रविवार, 19 नवंबर 2017

अबखी वेळा आय

**अबखी वेळा आय**

भीड़ पड़ी जद भाटियों, आवड़ तूटी आय।
तारिया गढ तणोट में,अबखी वेळा आय।।1

जादम कुळ रै जोर'में,सांपरत री सहाय।
रही साथ तणराव'रै,अबखी वेळा आय।।2

भादरियो मनभावणौ,आयल बैठा आय।
संकट मेटै शंकरी,अबखी वेळा आय।।3

मरूधरा रै मांयनै, सदा रेजै सहाय।
भगतां दाळद मेटजै ,अबखी वेळा आय।।4

अकबरियौ चढ आवियौ,कटक दळ कटकाय।
पत राखी परताप री,अबखी वेळा आय।।5

अंबा आयल ईसरी,जगजणणी जगराय।
रजवट राखै रंग'तू,अबखी वेळा आय।।6

दोखी सगळा देश'रा,रळिया भेळा आय।
भार उतारै भोम'रौ,अबखी वेळा आय।।7

पीथळ थारौ बाळकौ,सवांगिया सुरराय।
सबद ओपता सूंपजै,अबखी वेळा आय।।8

© पृथ्वीराजसिंह बेरू।

Warriors of Rajasthan


1. *बप्पा रावल*- अरबो, तुर्को को कई हराया ओर हिन्दू धरम रक्षक की उपाधि धारण की
2. *भीम देव सोलंकी द्वितीय* - मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे बंधी बनाये रखा
3. *पृथ्वीराज चौहान* - गौरी को 16 बार हराया और और गोरी बार बार कुरान की कसम खा कर छूट जाता ...17वी बार पृथ्वीराज चौहान हारे
4. *हम्मीरदेव (रणथम्बोर)* - खिलजी को 1296 मे अल्लाउदीन ख़िलजी के 20000 की सेना में से 8000 की सेना को काटा और अंत में सभी 3000 राजपूत बलिदान हुए राजपूतनियो ने जोहर कर के इज्जत बचायी ..हिनदुओ की ताकत का लोहा मनवाया
5. *कान्हड देव सोनिगरा* – 1308 जालोर मे अलाउदिन खिलजी से युद्ध किया और सोमनाथ गुजरात से लूटा शिवलिगं वापिस राजपूतो के कब्जे में लिया और युद्ध के दौरान गुप्त रूप से विश्वनीय राजपूतो , चरणो और राजपुरोहितो द्वारा गुजरात भेजवाया तथा विधि विधान सहित सोमनाथ में स्थापित करवाया
6. *राणा सागां*- बाबर को भिख दी और धोका मिला ओर युद्ध . राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे, युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे.
7. *राणा कुम्भा* - अपनी जिदगीँ मे 17 युदध लडे एक भी नही हारे
8. *जयमाल मेड़तिया*- ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था। चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में *जयमाल राठौड़* पैर जख्मी होने कि वजह से *कल्ला जी* के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सिर  काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और 8000 राजपूतो की फौज ने 48000 दुश्मन को मार गिराया ! अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल मेड़तिया और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी.
9. *मानसिहं तोमर*- महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार कराया और 1510 में सिकंदर लोदी और इब्राहीमलोदी को धूल चटाई
10. *रानी दुर्गावती*- चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। गोंडवाना की महारानी दुर्गावती ने अकबर की गुलामी करने के बजाय उससे युद्ध लड़ा 24 जून 1564 को युद्ध में रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको मुगलों के हाथों अपमान से बचाने के लिए खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली।
11. *महाराणा प्रताप* - इनके बारे में तो सभी जानते ही होंगे ... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था.
12. *जय सिंह जी* - जयपुर महाराजा ने जय सिंह जी ने अपनी सूझबुज से छत्रपति शिवजी को औरंगज़ेब की कैद से निकलवाया बाद में औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उनकी हत्या विष देकर करवा डाली
13. *छत्रपति    शिवाजी* - मेवाड़ सिसोदिया वंशज छत्रपति शिवाजी ने औरंगज़ेब को हराया तुर्को और मुगलो को कई बार हराया
14. *रायमलोत कल्ला जी* का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता- लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी.
15. सलूम्बर के नवविवाहित *रावत रतन सिंह चुण्डावत* जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर
पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे.
16. औरंगज़ेब के नायक तहव्वर खान से गायो को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ उस युद्ध में *700 मेड़तिया राजपूत* वीरगति प्राप्त हुए और 1700 मुग़ल मरे गए पर एक भी गाय कटने न दी उनकी याद में पुष्कर में गौ घाट बना हुआ है
17. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है.
18. जोधपुर के *यशवंत सिंह* के 12 साल के पुत्र *पृथ्वी सिंह* ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था.
19. *करौली के जादोन राजा* अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे.
20. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी अकबर की मुगल सेना पर हिंदू भारी पड़े
21. राजस्थान पाली में आउवा के *ठाकुर खुशाल सिंह* 1857 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है
22. *जौहर :* युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ| सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ
""जौहर के बाद राजपूत पुरुष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर पर बांध कर तब तक लड़के जब तक उन्हें वीरगति न मिले ये एक आत्मघाती कदम होता। ....."""|
卐 *जैसलमेर* के जौहर में 24,000 राजपूतानियों ने इज्जत कि खातिर अल्लाउदीन खिलजी के हरम जाने की बजाय आग में कूद कर अपने सतीत्व के रक्षा कि ..
卐 1303 चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की *महारानी पद्मिनी* के नेतृत्व में 16000 हजार राजपूत रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में दूसरे जौहर चित्तोड़ की *महारानी कर्मवती* के नेतृत्व में 8,000 हजार राजपूत रमणियों ने 1535 AD में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में तीसरा जौहर अकबर से हुए युद्ध के समय 11,000 हजार राजपूत नारियो ने 1567 AD में किया था |
卐 ग्वालियर व राइसिन का जोहर ये जोहर तोमर सहिवाहन पुरबिया के वक़्त हुआ ये राणा सांगा के रिशतेदार थे और खानवा युद्ध में हर के बाद ये जोहर हुआ
卐 ये जोहर अजमेर में हुआ पृथ्वीराज चौहान कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी से ताराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद हुआ इसमें *रानी संयोगिता* ने महल उपस्थित सभी महिलाओं के साथ जौहर किया ) जालोर का जौहर ,बारमेर का जोहर आदि
""". इतिहास गवाज है हम राजपूतो की हर लड़ाई में दुश्मन सेना तिगुनी चौगनी होती थी राजस्थान मालवा और सौराष्ट्र में मुगलो ने एक भी हमला राजपूतो पर तिगुनी और चौगनी फ़ौज से कम के बिना नही नही किया पर युद्ध के अंतः में दुश्मन आधे से ऊपर मारे जाते थे ""

卐卐 तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, प्रभु ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 卐卐
*|| जय एकलिंग जी की ||*
*११ जय श्री कल्याण ११*

शनिवार, 18 नवंबर 2017

छेड़बा

गड्ढे में एक शेर गिर गया ।
परेशान होकर शेर यहाँ वहां देखने लगा पर उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था ।
तभी वहां एक पेड़ में एक बन्दर आ गया ,
शेर को इस हाल में फंसा देखकर बन्दर ,
शेर का मजाक उडाने लगा , "
क्यों शेर तू तो राजा बना फिरता है अब तो तेरी अकल ठिकाने आ गयी न,
अब शिकारी तुझे मiरेंगे ,
तेरी खाल निकालकर दीवार पर सजायेंगे,
तेरे नाखून और दांत निकाल कर दवाई बनायेंगे ।
तभी वो डाल जिसमें बन्दर बैठा था ,टूट गयी और बन्दर सीधे शेर के सामने आ गिरा ।
गिरते ही बोला
" बाप की सोगन ......माफ़ी मांगबा न  नीचे कूदयो हूँ "
मन कोई मज़ो थोड़ी आवे थान छेड़बा म

सोमवार, 13 नवंबर 2017

देशी घी "या "डालडा" की.


एक बार एक राजस्थानी आदमी समुद्र में नहाते हुए डूबने
लगता
.
तो वह भगवान से प्रार्थना करते हुए कहता है,
.
" हे भगवान!
.
मैं बच गयो तो 100 गरीबां ने लापसी
खिलाऊं"।
.
अभी उसकी बात ख़त्म ही हुई होती है की एक
तेज़ लहर उसे किनारे पर फेंक देती है।
.
जैसे ही वह आदमी किनारे पर पहुंचा,
.
उसने ऊपर देखा और अकड़ में कहा,
"कसी लापसी"?
.
तभी अचानक एक और लहर आयी और उसे
वापस समुद्र में ले गयी।
.
आदमी रोते हुए बोला: भगवान, मारो मतलब है
"देशी घी "या "डालडा" की...
?

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

पदमण सुजस प्रकास।

पापी के खपिया प्रिथी,
विटळा केक विनास।
जस धिन दूणो जगमगै,
पदमण तणो प्रकास।।
जिण झाळां री झाट सूं,
खपियो खिलजी खास।
प्रिथमी सारी पसरियो,
पदमण सुजस प्रकास।।
सत उर में साहस सधर,
जबर वर्यो जसवास।
सांम नांम स्वाभिमान रो,
पदमण तणो प्रकास।।
आय अलाऊदीन ऊ,
निसचै हुवो निरास।
वर अगनी कीधो वसू,
पदमण सुजस प्रकास।।
जणणी घरणी जिकणी,
घणा करै घरवास।
उण रै दाह उपावणो ,
पदमण सुजस प्रकास।।
काठ चढै ली कीरती,
रम घम झाळां रास।
दिन- दिन दूणो दीपतो,
पदमण सुजस प्रकास।।
ससिहर साखा सांपरत,
भरै साख भल भास।
दाह दीनी उर दोयणां,
पदमण तणै प्रकास।।
लंगर पहरण लाजरा,
हिरदै बळण हुलास।
करगी ऊजळ कोम नै,
पदमण गात प्रकास।।
चमकै अजै चित्तौड़गढ,
अवनी परै उजास।
महि कोम निज मोद दे,
पदमण सुजस प्रकास।।
हिरदै हिंदवां हार हिव,
पाप आसी पिंड पास।
अंतस जद दे ऊरमा,
पदमण सुजस प्रकास।।
गौरव देवण गहर मन,
तोडण तन री तास।
सुणजो नितप्रत सरवणां,
पदमण सुजस प्रकास।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

सोमवार, 6 नवंबर 2017

दुर्गौ कठे गयौ ले लाठी...

.......दुर्गौ कठे गयौ ले लाठी.......
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गों कठे गयौ ले लाठी !
थानें राख सख्या नही मालक, ज्यांने थें जिमाई बाठी !!
चुगलखोराँ आगे गली नहीँ ही,
दुर्गदास री दाल !
हौकौ भरीयो राजाजी रौ,सेवट दियो निकाल !!
मुंडे सूँ तो कयो नहीँ हो,जाओ थे दुर्गादास !
काट मतीरो सेवक साथे,दिजौ ऊणनें खास !!
राजाओं रे चुगलखौराँ री,रहती न्यारी फौज !
अठी उठी री बाँता नें वे,परोसता नित रोज़ !!
पुग्यौ दुर्गों मेहरानगढ़ में,चावन्ड रे दरबार !
टाबर ज्यूँ अरडावण लागौ,क्यूँ हुई आ हार !!
चावन्डा सूँ पाछॊ आताँ,देख्यौ शहर जोधाण !
हियौ उण रौ भर आयौ,छोड़यौ ज़द मेहराण !!
भोले मनड़े रौ ओ मालक,फसग्यो चुगलखौराँ रे जाल !
थानें अरज करूँ मैं मायड़,पहली इणनें तूँ निकाल !!
मारवाड़ सूँ छेलौ मुजरौ,जातौ कियो जूहार !
कुलदेवी नें अरज करी वे,धाम नागाणा जार !!

मनसा म्हारी आ हिज है, मयूरध्वज रौ मान !
राखे भूप अजितसिंह,रणबँका री शान !!
दुर्गादास पुगीया अबे ,राणा रे दरबार !
सादडी़ रौ पट्टो बख्स्यो,स्वगत कियो अपार !!
दुर्गादास रौ मेवाड़ में,हौयौ जबरो मान !
राणा राखी रणबँका री,वा राठौड़ी शान !!
दुर्गौ कहे राणाजी नें,बात एक मैं अरज करूँ !
मनसा म्हारी आ हिज है,शिप्रा तट पर जाय मरूं !!
उज्जिण आप रे भाग नें,मन्न ही मन्न सराय !
दुर्गा जैडो़ देसभगत,शिप्रा में ज़द नहाय !!
शिप्रा पूछे दुर्गदास नें,सुणज्ये तूँ करणौत !
क्यूँ छोङयौ तूँ मारवाड़,भाई-बंधु अर गोत !!
बौल्यौ दुर्गौ हाथजोड़ नें,सुण तूँ शिप्रा माय !
निस्वार्थ सूँ काम करे वो,एक दिन इण गत आय !!
सतरे सौ पीछरौतरौ,आयौ मिंगसर  मास !
सुद ग्यारस शनिवार नें,दुर्गौ छोड़ी साँस !!
दुर्गौ कुल रौ सिरोंमणी राठौड़ वंश रौ मोड़ !
सामधर्म नें राखनीयौ,हुयौ न इण री जोड़ !!
मारवाड़ री क्षत्राणियाँ,राखे आ हिज आस !
पूत भला ही एक व्है,पण होवै दूर्गादास !!
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गादास कठे गयौ  ले लाठी !
थानें राख सख्या नीं मालक,ज्यांनै थे बाटी !!

उखङते ओलमें

"   उखङते ओलमें"
बात 21 वीं सदी के पहले दशक की है। मरूधर के कण - कण में करूणा और अहसान के प्रति कृतज्ञता की भावना ज़िंदा नज़र आती है। लेकिन आधुनिक शिक्षा के चकाचौंध ने किस तरह हमारी माटी की नैतिकता को जलील कर रखा है? मगजी का घर बोई के पार से चार km दूर सूनी नाण में था, 300 की छांग के साथ भरा पूरा परिवार था। तीन गायें थीं। चार गधे थे जो पार से पानी सींचकर मगजी के घर तक लाते थे। गीगू मगजी की बेटी थी और एक ही बेटा सगत जिन्हें मगजी स्नेह से गीगूङी और सगतिया कहकर बुलाते थे। गीगू मगजी के साथ पानी लाने और छांग को गोता देने में व्यस्त रहती थी। सगत को पहले सूंदरा की मिडिल स्कूल में दाखिल करवाया। सगत पढ़ाई में होशियार था, छांग के फलीये गिनने से लेकर बकरे व घेटे बिकने पर व्योपारी द्वारा दिए पैसे गिनने का काम मगजी सगते को ही दिया करते थे, सगते को आगे पढाने के लिए गडरा रोङ के आदर्श स्कूल भेजा तथा गडरा में ही कमरा दिलवा दिया जिसमें तीन बच्चे और भी साथ रहते थे। सगता नियमित स्कूल जाता और विज्ञान वर्ग में स्कूल का बेहतरीन छात्र बन गया। सगते को को स्कूल के सारे अध्यापक भी बङे स्नेह से सगता शेर कहकर पुकारते थे।सगते ने 12वीं कक्षा 80%से उत्तीर्ण की और पीएमटी की तैयारी के लिए कोटा चला गया। कोटा की तकनीकी चकाचौंध में सूनी नाण के मगजी का सगतिया शेर से ना जाने कैसे सैगी ब्रो बन गया पता ही नहीं चला। कोटा में सैगी ब्रो की दिनचर्या बङी रोचक थी, सुबह 10 बजे उठना और उठकर मित्र मंडली के साथ साइबर कैफे जाना व गेमिंग व चैटिंग में पूरा दिन खराब करना, रात को फ्लैट में सैगी ब्रो बिस्तर पर टुबोर्ज की बोतलों के साथ एडवांस मार्लबोरो के धुंए फूंकता कब सो जाता पता ही नहीं लगता। परीक्षा में मेहनत के अनुरूप ही परिणाम मिला और सगता फैल हो गया। मगजी ने गांव के मास्टर मोङजी से सगते के आगे की पढाई के बारे में पूछा तो उन्होंने विदेश से एमबीबीएस करने की सलाह दी। सैगी ब्रो की इच्छा भी तो यही थी। मगजी था भले ही अनपढ़ लेकिन कालजे का काठा था। उसने सैगी ब्रो को कजाकिस्तान जाने की हामी भर दी। सैगी ब्रो ने अमेरिकन टूरिस्टर के ट्रॉली बैग में सामान समेटे सीधे कोटा से उड़ान भरी। वहाँ उसने अपनी आदतों में कुछ और बातें शामिल कर ली, एक अपने होस्टलियरों के साथ बियर बार जाना और दूसरी नगरवधुओं के घाघरों में मुंह ढके पूरा दिन गुजार देता और वेश्यालयों में चरस और गांजा पीते रहना। सैगी ब्रो के पाँच साल कब गुजरे पता ही नहीं चला। सैगी ब्रो को पैसों के बदले डिग्री के नाम पर महज़ आश्वासन। उधर मगजी दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत कर सैगी ब्रो के बैंक अकाउंट को रिचार्ज देते रहते। छांग के पीछे दौड़ते दौड़ते एक दिन आकङे की फांक फटी पगरखी को भेदते मगजी के दांए पैर में गहराई से बैठ गई और मगजी फिर भी दौड़ धूप करते रहते। पखालें भर कर पार से पानी पिलाना, तपती दोपहरियों में खेजङी के खोखे झाङना और देर रात तक फोगों और बणों की ओट में नए फलीयों को ढूंढते रहने और आंखों में बेटे को डाक्टर बनाने के सपने ने मगजी के पैर में लगी फांक का पचवा होकर मवाद तक का रिसाव याद ही नहीं रहा। सङा हुआ पैर बदबू मारने लगा तो मगजी की धर्मपत्नी ने उन्हें छांग के पीछे जाने से रोक दिया। और घर पर ही तिल और मतीरे के बीजों को भूंजकर लिपरी बाँध दी। पर मगजी की पीड़ा कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी। जब पार के अन्य लोगों को ख़बर लगी तो मगजी को उपचार के लिए अहमदाबाद ले जाया गया, मगजी कहते रहे कि सगते को मत कहना नहीं तो वह सोच में पड़ेगा और पढ़ाई नहीं कर पाएगा। अहमदाबाद में भर्ती होने के उपरान्त भी वे डाक्टरों को कहते रहते कि 'हेक डीं मांहझो सगतियो य डाकतर बणसे अन माणसां रो इलाच करसे।' एक महीने बाद डाक्टरों ने गाँव के साथी और मगजी की देखभाल करने वाले 'करनींग' को बताया कि मगजी के पैर में इंफेक्शन की वज़ह से कैंसर फैल गया है और पैर को काटना पड़ेगा। मगजी का पैर आप्रेशन के बूते कट गया। मगजी की तबीयत दुरस्त हो गई, उन्हें गाँव वापस ले ले जाया गया और उन्हें बैडरेस्ट की सलाह मिली। मगजी नींद में भी बङबङाते रहते, 'मांहझो सगतियो डाकतर, सगतियो डाकतर।' भाग्य की करतूत भी अलहदा कि ठीक पंद्रह दिन बाद हृदयाघात से मगजी संसार छोड़ कर चले गए। पीछे छोड़ गए तो 200की अधमरी छांग, चार गधे और एक भारी भरकम सपना जो कभी पूरा नहीं होना था। मगजी को मुखाग्नि देने वाले हाथ भी पराये थे। तीहरे के दिन सैगी ब्रो भी पहुंच गया। उसकी आँखों में ना तो पश्चाताप और ना ही कुछ खोने की पीड़ा। और सब ख़ामोश था, पानी की पखालें, अधमरी छांग, चार गधे बार बार मगजी की याद में मानो रोए जा रहे हों। सैगी ब्रो को करनींग ने पूछ लिया कि "सगतू कडां वणीस डाकतर?" इतने में गीगू सैगी के बैग में स्मैक की पुङिया और मार्लबोरो का पैकेट लेकर सगते के आगे फेंक देती है और करनींग क्याङी का सहारा लेते हुए आसमान को तकता मगजी को जाने क्या ओलमें दे रहा था.............
-----तेज़स........

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

पीव आया परदेश सूं

पीव आया परदेश सूं, मीठी मांझल रात।
चढ़ती किरणा मन चुभे,पीळोड़ी परभात।।

धीरज धर जे है मना,रीत जावसी रात।
सुख रो सूरज ऊगसी,पीळोड़ी परभात।।

मुक्तक

मुक्तक
        

कानून रै मांय कुबद् यां री गळ्यां कढगी
बळतै दिनां मांय हाकमां री हरकत बढगी
किणनै सुणावै खेत दर्द री आ कहाणी
जबरो जंजाळ है,बाङ खेत खावण चढगी !!

                   ✍ मातु  सिंह  राठौङ

मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

सोरठा- सुमिर सदा सतनाम

सोरठा- सुमिर सदा सतनाम

*कर कीरत रा काम   सतमारग चलणो सजग*
*सुमिर सदा सतनाम   अवर न दूजौ आसरो*

*निस्चै रहसी नाम  नांणां पण रहणां नहीं*
*सुमिर सदा सतनाम.  दिनड़ा जावै दौड़िया*

*तज दे तंत तमाम.  अंत समै आणौ अवस*
*सुमिर सदा सतनाम. पासी मुगती जीव पण*

*डीलां ऊपर डांम.   सबद बांण लाग्या सबल*
*सुमिर सदा सतनाम    सुरगलोक में सरवरा*

*ठाला ठीकर ठाम.  पिंजर तन पीळा पडै*
*सुमिर सदा सतनाम. अजर अमर इक आतमा*

*निरभै निरख निजाम. निवण निरंजन नाथ ने*
*सदा सुमिर सतनाम  सत साहिब सुभ साधना*

*रतनसिंह चाँपावत रणसीगाँव कृत*

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

राजकुंवर- शुभ्रक story

कुतुबुद्दीन ऐबक और क़ुतुबमीनार---
किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संसकृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें. इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किये थे।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?

कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।
अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा।

कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था।

कुतुबुद्दीन कुल चार साल (१२०६ से १२१० तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।

जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था. यहाँ पर २७ छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो २७ नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था।

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन २७ मंदिरों को तोड दिया।विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता।
अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना।

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा।

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. *धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।

युवा  ताकत को प्रणाम