिनां बजायां ढोल !!
दिवर-जिठाण्यां बैठती , करती मन री बात ।
तीजी मन्जिल टांक'दी , छीज रही दिन रात ।।
गद्दां बैठ्या गंडकड़ा , मायत पूंछ हिलाय ।
पदमण म्हैलां पोढगी , कँवर चाय पकड़ाय ।।

मधुकर मऊ न छोडज्ये !

मधुकर मऊ न छोडज्ये !
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मधुबन मत दे सांवरा मऊ जनम सो बार ।
कुंज गळ्यां कोजी घणी मऊ लागै मंदार* ।।
जलमभोम ज्यांरी मऊ जुग जुग हुया निहाल ।
सारी सींवां फोड़ दी , नूंवीं सींव दी घाल ।।
मधुकर मऊ न छोडज्ये जे छोड्यो दुख पाय।
गया दिसावर बावड़ै  फिर फिर ओ'ठा आय।।
सिंवरै मनसा मात नैं जको दिसावर मांय ।
पोबा'रा पच्चीस व्है बिजनिस बढ़ै सवाय ।।
अठै खिलाड़ी खेल सब अर साहित परचार ।
जनहित में बैराग ले छोड दियो घर-बार ।।
चित्रकार किरपालसी पदमश्री परधान ।
ब्लू पोटरी में मिल्यो ज्यांनै लूंठो स्थान ।।
परिभासा परिमल* रची राजनीति री रीत ।
कण कण चमकै चाँद ज्यूँ दुनियां गावै गीत ।।
डूँगर ऊपर सोवणों बालाजी रो धाम ।
गाँव जगाती बीच मैं शिवशंकर सरनाम ।।
पिरथीसिंघ सपूत नैं मिळ्यो वीर रो स्थान ।
मान कवी सिरजण करै जलम भोम रै मान ।।
शिक्षक अठै समाज में करै ज्ञान परकास ।
राष्ट्रपति दीन्यो पदक मन में हुयो हुलास* ।।
ज्ञान गीत कविता अठै मूरतकला प्रवीण ।
कळा कळस* रा पारखी नीं हिरदै सूंं हीण* ।।
*शब्दार्थ :
~~~~~~मंदार = स्वर्ग , परिमल = सुंदर , हुलास = प्रसन्नता , कळस = नृत्य की एक वर्तनी अर्थात् नृत्य विशेषज्ञ और हीण = क्षीण !!!
  नरेंद्र सिंह मऊ