सोमवार, 6 नवंबर 2017

दुर्गौ कठे गयौ ले लाठी...

.......दुर्गौ कठे गयौ ले लाठी.......
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गों कठे गयौ ले लाठी !
थानें राख सख्या नही मालक, ज्यांने थें जिमाई बाठी !!
चुगलखोराँ आगे गली नहीँ ही,
दुर्गदास री दाल !
हौकौ भरीयो राजाजी रौ,सेवट दियो निकाल !!
मुंडे सूँ तो कयो नहीँ हो,जाओ थे दुर्गादास !
काट मतीरो सेवक साथे,दिजौ ऊणनें खास !!
राजाओं रे चुगलखौराँ री,रहती न्यारी फौज !
अठी उठी री बाँता नें वे,परोसता नित रोज़ !!
पुग्यौ दुर्गों मेहरानगढ़ में,चावन्ड रे दरबार !
टाबर ज्यूँ अरडावण लागौ,क्यूँ हुई आ हार !!
चावन्डा सूँ पाछॊ आताँ,देख्यौ शहर जोधाण !
हियौ उण रौ भर आयौ,छोड़यौ ज़द मेहराण !!
भोले मनड़े रौ ओ मालक,फसग्यो चुगलखौराँ रे जाल !
थानें अरज करूँ मैं मायड़,पहली इणनें तूँ निकाल !!
मारवाड़ सूँ छेलौ मुजरौ,जातौ कियो जूहार !
कुलदेवी नें अरज करी वे,धाम नागाणा जार !!

मनसा म्हारी आ हिज है, मयूरध्वज रौ मान !
राखे भूप अजितसिंह,रणबँका री शान !!
दुर्गादास पुगीया अबे ,राणा रे दरबार !
सादडी़ रौ पट्टो बख्स्यो,स्वगत कियो अपार !!
दुर्गादास रौ मेवाड़ में,हौयौ जबरो मान !
राणा राखी रणबँका री,वा राठौड़ी शान !!
दुर्गौ कहे राणाजी नें,बात एक मैं अरज करूँ !
मनसा म्हारी आ हिज है,शिप्रा तट पर जाय मरूं !!
उज्जिण आप रे भाग नें,मन्न ही मन्न सराय !
दुर्गा जैडो़ देसभगत,शिप्रा में ज़द नहाय !!
शिप्रा पूछे दुर्गदास नें,सुणज्ये तूँ करणौत !
क्यूँ छोङयौ तूँ मारवाड़,भाई-बंधु अर गोत !!
बौल्यौ दुर्गौ हाथजोड़ नें,सुण तूँ शिप्रा माय !
निस्वार्थ सूँ काम करे वो,एक दिन इण गत आय !!
सतरे सौ पीछरौतरौ,आयौ मिंगसर  मास !
सुद ग्यारस शनिवार नें,दुर्गौ छोड़ी साँस !!
दुर्गौ कुल रौ सिरोंमणी राठौड़ वंश रौ मोड़ !
सामधर्म नें राखनीयौ,हुयौ न इण री जोड़ !!
मारवाड़ री क्षत्राणियाँ,राखे आ हिज आस !
पूत भला ही एक व्है,पण होवै दूर्गादास !!
रोवै मारवाड़ री माटी,दुर्गादास कठे गयौ  ले लाठी !
थानें राख सख्या नीं मालक,ज्यांनै थे बाटी !!

उखङते ओलमें

"   उखङते ओलमें"
बात 21 वीं सदी के पहले दशक की है। मरूधर के कण - कण में करूणा और अहसान के प्रति कृतज्ञता की भावना ज़िंदा नज़र आती है। लेकिन आधुनिक शिक्षा के चकाचौंध ने किस तरह हमारी माटी की नैतिकता को जलील कर रखा है? मगजी का घर बोई के पार से चार km दूर सूनी नाण में था, 300 की छांग के साथ भरा पूरा परिवार था। तीन गायें थीं। चार गधे थे जो पार से पानी सींचकर मगजी के घर तक लाते थे। गीगू मगजी की बेटी थी और एक ही बेटा सगत जिन्हें मगजी स्नेह से गीगूङी और सगतिया कहकर बुलाते थे। गीगू मगजी के साथ पानी लाने और छांग को गोता देने में व्यस्त रहती थी। सगत को पहले सूंदरा की मिडिल स्कूल में दाखिल करवाया। सगत पढ़ाई में होशियार था, छांग के फलीये गिनने से लेकर बकरे व घेटे बिकने पर व्योपारी द्वारा दिए पैसे गिनने का काम मगजी सगते को ही दिया करते थे, सगते को आगे पढाने के लिए गडरा रोङ के आदर्श स्कूल भेजा तथा गडरा में ही कमरा दिलवा दिया जिसमें तीन बच्चे और भी साथ रहते थे। सगता नियमित स्कूल जाता और विज्ञान वर्ग में स्कूल का बेहतरीन छात्र बन गया। सगते को को स्कूल के सारे अध्यापक भी बङे स्नेह से सगता शेर कहकर पुकारते थे।सगते ने 12वीं कक्षा 80%से उत्तीर्ण की और पीएमटी की तैयारी के लिए कोटा चला गया। कोटा की तकनीकी चकाचौंध में सूनी नाण के मगजी का सगतिया शेर से ना जाने कैसे सैगी ब्रो बन गया पता ही नहीं चला। कोटा में सैगी ब्रो की दिनचर्या बङी रोचक थी, सुबह 10 बजे उठना और उठकर मित्र मंडली के साथ साइबर कैफे जाना व गेमिंग व चैटिंग में पूरा दिन खराब करना, रात को फ्लैट में सैगी ब्रो बिस्तर पर टुबोर्ज की बोतलों के साथ एडवांस मार्लबोरो के धुंए फूंकता कब सो जाता पता ही नहीं लगता। परीक्षा में मेहनत के अनुरूप ही परिणाम मिला और सगता फैल हो गया। मगजी ने गांव के मास्टर मोङजी से सगते के आगे की पढाई के बारे में पूछा तो उन्होंने विदेश से एमबीबीएस करने की सलाह दी। सैगी ब्रो की इच्छा भी तो यही थी। मगजी था भले ही अनपढ़ लेकिन कालजे का काठा था। उसने सैगी ब्रो को कजाकिस्तान जाने की हामी भर दी। सैगी ब्रो ने अमेरिकन टूरिस्टर के ट्रॉली बैग में सामान समेटे सीधे कोटा से उड़ान भरी। वहाँ उसने अपनी आदतों में कुछ और बातें शामिल कर ली, एक अपने होस्टलियरों के साथ बियर बार जाना और दूसरी नगरवधुओं के घाघरों में मुंह ढके पूरा दिन गुजार देता और वेश्यालयों में चरस और गांजा पीते रहना। सैगी ब्रो के पाँच साल कब गुजरे पता ही नहीं चला। सैगी ब्रो को पैसों के बदले डिग्री के नाम पर महज़ आश्वासन। उधर मगजी दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत कर सैगी ब्रो के बैंक अकाउंट को रिचार्ज देते रहते। छांग के पीछे दौड़ते दौड़ते एक दिन आकङे की फांक फटी पगरखी को भेदते मगजी के दांए पैर में गहराई से बैठ गई और मगजी फिर भी दौड़ धूप करते रहते। पखालें भर कर पार से पानी पिलाना, तपती दोपहरियों में खेजङी के खोखे झाङना और देर रात तक फोगों और बणों की ओट में नए फलीयों को ढूंढते रहने और आंखों में बेटे को डाक्टर बनाने के सपने ने मगजी के पैर में लगी फांक का पचवा होकर मवाद तक का रिसाव याद ही नहीं रहा। सङा हुआ पैर बदबू मारने लगा तो मगजी की धर्मपत्नी ने उन्हें छांग के पीछे जाने से रोक दिया। और घर पर ही तिल और मतीरे के बीजों को भूंजकर लिपरी बाँध दी। पर मगजी की पीड़ा कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही थी। जब पार के अन्य लोगों को ख़बर लगी तो मगजी को उपचार के लिए अहमदाबाद ले जाया गया, मगजी कहते रहे कि सगते को मत कहना नहीं तो वह सोच में पड़ेगा और पढ़ाई नहीं कर पाएगा। अहमदाबाद में भर्ती होने के उपरान्त भी वे डाक्टरों को कहते रहते कि 'हेक डीं मांहझो सगतियो य डाकतर बणसे अन माणसां रो इलाच करसे।' एक महीने बाद डाक्टरों ने गाँव के साथी और मगजी की देखभाल करने वाले 'करनींग' को बताया कि मगजी के पैर में इंफेक्शन की वज़ह से कैंसर फैल गया है और पैर को काटना पड़ेगा। मगजी का पैर आप्रेशन के बूते कट गया। मगजी की तबीयत दुरस्त हो गई, उन्हें गाँव वापस ले ले जाया गया और उन्हें बैडरेस्ट की सलाह मिली। मगजी नींद में भी बङबङाते रहते, 'मांहझो सगतियो डाकतर, सगतियो डाकतर।' भाग्य की करतूत भी अलहदा कि ठीक पंद्रह दिन बाद हृदयाघात से मगजी संसार छोड़ कर चले गए। पीछे छोड़ गए तो 200की अधमरी छांग, चार गधे और एक भारी भरकम सपना जो कभी पूरा नहीं होना था। मगजी को मुखाग्नि देने वाले हाथ भी पराये थे। तीहरे के दिन सैगी ब्रो भी पहुंच गया। उसकी आँखों में ना तो पश्चाताप और ना ही कुछ खोने की पीड़ा। और सब ख़ामोश था, पानी की पखालें, अधमरी छांग, चार गधे बार बार मगजी की याद में मानो रोए जा रहे हों। सैगी ब्रो को करनींग ने पूछ लिया कि "सगतू कडां वणीस डाकतर?" इतने में गीगू सैगी के बैग में स्मैक की पुङिया और मार्लबोरो का पैकेट लेकर सगते के आगे फेंक देती है और करनींग क्याङी का सहारा लेते हुए आसमान को तकता मगजी को जाने क्या ओलमें दे रहा था.............
-----तेज़स........

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

पीव आया परदेश सूं

पीव आया परदेश सूं, मीठी मांझल रात।
चढ़ती किरणा मन चुभे,पीळोड़ी परभात।।

धीरज धर जे है मना,रीत जावसी रात।
सुख रो सूरज ऊगसी,पीळोड़ी परभात।।

मुक्तक

मुक्तक
        

कानून रै मांय कुबद् यां री गळ्यां कढगी
बळतै दिनां मांय हाकमां री हरकत बढगी
किणनै सुणावै खेत दर्द री आ कहाणी
जबरो जंजाळ है,बाङ खेत खावण चढगी !!

                   ✍ मातु  सिंह  राठौङ

मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

सोरठा- सुमिर सदा सतनाम

सोरठा- सुमिर सदा सतनाम

*कर कीरत रा काम   सतमारग चलणो सजग*
*सुमिर सदा सतनाम   अवर न दूजौ आसरो*

*निस्चै रहसी नाम  नांणां पण रहणां नहीं*
*सुमिर सदा सतनाम.  दिनड़ा जावै दौड़िया*

*तज दे तंत तमाम.  अंत समै आणौ अवस*
*सुमिर सदा सतनाम. पासी मुगती जीव पण*

*डीलां ऊपर डांम.   सबद बांण लाग्या सबल*
*सुमिर सदा सतनाम    सुरगलोक में सरवरा*

*ठाला ठीकर ठाम.  पिंजर तन पीळा पडै*
*सुमिर सदा सतनाम. अजर अमर इक आतमा*

*निरभै निरख निजाम. निवण निरंजन नाथ ने*
*सदा सुमिर सतनाम  सत साहिब सुभ साधना*

*रतनसिंह चाँपावत रणसीगाँव कृत*

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

राजकुंवर- शुभ्रक story

कुतुबुद्दीन ऐबक और क़ुतुबमीनार---
किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संसकृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें. इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया. हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किये थे।

अगर आप दिल्ली घुमने गए है तो आपने कभी विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को भी अवश्य देखा होगा. जिसके बारे में बताया जाता है कि उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था. हम कभी जानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि कुतुबुद्दीन कौन था, उसने कितने बर्ष दिल्ली पर शासन किया, उसने कब विष्णू स्तम्भ (क़ुतुबमीनार) को बनवाया या विष्णू स्तम्भ (कुतूबमीनार) से पहले वो और क्या क्या बनवा चुका था ?

कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का खरीदा हुआ गुलाम था. मोहम्मद गौरी भारत पर कई हमले कर चुका था मगर हर बार उसे हारकर वापस जाना पडा था. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी और कुतुबुद्दीन की रणनीति के कारण मोहम्मद गौरी, तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराने में कामयाबी रहा और अजमेर / दिल्ली पर उसका कब्जा हो गया।
अजमेर पर कब्जा होने के बाद मोहम्मद गौरी ने चिश्ती से इनाम मांगने को कहा. तब चिश्ती ने अपनी जासूसी का इनाम मांगते हुए, एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करके गौरी से कहा कि तीन दिन में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना कर दो. तब कुतुबुद्दीन ने कहा आप तीन दिन कह रहे हैं मैं यह काम ढाई दिन में कर के आपको दूंगा।

कुतुबुद्दीन ने ढाई दिन में उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया. आज भी यह जगह "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जानी जाती है. जीत के बाद मोहम्मद गौरी, पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी "कुतुबुद्दीन" को और पूर्वी भारत की जिम्मेदारी अपने दुसरे सेनापति "बख्तियार खिलजी" (जिसने नालंदा को जलाया था) को सौंप कर वापस चला गय था।

कुतुबुद्दीन कुल चार साल (१२०६ से १२१० तक) दिल्ली का शासक रहा. इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा. हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता. अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।

जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का आविष्कार किया था. यहाँ पर २७ छोटे छोटे भवन (मंदिर) थे जो २७ नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में विष्णू स्तम्भ था, जिसको ध्रुव स्तम्भ भी कहा जाता था।

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन २७ मंदिरों को तोड दिया।विशाल विष्णु स्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तब से उसे क़ुतुबमीनार कहा जाने लगा. कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनबाया था. जबकि वो एक विध्वंशक था न कि कोई निर्माता।
अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई. ये अफगान / तुर्क लोग "पोलो" नहीं खेलते थे, पोलो खेल अंग्रेजों ने शुरू किया. अफगान / तुर्क लोग बुजकशी खेलते हैं जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुंचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था. उसका सबसे कडा विरोध उदयपुर के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा. उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर और उनको जान से मारने की धमकी देकर, राजकुंवर और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड कर लाहौर ले आया।

एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया. इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सर काटने का हुकुम दिया. दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा कि बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुंवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा. कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुंवर का "शुभ्रक" चुना।

कुतुबुद्दीन "शुभ्रक" घोडे पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुंचा. राजकुंवर को भी जंजीरों में बांधकर वहां लाया गया. राजकुंवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंजीरों को खोला गया, शुभ्रक घोडे ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई बार किये, जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया।

इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुवर शुभ्रक घोडे पर सवार होकर वहां से निकल गए. कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड न सके. शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आ कर रुका. वहां पहुंचकर जब राजकुंवर ने उतर कर पुचकारा तो वो मूर्ति की तरह शांत खडा रहा।

वो मर चुका था, सर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया. कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है. *धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामी भक्ति के लिए प्राण दांव पर लगा देते हैं।

युवा  ताकत को प्रणाम

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

सबरै घरै दीवाल़ी होसी!!


सबरै घरै दीवाल़ी होसी!!

गिरधरदान रतनू दासैड़ी
मन रो तिमिर हरैला दीपक,
उण दिन ही उजियाल़ी होसी!
मिनखपणो होसी जद मंडित ,
देख देश दीवाल़ी होसी!!
जात -पांत सूं ऊपर उठनै,
पीड़ पाड़ोसी समझेला!
धरम धड़ै में बांटणियां वै,
घोषित उण  दिन जाल़ी होसी!!
कर्मठता री कदर जिकै दिन,
ठालोड़ा अंतस में करवा!
मैणत री पूजा में भाई ,
हाथ सज्योड़ी थाल़ी होसी!!
सतवादी हरचंद री  फोटू,
घर घर रो सिंणगार बणैली!
भ्रष्टाचार कोम रै सारू
तिण दिन भद्दी गाल़ी होसी!!
संविधान गीता री जागा,
जद भान हुवैलो हर जन नै!
मंदर मंदर धजा तिरंगो,
जबरो ठौड़ धजाल़ी होसी!!
न्याय कचेड़ी नहीं बिकैला,
साच रहेला आंच बिनां!
पंच रूप परमेसर तिण दिन,
रीतां खास रुखाल़ी होसी!!
वर्ग भेद री आंधी थमसी,
मिनख  मिनख नै मानेलो!
दंभ रो थंभ पड़ेलो तिण दिन,
हाथां दोऊं ताल़ी होसी!!
काल़ी रात अमावस वाल़ी,
सत री राह सूझावेली!
दीपक जोत पांगरै प्रीति,
सबरे घरै दीवाल़ी होसी!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

सुजस सादूळ सोढां रौ

सो धरती सोढाण
"सुजस सादूळ सोढां रौ"

राणै वीसै रा हुवा,
बिहु सुतन्न बुधवाण।
भुजबळ सादूला भला,
सो धरती सोढाण।।1।।

बड़भागी नर भाखरै,
सिध मन राखी सान।
लूणकरण नै उजाळियौ,
सो धरती सोढाण।।2।।

धरा धज्ज 'सादूळकी',
सादुळ हरां सुथान।
पौह राखण पोहरिया,
सो धरती सोढाण।।3।।

जलमियौ कुसलौ जठै,
सुभ ढूको सैनाण।
कोट थरपियौ ठाकरां,
सो धरती सोढाण।।4।।

पाट धरा चेलार पर,
थिर सादूळां थान।
कीरत बारह कोटड़ी,
सो धरती सोढाण।।5।

जग्गो 'सीयौ 'लक्खौ'
जबर,'बाखर' तणौ वखाण।
तवां भड़ 'सादूळ'तणा,
सो धरती सोढाण।।6।।

'गोपो''देवौ'गाढवर,
'खियौ'गुणां री खाण।
धज सपूत सातूं धड़ै,
सो धरती सोढाण।।7।।

मोटे चित रण मांडियो,
करण कुसल कल्याण।
गौ वाहरू शिवो गिणां,
सो धरती सोढाण।।8।

भोम सुतन सोनो भलो,
जबरी राखण जाण।
तवां भड़ चेलार तणौ,
सो धरती सोढाण।।9।।

जूझो चेलार जलमियौ,
माहव राखण माण।
सादूळां दाता सिरै,
सो धरती सोढाण।।10।।

आंबूं उदर ऊपनियो,
इदकी राखण आण।
एकल जलम उजालियौ,
सो धरती सोढाण।।11।

ठेळ रचाई ठाकरां,
दाता परखण दान।
उण ठौड़ ऊंठ आपियो,
सो धरती सोढाण।।12।

धरा चेलार दीपियौ,
रंग सादूळ राण।
वहता ओठा बगसिया,
सो धरती सोढाण।।13

मोटे चित मासींग रै,
मागण राख्यो माण।
ईढ नह हुवै आपरी,
सो धरती सोढाण।।14।।

जूझै सोढे जेहड़ो,
दीठो नह दिलवान।
चित नह उतरै जाचकां,
सो धरती सोढाण।।15।

कही कीरत कवेसरां,
अखियातां उनमान।
साख चहुंदिसां संचरी
सो धरती सोढाण।।16

चवां चेलार चेहनो
जनक 'जूझार' जाण।
कुळां उजाळण कीरती
सो धरती सोढाण।17।।

पारस आंबौ पाटवी
गुणी पूत गूमान ।
चावा नर चेलार रा
सो धरती सोढाण।18।।

सोढ भलो खानेस सुत
तपियो आबू ताण।
गिणां भोज मुनि गूंगिये,
सो धरती सोढाण।।19

नगौ 'लाल'घर ऊपनौ
धेनां राखण ध्यान।
चौपट खेल्यौ चाव सूं
सो धरती सोढाण।।20

दाव दियो न तरवट नै
बाजी ली बुधवाण।
तड़ लिखवायौ 'तरवटां'
सो धरती सोढाण।।21।

केसव सुत 'मनरो' कहूं,
भलो भाखरां भाण।
ध्रम साटे जीवण दियो
सो धरती सोढाण।।22

माने मीठू जेळ में,
भलो भज्यो भगवान।
प्रभू नै आणो पड़ियो,
सो धरती सोढाण।।23।।

भैर हठू बांधव भणू,
महियर राखण माण।
महिमा माणी धाट में
सो धरती सोढाण।।24।।

हुवौ गेमरौ गाढवर
हठू घरै हुलसाण।
बांटी सोबतड़ी वळै
सो धरती सोढाण।।25।।

इंद्र उणो जिस ऊपनौ
हठू तणौ हुलराण।
भागी थोड़ो भळकियौ
सो धरती सोढाण।।26

सेहरत लिवी सरजमी
पुरखा करम प्रमाण।
ठावा चावा पींगटी
सो धरती सोढाण।।27।।

सोढो सादूळौ सिरै
जगमालां घण जाण।
पाबूबैरे पाकियौ
सो धरती सोढाण।।28।।

हुवौ गाढवर गरड़िये
खेतौ सोढ सुजाण।
अमरेसा सुत ऊजळौ
सो धरती सोढाण।।29।।

राणौ रमियौ उण धरां
जस जगमालां जाण।
पूत पृथ्वीराज तण,
सो धरती सोढाण।।30।।

मांदोड़ै मघौ जलम,
इदकी राखण आण।
सौरम सादूलां घणी
सो धरती सोढाण।।31।।

भोम सुतन दोनूं भला
जलम काटियै जाण।
वींझौ ज्वारो जबरौ
9सो धरती सोढाण।32।।

भागी राणौ भाखरां
जींझीयर घण जाण
जीवराज पितु पूणियै,
सो धरती सोढाण।।33।।

रहण सहण रणजीत री
जींझीयर तण जाण।
भलो सोढ भवसिंघ रौ
सो धरती सोढाण।।34।।

बिटड़ां भड़ हंजौ हुवौ
सादूळां कुळ सान।
फूल तळै खीमौ तवां
सो धरती सोढाण।।35।।

सोढ सुखौ सरदार सुत
सादूळां सुभियाण।
कूप खुदायौ नीर कज
सो धरती सोढाण।।36

इण कुळ नोंघौ ऊपनौ
अणदै राखण आण।
पैठ बढाई पींगटी
सो धरती सोढाण।।37।।

विसनो सुत रणजीत रो,
अरनरै तणी आण।
ठौर ठसक 'ठोभाळियै'
सो धरती सोढाण।।38

अमर बनौ घर ऊपनौ
जबर सुपातर जाण।
ख्यात खेजड़ाळै खरी
सो धरती सोढाण।।39।।

ठावा गोपा मिठड़ियै
जालमै तणी जाण।
ऊजळ राखी आबरू
सो धरती सोढाण।।40।।

जोधो सादूळो जबर
तैजो तणो वखाण।
महिमा माणी मिठड़िये
सो धरती सोढाण।41

दाखां दानौ मिठड़िये,
गोपां तणो गुमान।
हरनाथै हुलरावियौ
सो धरती सोढाण।।42।।

सूरौ सादूळां सही
देवै हंदो डाण।
रंग मिठड़ियै राखियौ
सो धरती सोढाण।।43।।

भाडाळी ओनौ भयौ
सज्जण नै सुभियाण।
जस जगमालां जोड़ियौ
सो धरती सोढाण।44

वींझौ डाहाली हुवौ
सुत रणमल्ल सुजाण।
सोभा सादूळां सही
सो धरती सोढाण।।45।।

चरकाळी आंबौ चवां
वींझल सुत गुणवाण।
भूरासर लीधी भलप,
सो धरती सोढाण।।46।

गिणां माहसिँघ गूँगियै
पिता जिती पहचाण
रावत रौ पोतो भले,
सो धरती सोढाण।।47।।

मांदोड़ै सेरौ मुणां
रंग रूपाळौ जाण।
सादूळां लीधो सुजस
सो धरती सोढाण।।48।।

तवां सोढ पांचू तळै,
राखण छती पिछाण।
रतनहरा रांगड़ हुवा
सो धरती सोढाण।।49।।

सोढ भलो सुरतेस रौ
नर नेतौ गुणवाण।
अंजसियौ आसापुरै
सो धरती सोढाण।।50।।

डायौ सोढो डूंगरौ
धीराणी धिनवान।
रौनक राखी रोझड़ी
सो धरती सोढाण।।51।।

चावौ नेतो चंदनौ
सुरतै रौ सुभियाण।
नांव कमायौ नींबलै
सो धरती सोढाण।।52।।

भड़ नामी भीभाणियां
गुणी लीधो गुमान।
चाहड़ियाई चित बणी
सो धरती सोढाण।।53।।

सिद्ध मनां सादूळहर
सदा सवाई शान।
सिरै सपूताई रही
सो धरती सोढाण।।54।।

@संग्राम सिंह सोढा
सचियापुरा बज्जू

पत्नी री पीड़ मोबाईल

" पत्नी री पीड़ मोबाईल "
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ऐ सखी म्हारो सायबो
     सुणे नी मन की बात।
सोच सोच बिलखूँ घणी,
      निबळो पड़ियो गात।

जद स्यूं घर में आवियो,
      रिपु मोबाइल भूत।
बतळायाँ बोले नहीं,
      रैवे जियां अवधूत।

दिन आखो चिपक्यो रैवे,
      मोबाइल रे संग।
जक नी लेवै रात दिन,
      आछ्यो हुयो अपंग।

बता सखी यो वाट्सप,
     कुण करियो निरमाण।
छाती छोल र धर दी ,
    इन म्हारी सौतन जाण।

आँख्यां ताणे उंघतो,
    आधी आधी रात।
झंझारकै ही जागज्या,
    झट ले ठूंठो हाथ।

म्हा स्यूं तो बतळे नहीं,
    फेसबूक पे गल्ल।
मुळक मुळक गल्लां करै,
    कर मोबायल ,
टुकड़ो तिल खावै नहीं,
    लाईक री घण भूख।

चढ़ चश्मो आंधा हुआ,
    डोबा लाग्या दूख।
रैण दिवस पड़ियो रैवे,
     करै न कोई काम!

मोबाईल हाथां रेवै,
     भोर दुपहरी शाम।
हाथ मगज़ दुबळा हुया,
     नैण हुया अणसूझ।

सखी तमीणे सायबे ने,
     रस्तो कोई तो बूझ।
पिंड छूटे इण पाप स्यूं,
     करै' जै कोई काम।

करै राजरी नौकरी,
     सिंझ्या भजले राम।
सखी राह कोई बता,
     किम छोडाउं लार।

मोबाइल री सौत ने,
    केहि बिध काढुं बार।
हाल रैयो जै कैई दिनाँ,
    तो उठसी म्हारौ चित्त।

क मोबाइल रैइसी,
    क बंदी रहसी इत्त।।

Meera ke bhajan

राणा
म्हासूं गोविन्द तज्यो न जाय।।

बालापन मैं जिण संग ब्याही लीना फेरा खाय
वो ही म्हारो सांचो प्रीतम साँची कहूँ समझाय।।1।।

नाम रटूं दिन रात निरंतर आठ पहर यदुराय
साँस साँस में श्याम बस्यो है किण बिध दयूं बिसराय।।2।।

जहर पियालो आप भेजियो अमृत दियो बनाय।
सर्प पिटारो हाथे सोप्यो हार गले पहणाय।।3।।

म्हे तो मोहन हाथ बिकानी हाथ न खुद रे हाय
मीरा के प्रभु गिरधर नागर दूजो न कोई सुहाय।।4।।

जय श्री कृष्णा